आइपीएस एमके सिंह के भोजपुरी उपन्यास के हिदी अनुवाद का विमोचन
- ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित उपन्यास गंगा रतन बिदेसी में अपनी जमीन से उखड़े हुए लोगों की है ग
- ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित उपन्यास 'गंगा रतन बिदेसी' में अपनी जमीन से उखड़े हुए लोगों की है गाथा।
जागरण संवाददाता, कोलकाता : महानगर में चल रहे 44वें अंतरराष्ट्रीय कोलकाता पुस्तक मेला में स्थित प्रेस कॉर्नर में शनिवार को वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी मृत्युंजय कुमार सिंह के भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा बहुचर्चित भोजपुरी उपन्यास 'गंगा रतन बिदेसी' के हिदी अनुवाद का विमोचन किया गया। अपने उपन्यास का हिंदी अनुवाद भी मृत्युंजय ने स्वयं किया है और इसका प्रकाशन भी भारतीय ज्ञानपीठ के द्वारा ही किया गया है। यह उपन्यास ऐतिहासिक तथ्यों के सूत्रों से बुनी एक काल्पनिक कथा है। गंगा रतन बिदेसी भोजपुरी उपन्यास सौ वषरें की काल-परिधि में घिरी, अपनी ज़मीन से उखड़े हुए लोगों की गाथा है। यह उस दु:ख, संताप और संघर्ष की कथा है, जो भोजपुरिया क्षेत्र से विस्थापित होकर नटाल (दक्षिण अफ्रीका) में गिरमिटिया बने एक व्यक्ति के परिवार और संततियों को फिर से अपनी जड़ खोजने और जमाने के दौरान सहन करना पड़ा। चंपारण के नील खेती में पिसे किसानों के दुर्भाग्य से गाधी जी के जुड़ने और दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रही गाधी के भारत में महात्मा गाधी बनने के साथ चल रहे भारतीय स्वाधीनता आदोलन की पृष्ठभूमि को लिए यह कथा है, उन सब लोगों की जो आपस में एक आतरिक प्रेम की जिजीविषा से बंधे हैं, और इज्ज़त से जीने को एक जगह खोज रहे हैं। लेखन के उत्तम सौंदर्य और शिष्टता के साथ, मृत्युंजय ने कई दशकों में पसरे कलकत्ता और हावड़ा के विघटन को भी इसमें चित्रित किया है, जो अपने विकारों और क्षय में भी जीवन और आशा के साथ प्रतिरूपित है।
आज भी अपने देश में सौ में से दस लोग ऐसे हैं, जो अपनी रोजी-रोटी कमाने या एक अच्छे जीवन के चक्कर में अपनी ज़मीन से प्रताड़ित या निष्कासित जीवन जी रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह बात उतनी ही महत्वपूर्ण है। उपन्यास का लोकार्पण भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता के निदेशक डॉ. शभुनाथ, वरिष्ठ पत्रकार व लेखक गीतेश शर्मा, साहित्यकार व ब्रैथवेट एंड को लिमिटेड के अध्यक्ष व प्रबंध-निदेशक यतीश कुमार, दैनिक जागरण के स्थानीय संपादक जयकृष्ण वाजपेयी ने किया। इस कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी एवं नायिका कल्पना झा ने किया। इस कार्यक्रम में आमंत्रित अतिथियों एवं पुस्तक-मेला में बड़ी संख्या में आए साहित्य प्रेमियों के साथ भारतीय ज्ञानपीठ के प्रतिनिधि उत्तम बनर्जी ने भी भाग लिया।