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International Tiger Day 2020: सुंदरवन में बाघ हर वर्ष इंसानों पर करते हैं सौ से ज्यादा हमले

सुंदरवन में बाघ हर वर्ष इंसानों पर करते हैं सौ से ज्यादा हमलेआधे का परिणाम इंसानों की मौत के रूप में सामने आता है ज्यादातर के अवशेष के रूप में कपड़े और हड्डियां ही मिलता

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 07:56 AM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 01:55 PM (IST)
International Tiger Day 2020: सुंदरवन में बाघ हर वर्ष इंसानों पर करते हैं सौ से ज्यादा हमले
International Tiger Day 2020: सुंदरवन में बाघ हर वर्ष इंसानों पर करते हैं सौ से ज्यादा हमले

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। देश भर के बाघ जहां जंगलों में आने वाले पर्यटकों और वहां के मूल निवासियों से नहीं उलझते वहीं पश्चिम बंगाल में हजारों वर्ग किलोमीटर में फैले सुंदरवन व इसके आसपास के इलाकों में बाघ हर वर्ष इंसानों पर कम से कम सौ हमले करते हैं जिनमें से आधे का परिणाम इंसानों की मौत के रूप में सामने आता है। जिनमें से ज्यादातर के अवशेष के रूप में कपड़े और हड्डियां ही मिलती हैं।फिर भी यह कहना गलत नहीं होगा कि इन दिनों बाघों के इंसानों पर हमले की घटनाएं कड़े कानूनों के कारण कम हुई हैं।

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ऐसा क्यों यह पूछने पर विशेषज्ञ अलग अलग तर्क रखते हैं। कुछ कहते हैं कि गंगा में बहाए गए शव मैंग्रोव की छोटी छोटी नदियों में बहकर लंबे समय से आ रहे हैं। जिन्हें बाघों ने निश्चित तौर पर चखा है। ऐसे बाघ जो मानव मांस चख चुके हैं। उनकी आनुवांशिकी में मानव मांस से परहेज करना हट चुका है। हालांकि इस तर्क को इसलिए स्वीकार करने में परेशानी होती है क्योंकि अब गंगा में अधजले शव फेंकने की परंपरा खत्म हो चुकी है। लेकिन इस तर्क का समर्थन करने वाले कहते हैं कि ठीक है अंतिम संस्कार के बाद अब शव गंगा में भले ही नहीं फेेंके जा रहे हों लेकिन डूबने वाले, दुर्घटनाओं के समय मारे गए और प्राकृतिक आपदा के समय गंगा में डूबे लोगों के शव अभी भी जंगलों में पहुंचते ही रहते हैं।

अब नहीं मुखौटों से चकमा नहीं खाते बाघ

भारत और बांग्लादेश के सीमाई इलाके के हजारों वर्ग मील में फैले मैंग्रोव जंगलों का राजा रॉयल बंगाल टाइगर इंसानों की चालाकी को समझ चुके हैं। सुंदरवन टाइगर रिजर्व और उसके आस पास के इलाकों में जंगल के अंदर जाकर शहद संग्रहित करने वालों, केकड़े पकड़ने वाले स्थानीय लोग अब जंगल के इस बाहुबली को चकमा नहीं दे पा रहे हैं। सदी की शुरुआत में वन विभाग ने जंगल जाने वाले परमिटधारियों को मुखौटे दिए थे। विभाग का मानना था कि सिर के पीछे मुखौटा बांधने से बाघ हमला नहीं करेगा। कुछ समय तक तो बाघ उनकी चाल में फंस गए लेकिन अब विभाग की यह चाल काम नहीं कर रही है। आंकड़ों के मुताबिक हर साल सुंदरवन में औसतन 80 से सौ लोग शेरों के हमले में मारे जाते हैं।

पानी का बदलता स्वाद बाघों के बदलते व्यवहार के लिए जिम्मेवार

सुंदरवन के विशेषज्ञ मोनिरुल एच खान ने कहा था कि सुंदरवन के बाघों में आया परिवर्तन पारिस्कीय परिवर्तन, सामुद्रिक जलस्तर में बढ़ोतरी और पानी में बढ़ती सेलिनिटी (लवणीयता) के कारण हो सकता है। वे जोर देकर कहते हैं कि पानी का बदलता स्वाद यहां के बाघों के बदलते व्यवहार के लिए जिम्मेवार हो सकता है।

बाघ अपने कोर इलाकों में मानवीय आवाजाही को समझते हैं बड़ा हस्तक्षेप

सुंदरवन में शहद, जलाऊ लकड़ी, मछली, केकेड़े व अन्य वनोपज संग्रह के लिए बहुत से लोग जंगलों के भीतर चले जाते हैं। बाघ अपने कोर इलाकों में मानवीय आवाजाही को बड़ा हस्तक्षेप समझते हैं। इसलिए वह लोगों को निशाना बनाते हैं। हालांकि वन विभाग के अधिकारी जंगलों में लोगों के जाने को लगातार नियंत्रित करने में लगे हुए हैं। लेकिन लोगों की रोजी रोटी उन्हें जंगल के राजा की मांद में घुसने के लिए मजबूर करती है जिसका परिणाम हमले के रूप में सामने आता है। 


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