राज्यपाल धनखड़ ने मुकुल राय को पीएसी अध्यक्ष बनाने पर पत्र लिखकर जताया विरोध, भाजपा व तृणमूल में आरोप-प्रत्यारोप
राज्यपाल का दावा है कि मुकुल राय को पीएसी का अध्यक्ष बनाने से संसदीय प्रणाली के मानदंड प्रभावित हो रहे हैं। भाजपा विधायकों का प्रतिनिधिमंडल इससे पहले इस मुद्दे पर राज्यपाल से गुहार लगा चुके हैं। इसके बाद राज्यपाल ने विधानसभा सचिवालय को एक पत्र भेजकर अपनी बातें कह दी।
राज्य ब्यूरो,कोलकाताः बंगाल के राजनीतिक मामलों पर करीब दो माह तक चुप्पी साधने के बाद राज्यपाल जगदीप धनखड़ एक बार फिर मुखर हो गए हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाद दलबदल कर भाजपा से तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए विधायक मुकुल राय को लोक लेखा समिति(पीएसी) का अध्यक्ष बनाने पर आपत्ति जाते हुए विधानसभा सचिवालय को पत्र लिखा है, जिसमें संसदीय मर्यादा बनाए रखने के लिए सही फैसला लेने की अपील की है।
राज्यपाल का दावा है कि मुकुल राय को पीएसी का अध्यक्ष बनाने से संसदीय प्रणाली के मानदंड प्रभावित हो रहे हैं। भाजपा विधायकों का प्रतिनिधिमंडल इससे पहले इस मुद्दे पर राज्यपाल से गुहार लगा चुके हैं। इसके बाद राज्यपाल धनखड़ ने विधानसभा सचिवालय को एक पत्र भेजकर अपनी बातें कह दी।
मुकुल को पीएसी अध्यक्ष बनाए जाने के खिलाफ भाजपा ने कलकत्ता हाई कोर्ट में भी मुकदमा कर रखा है, जिस पर दो बार सुनवाई हो चुकी है और विधानसभा अध्यक्ष से सवाल पूछते हुए हलफनामा भी तलब किया गया है। दूसरी ओ विधान सभा सचिवालय के अधिकारियों ने राज्यपाल के पत्र को ‘अनावश्यक’ बताया है। दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा राज्य में निवेश को लेकर किए गए दावे पर भी सवाल उठाया गया है।
सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार कि राज्यपाल द्वारा विधानसभा के कार्य में अनुचित हस्तक्षेप एक गलत परंपरा बन रहा है। पीएसी समेत विधानसभा की सभी समितियों पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार सिर्फ स्पीकर को है। नतीजतन, इस संबंध में विधानसभा को पत्र भेजने का मतलब स्पीकर के काम में दखल देना है। हालांकि पीएसी की बहस थमने वाली नहीं है, कुछ दिन पहले जन्माष्टमी समारोह में देखा गया कि नेता प्रतिपक्ष ने स्पीकर के साथ मंच साझा नहीं किया था। उस दिन नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने कहा था कि पीएसी की समस्या का समाधान होनी चाहिए।
राज्यपाल के पत्र पर भाजपा व तृणमूल में आरोप-प्रत्यारोप
इस संदर्भ में तृणमूल नेता तापस राय ने कहा कि संविधान में यह निर्दिष्ट है कि अधिकार किसके पास है। राज्यपाल अचानक चुप्पी क्यों तोड़ रहे हैं और अपनी नाक गाल रहे हैं। उसे इस बारे में कुछ नहीं कहना है। राज्यपाल को परंपरा या परंपरा में इस बारे में कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है। सभी की सीमाएं संविधान में उल्लेखित है। आप सलाह दे सकते हैं, लेकिन अगर यह स्वीकार्य नहीं है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा।
दूसरी ओर भाजपा नेता जय प्रकाश मजूमदार ने कहा कि बहस की शुरुआत नियम तोड़ने को लेकर हुई है। क्या अध्यक्ष इस बात से इन्कार कर सकते हैं कि वह बार-बार दल विरोधी कानूनों को लागू करने में विफल नहीं रहे हैं, क्योंकि यह सत्ताधारी दल के खिलाफ जा रहा है? भाजपा नेता ने सवाल किया कि अगर स्पीकर सो रहे हैं, तो क्या भारतीय कानून भी सोएगा?