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विश्वभारती के पूर्व वीसी, रजिस्ट्रार फ्राड के मामले में दोषी करार

- बोलपुर कोर्ट जाली दस्तावेज के मामले में आज सुनाएगी सजा -2004 में नोबेल चोरी की घटना के बाद

By JagranEdited By: Published: Wed, 20 Feb 2019 09:21 PM (IST)Updated: Wed, 20 Feb 2019 09:21 PM (IST)
विश्वभारती के पूर्व वीसी, रजिस्ट्रार 
फ्राड के मामले में दोषी करार
विश्वभारती के पूर्व वीसी, रजिस्ट्रार फ्राड के मामले में दोषी करार

- बोलपुर कोर्ट जाली दस्तावेज के मामले में आज सुनाएगी सजा

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-2004 में नोबेल चोरी की घटना के बाद प्रकाश में आया था मामला

जागरण संवाददाता, कोलकाता: कविगुरु रवींद्र नाथ टैगोर के सपनों के शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति (वीसी) दिलीप कुमार सिन्हा, पूर्व रजिस्ट्रार दिलीप मुखोपाध्याय और गणित की महिला प्रोफेसर मुक्ति देव गुलटी को फ्राड के एक मामले में बोलपुर कोर्ट ने बुधवार को दोषी करार दिया। तीनों को गुरुवार को अदालत सजा सुनाएगी। देश में यह पहला माला है जब किसी पूर्व वीसी को फ्राड के मामले में दोषी करार दिया गया है।

यह मामला 2004 में कविगुरु रवींद्र नाथ टैगोर के नोबेल पदक चोरी होने की घटना के कुछ दिनों बाद सामने आया था। सिन्हा बाद में रिटायर हो गए और मामले की जांच सीआइडी को सौंप दी गई थी।

आरोप है कि मुक्ति देव बिना आवश्यक योग्यता के ही करीब छह वर्षो तक विश्वविद्यालय के पोस्ट ग्रेजुएट छात्र-छात्राओं को गणित बढ़ा रही थीं।

सीआइडी के अधिवक्ता नवकुमार घोष ने बताया कि जांच में पता चला कि मुक्ति देव माध्यमिक पास करने के बाद 1997 में केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षक की नौकरी फर्जी दस्तावेज दिखाकर प्राप्त की थी। उक्त फर्जी दस्तावेज को सिन्हा ने वीसी रहते हुए सत्यापित किया था। 2001 में सिन्हा के रिटायर होने के बाद 2004 में विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद ने मुक्ति देव को पहले निलंबित किया और बाद में बर्खास्त कर दिया। इसके बाद सीआइडी ने जून 2004 में सिन्हा को कोलकाता से गिरफ्तार किया था। बाद में वे जमानत पर रिहा हो गए। मार्च 2006 में जांच पूरी कर सीआइडी ने बोलपुर कोर्ट में आरोपितों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। तीनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 466(फ्राड) 467(मूल्यवान दस्तावेज को लेकर दोखा) , 468(जालसाजी), 469(प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए जालसाजी), 471(वास्तविक दस्तावेज के स्थान पर जाली दस्तावेज का इस्तेमाल), 474 (जाली दस्तावेज) के तहत मुकदमा दर्ज है। इन धाराओं में कम से कम सात और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है।


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