आइआइटी खड़गपुर ने विकसित की जल शुद्धीकरण की तकनीक, एक घंटे में 100 से 300 लीटर पानी साफ करने की क्षमता
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) खड़गपुर स्थित तकनीकी उत्कृष्टता केंद्र ने जल शुद्धीकरण विकसित की है। यह पानी भारी धातुओं से मुक्त है जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक माने जाते हैं। इसकी क्षमता एक घंटे में 100 से 300 लीटर पानी को साफ करने की है।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) खड़गपुर स्थित तकनीकी उत्कृष्टता केंद्र (सीटीईडब्ल्यूपी) ने जल शुद्धीकरण विकसित की है।यह पानी भारी धातुओं से मुक्त है जो स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक माने जाते हैं। आधिकारिक जानकारी के अनुसार आइआइटी खड़गपुर स्थित जल शुद्धीकरण सीटीईडब्ल्यूपी ने कुशल, कम लागत वाली नैनो फिल्टरेशन आधारित तकनीक विकसित की है।
एक घंटे में 100 से 300 लीटर पानी करता है साफ
मेंब्रेन सेपरेशन लेबोरेटरीज, वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर), भारतीय रसायन प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइसीटी) ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) जल प्रौद्योगिकी पहल (डब्ल्यूटीआइ) के सहयोग से अत्यधिक कॉम्पैक्ट वटीर्कल मॉड्यूलर नैनोफिल्टरेशन मेंब्रेन सिस्टम का प्रोटोटाइप विकसित किया है जो भू-जल में मौजूद भारी धातुओं को हटाने का काम करता है। इसकी क्षमता एक घंटे में 100 से 300 लीटर पानी को साफ करने की है और यह टेक्नोलॉजी हाइड्रोफिलाइज्ड पॉलियामाइड मेंब्रेन प्रणाली पर आधारित है जो भूजल में मौजूद भारी धातु जैसे आयरन को हटाने में काफी मददगार है। इसमें ऐसे पंप होते हैं जो पानी को पहले प्रिफिल्टर असेंबली में बल पूर्वक भेजते हैं जहां उसमें मौजूद ठोस तत्व, रंग एवं गंध को हटाया जाता है और इसके बाद इसे स्पायरल वुंड मेंब्रेन मॉड्यूल से गुजारा जाता है जहां भारी धातुओं को हटाया जाता है। इस प्रक्रिया में आयरन, आर्सेनिक और पानी की अधिक कठोरता को समाप्त किया जाता है और अंत में पराबैंगनी प्रकाश की मदद से टैंक अथवा पाइपलाइनों में मौजूद रोगाणुओं के नष्ट किया जाता है।
एक सरल, सस्ती हैंडपंप संचालित प्रणाली भी विकसित की
सीएसआइआर-आइआइसीटी की टीम ने एक सरल, सस्ती हैंडपंप संचालित होलो फाइबर अल्ट्राफिल्ट्रेशन प्रणाली भी विकसित की है जो चलाने में आसान है तथा हल्की और कम जगह घेरती है। डीएसटी के तकनीकी सहयोग से इसे विकसित किया गया है और यह पॉलीइथर्सल्फ़ोन होलो फाइबर मेंब्रेन पर आधारित है। हैंडपंप द्वारा पैदा किए गए दवाब से बाढ़ का पानी मेंब्रेन मॉड्यूल में जाता है जहां इसे साफ तथा विसंक्रमित कर दिया जाता है और झिल्ली के बाहरी किनारे पर लगाया गया एक छोटा क्लोरीन बॉक्स पानी में मौजूद मुक्त क्लोरीन को साफ कर देता है।
हाल ही में कनार्टक, महाराष्ट्र, केरल, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में बाढ़ के दौरान ऐसे कुल 24 जल संयंत्रों को स्थापित किया गया था ताकि 50,000 लोगों को स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराया जा सके।
इस केंद्र की ओर से विकसित की गई नई तकनीकों की मदद से पानी में पाए जाने वाली भारी धातुओं को हटाने और बाढ़ के पानी को पीने योग्य बनाने में मदद मिलेगी जिससे स्वास्थ्य एवं आपदा प्रबंधन चुनौतियों से निपटने में मदद मिलेगी।