Move to Jagran APP

Gandhi jayanti 2019: बांग्ला भाषा के मुरीद थे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जीवन के 566 दिन बंगाल में बिताए

Mahatma Gandhi 150th Birth Anniversary Father of the Nation Mahatma Gandhi महात्मा गांधी को बांग्ला भाषा से बेहद लगाव था। यह लगाव रवींद्र संगीत सुनने के बाद पैदा हुआ था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 11:17 AM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 12:44 PM (IST)
Gandhi jayanti 2019: बांग्ला भाषा के मुरीद थे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जीवन के 566 दिन बंगाल में बिताए
Gandhi jayanti 2019: बांग्ला भाषा के मुरीद थे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जीवन के 566 दिन बंगाल में बिताए

कोलकाता, विशाल श्रेष्ठ। भाषा अपने वक्ताओं के चरित्र व विकास का सटीक प्रतिबिंब होती है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने यह बात कही थी। विभिन्न भाषाओं के प्रति बापू की दिलचस्पी का उनकी इसी उक्ति से अंदाजा लगाया जा सकता है। विभिन्न भाषाओं को जानने-समझने को लेकर उनमें हमेशा से ही आग्रह रहा, फिर बंगाल आकर बांग्ला भाषा न सीखें, ऐसा कैसे हो सकता था।

loksabha election banner

महात्मा गांधी के कोलकाता प्रवास पर शोध कर रहीं पापड़ी सरकार ने बताया कि महात्मा गांधी को बांग्ला भाषा से बेहद लगाव था। यह लगाव रवींद्र संगीत सुनने के बाद पैदा हुआ था। उन्होंने अपने जीवन के कुल 566 दिन बंगाल में बिताए। अधिकांश समय वे तत्कालीन कलकत्ता के सोदपुर में अपने शिष्य सतीश चंद्र दासगुप्ता के यहां आकर ठहरते थे।

बापू ने कलकत्ता के अलावा पासवर्ती डनलप, बैरकपुर, सोदपुर, शांतिनिकेतन, मुर्शिदाबाद, नोआखाली (वर्तमान में बांग्लादेश) इत्यादि जगहों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने बांग्ला भाषा का गहनता से अध्ययन भी किया और इसे सीखा भी। उनके बंगाल दौरे के समय यहां मौजूद संगी-साथी इसमें उनकी मदद करते थे, विशेषकर उनके सचिव निर्मल कुमार बसु का इसमें विशेष योगदान रहा। गांधीजी ने बांग्ला बोलने के साथ-साथ लिखना भी सीख लिया था।

’पापड़ी, जोकि पूर्व कलिकाता गांधी स्मारक समिति की संयुक्त सचिव भी हैं, ने आगे कहा-‘गांधीजी 13 अगस्त से 7 सितंबर, 1947 तक कोलकाता के बेलियाघाटा इलाके में स्थित गांधी भवन में ठहरे थे। जिस दिन वे वहां से लौटे थे, उस दिन उन्होंने अपने हाथों से बांग्ला में ‘आमार जीवनई आमार वाणी’ लिखा था, जिसका मतलब है-‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।’ गांधी भवन में बापू की बांग्ला का ककहरा सीखती कई दुर्लभ तस्वीरें भी हैं। पापड़ी ने आगे बताया-गांधीजी के गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर से काफी गहरे संबंध थे। वे उनसे शांतिनिकेतन जाकर भी मिले थे। गांधीजी को टैगोर का ‘जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे, तोबे एकला चोले रे (अगर तुम्हारी पुकार सुनकर कोई न आए तो अकेले चलो रे) गीत काफी पसंद था। पुणो की यरवदा जेल में कैद के दौरान गांधीजी ने टैगोर की रचनाओं पर अनुसंधान भी किया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.