Bangladesh Violence: चार दशक में बांग्लादेश के हिंदुओं ने गंवाई अपनी 26 लाख एकड़ जमीन
Bangladesh Latest News बांग्लादेश का दैनिक समाचार पत्र बांग्लादेश प्रतिदिन की एक रिपोर्ट में बांग्लादेश कृषक फेडरेशन के अध्यक्ष मोहम्मद बदरूल आलम वेस्टेड प्रापर्टी रिटर्न एक्ट में अभी तक हुए बदलावों को अल्पसंख्यकों के हितों के लिए नाकाफी मानते हैं।
इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। बांग्लादेश में पिछले दिनों हिंदुओं के खिलाफ हुई हिंसा की घटनाएं यकीनन विचलित कर देने वाली हैं। दरअसल, यह हिंसा बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदुओं के लिए नई नहीं है। पिछले पांच दशक से वे इसका शिकार हो रहे हैं और इस हिंसा की मुख्य वजह उनकी जमीन पर कब्जा करने की कोशिश है। बांग्लादेश के प्रमुख समाचार पत्रों की हालिया रिपोर्ट में इस तथ्य की ओर इशारा भी किया गया है। इतना ही नहीं बांग्लादेश मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने कुछ वर्षों पहले हिंसा की घटनाओं की जांच के संदर्भ में कहा था कि देश में कुछ हिंदू मंदिरों पर हमला एक सुनियोजित तरीके से किया गया, जिसका मकसद अल्पसंख्यक समुदाय की जमीन पर कब्जा करना था।
दरअसल, बांग्लादेश में वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट वहां रहने वाले अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है। हिंदू अल्पसंख्यकों का मानना है कि यह अधिनियम उनकी जमीन-जायदाद से बेदखल करने का जरिया है। इस कानून की वजह से बांग्लादेश का करीब हर हिंदू परिवार प्रभावित हुआ है। एक बार जब सरकार जमीन अपने कब्जे में ले लेती है तब प्रभावी और राजनीतिक लोग अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उस जमीन को अपने अधीन कर लेते हैं। बांग्लादेश में इस अधिनियम की वजह से लाखों हिंदुओं को अपनी जमीन गंवानी पड़ी है। अमूमन हिंसा के दौरान बहुसंख्यक आबादी गरीब हिंदुओं के घर जला देती है। घर जलने से ये हिंदू परिवार पलायन करने को मजबूर होते हैं और जब वे पलायन कर जाते हैं तो उनकी जमीन पर ये लोग कब्जा कर लेते हैं।
दरअसल साल 1965 में तत्कालीन पाकिस्तान सरकार ने एनिमी प्रापर्टी एक्ट बनाया था, जिसे बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के बाद वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट किया गया। कुछ तब्दीलियों के बाद अब यह वेस्टेड प्रापर्टी रिटर्न एक्ट ( 2001) के नाम से जाना जाता है। भारत के साथ जंग में हुई हार के बाद अमल में लाए गए एनिमी प्रापर्टी एक्ट के तहत 1947 में पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से भारत गए लोगों की अचल संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित कर दिया गया था।
अल्पसंख्यक हिंदुओं के 26 लाख एकड़ भूमि पर दूसरों ने जमाया कब्जा
-मशहूर अर्थशास्त्री व ढाका विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अबुल बरकत के शोध के मुताबिक, एनिमी प्रापर्टी एक्ट या वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट की वजह से बांग्लादेश में 1965 से 2006 के दौरान अल्पसंख्यक हिंदुओं के स्वामित्व वाली 26 लाख एकड़ भूमि दूसरों के कब्जे में चली गई है। अबुल बरकत के मुताबिक बांग्लादेश में वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट की गाज वहां रहने वाले बौद्ध समुदाय पर भी गिरी है। साल 1978 में यहां बौद्ध धर्म को मानने वालों के पास 70 फीसद भूमि थी, लेकिन साल 2009 में यह घटकर 41 प्रतिशत रह गई।
मंदिरों पर हमला हिंदुओं की जमीन पर कब्जा करने के लिए किया गया : बांग्लादेश एनएचआरसी
-बांग्लादेश के शीर्ष मानवाधिकार संगठन बांग्लादेश राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने कुछ वर्षों पहले हिंसा की घटनाओं की जांच के संदर्भ में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में कुछ हिंदू मंदिरों पर हमला एक सुनियोजित तरीके से किया गया, जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय की जमीन पर कब्जा करना था।
10 लाख अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के मुकदमे बांग्लादेश के विभिन्न अदालतों में लंबित
- डा. अबुल बरकत के शोध के मुताबिक इस समय वेस्टेड प्रापर्टी एक्ट से जुड़े करीब 10 लाख अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं के मुकदमे बांग्लादेश के विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। इन मामलों से जुड़ी कुल भूमि का परिमाण 10 लाख एकड़ के आसपास है। सबसे चिंता की बात यह है कि वादी पक्ष को मामले के निपटारे के लिए भारी भरकम रिश्वत देनी पड़ती है। शोध से पता चला है कि अब तक दो लाख आवेदनकर्ताओं को बतौर रिश्वत दो हजार 270 करोड़ रुपये देने पड़े हैं। हालांकि बांग्लादेश के कानून मंत्री अनिसूल हक का कहना है कि साल 2013 में वेस्टेड प्रापर्टी रिटर्न एक्ट के तहत हर जिले में फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित की गई है, ताकि अपनी जमीन से बेदखल हो चुके अल्पसंख्यकों को उनकी संपत्ति वापस मिल सके। जमीनों से संबंधित मुकदमे का फैसला 90 दिनों में और 180 दिनों के भीतर याचिकाकर्ताओं को उक्त भूमि पर दखल-कब्जा दिलाने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक दो लाख से ज्यादा लोगों को उनकी जमीन लौटाई गई है।
संशोधित कानून का अल्पसंख्यकों को आशानुरूप नहीं मिला फायदा
बांग्लादेश का दैनिक समाचार पत्र बांग्लादेश प्रतिदिन की एक रिपोर्ट में उनका कहना है कि इस तरह का कानून बनाने का मतलब है किसी समुदाय विशेष के हितों की अनदेखी करना है। इस तरह के काले कानून को पूरी तरह से खत्म करने का साहस सरकार को दिखाना चाहिए।
बांग्लादेश के समाचार पत्र दैनिक जुगांतर की एक रिपोर्ट में बांग्लादेश आदिवासी समिति के महासचिव स्वपन एक्का बताते हैं कि साल 1971 के मुक्ति युद्ध के समय काफी संख्या में बांग्लादेशी हिंदू भारत में बस गए। उनमें ज्यादातर लोगों के चाचा, भाई और बहन बांग्लादेश छोड़कर नहीं गए। यहां रहने वालों की जमीनें उनके पुरखों के नाम पर हैं। ऐसे में उनकी संपत्ति को वेस्टेड प्रापर्टी घोषित कर बेदखल करना सरासर नाइंसाफी है।
बांग्लादेश किसानी सभा की महासचिव सबीना यास्मीन एक मीडिया रिपोर्ट में बताती हैं कि अवामी लीग की सरकार ने एनिमी प्रापर्टी एक्ट में काफी तब्दीली की, लेकिन अल्पसंख्यकों को जितना फायदा मिलना चाहिए उतना नहीं मिला है। यह कानून वैसे लोगों के लिए मुफीद बन गया है, जो अल्पसंख्यकों की जमीन पर कब्जा करना चाहते हैं। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, वरना वह दिन दूर नहीं जब बांग्लादेश में अल्पसंख्यक पूरी तरह भूमिहीन हो जाएंगे।