सोमनाथ वामपंथी होते हुए भी उनके जीवन पर रहा दक्षिणपंथी पिता का प्रभाव
सोमनाथ चटर्जी का जीवन वैसे तो सीधा सरल था लेकिन अंत में विवादों से परे नहीं रहा। वै वह स्वभाव से वामपंथी लेकिन उन पर कुछ हद तक दक्षिणपंथी पिता का भी प्रभाव था।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का जीवन वैसे तो सीधा सरल था लेकिन अंत में विवादों से परे नहीं रहा। वैसे तो वह स्वभाव से पूरी तरह वामपंथी थी लेकिन उन पर कुछ हद तक दक्षिणपंथी पिता का भी प्रभाव था। सोमनाथ चटर्जी के पिता निर्मलचंद्र चटर्जी दक्षिणपंथी ब्राह्मण थे।
निर्मलचंद्र अखिल भारतीय ¨हदू महासभा के संस्थापकों में एक थे। सोमनाथ चटर्जी को राजनीति विरासत मिली थी। उनके पिता निर्मलचंद्र चटर्जी ने 1951-52 में लोकसभा चुनाव दक्षिण बंगाल से जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मदद से जीती थी। 1959 तक वह दक्षिणपंथी नेता के रूप में सक्रिय थे। लेकिन निर्मलचंद्र ने 1963 में लोकसभा चुनाव तब के अविभाजित कम्युनिस्ट पार्टी भाकपा के समर्थन से जीती। बाद में उन्होंने दक्षिणपंथी और वामपंथी दोनों के साथ बेहतर समन्वय कायम किया।
सबके साथ बेहतर समन्वय रखने के मामले में सोमनाथ के राजनीतिक जीवन पर उनके पिता का गहरा प्रभाव पड़ा। एक सांसद और बाद में लोकसभा अध्यक्ष के रूप में वह सभी दलों के प्रिय थे। सोमनाथ का जन्म 1929 में असम के तेजपुर में एक ¨हदू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। लेकिन उनकी स्कूली शिक्षा कोलकाता में हुई। कालेज की शिक्षा कोलकाता से पूरी करने के बाद वह 1950 में कैंब्रिज में पढ़ने के लिए ब्रिटेन गए।
वहां से कानून की पढ़ाई कर लौटने के बाद उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। वह 1968 में माकपा के साथ जुड़ गए। 1971 में वह अपने पिता के प्रभाव वाले दक्षिण बंगाल के बर्द्धवान लोकसभा चुनाव जीते। 1977 में वह कोलकाता के जादवपुर लोकसभा से चुनाव जीते। लेकिन 1984 में वह ममता बनर्जी से जादवपुर से चुनाव हार गए। बाद में वह 1985 से 2004 तक बोलपुर से चुनाव जीतते रहे। 10 बार सांसद रहे सोमनाथ चटर्जी को 2004 में सर्वसम्मति से लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया।
परमाणु करार पर यूपीए सरकार से माकपा के समर्थन वापस लेने के बावजूद सोमनाथ अध्यक्ष पद पर बने रहे। माकपा ने उन्हें स्पीकर पद से इस्तीफा देने का निर्देश दिया था। लेकिन उन्होंने पार्टी के निर्देशों का पालन नहीं किया। इसी बात पर माकपा ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया। हालांकि अंत तक वह ज्योति बसु के प्रिय बने रहे। सभी दलों के प्रिय सोमनाथ जीवन के अंतिम क्षण तक वामपंथी ही रहे।