माकपा नेता मोहम्मद सलीम बोले-बंगाल में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनाएंगे और आधे घंटे में चुनेंगे मुख्यमंत्री
बंगाल फतह करने को तृणमूल-भाजपा में चल रही जबर्दस्त जंग के बीच संयुक्त मोर्चा (वाममोर्चा-कांग्रेस-इंडियन सेक्युलर फ्रंट गठबंधन) भी पूरी ताकत झोंक रहा है। पूर्व सांसद व माकपा पोलितब्यूरो के सदस्य मोहम्मद सलीम हुगली जिले की चंडीतल्ला विधानसभा सीट से मैदान में हैं।
बंगाल फतह करने को तृणमूल-भाजपा में चल रही जबर्दस्त जंग के बीच संयुक्त मोर्चा (वाममोर्चा-कांग्रेस-इंडियन सेक्युलर फ्रंट गठबंधन) भी पूरी ताकत झोंक रहा है। पूर्व सांसद व माकपा पोलितब्यूरो के सदस्य मोहम्मद सलीम हुगली जिले की चंडीतल्ला विधानसभा सीट से मैदान में हैं। प्रचार की व्यस्तता के बीच उन्होंने विशाल श्रेष्ठ से खास बातचीत की। पेश हैं साक्षात्कार के मुख्य अंश :
प्रश्न : ब्रिगेड परेड ग्राउंड में कुछ समय पहले संयुक्त मोर्चा की रैली में उमड़ी अभूतपूर्व भीड़ से जीत को लेकर कितने उत्साहित हैं?
उत्तर : उत्साह पहले से ही था, तभी तो इतनी भीड़ हुई। ऐसी भीड़ एक दिन में इकट्ठा नहीं होती। सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस तो ब्रिगेड में भीड़ जुटाने की हिम्मत तक नहीं दिखा पाई। पीएम मोदी की ब्रिगेड रैली में भी एक चौथाई लोग ही उमड़े। उन्होंने तो हमारी ही भीड़ को फोटोशॉप्ड करके दिखाया। लॉकडाउन के दौरान हमारी पार्टी के संगठकों ने काफी काम किया। लोगों में मास्क, सैनिटाइजर व राशन बांटे, स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कीं, जिससे जनता से हमारा जुड़ाव गहरा हुआ। आइएसएफ के साथ और एक-दो महीने पहले समझौता हुआ होता तो और भी भीड़ होती।
प्रश्न : आइएसएफ से जुडऩे के बाद वाममोर्चा की धर्मनिरपेक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। क्या कहेंगे?
उत्तर : जो सवाल उठा रहे हैं, वे आइएसएफ का मतलब ही नहीं जानते। आइएसएफ का फुल फार्म है-इंडियन सेक्युलर फ्रंट। इसमें सांप्रदायिकता कहां से आ गई? पिछले 10 वषरें में बंगाल में जो भी सांप्रदायिक घटनाएं हुईं, उनमें आरएसएस व तृणमूल लिप्त थीं। कुछ सांप्रदायिक मुस्लिम संगठन भी शामिल थे लेकिन इन सब में आइएसएफ कहां था? यह एक सड़ी-गली सोच है। जो लोग धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे थे, उनकी दुकान बंद हो रही है इसलिए उनमें ज्यादा बेचैनी है।
प्रश्न : बंगाल में अब तक च्क्लास पॉलिटिक्स' होती आई है लेकिन इस बार च्आइडिंटिटी पॉलिटिक्स' देखने को मिल रही है। इसपर क्या कहेंगे?
उत्तर : दाíजलिंग में गोरखा को लेकर पिछले 10 वषरें से जो होता आ रहा है और मतुआ समुदाय को लेकर अभी जो चल रहा है, उसे पहचान की राजनीति कहते हैं। वाममोर्चा विकास और सामाजिक मसलों को उठाती आइ है। उद्योग, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा की बात कर रही है जबकि तृणमूल और भाजपा धर्म-वर्ग पर आधारित राजनीति करती है। लोग अब इससे तंग आ गए हैं।
प्रश्न : तृणमूल के पास मुख्यमंत्री पद के लिए ममता जैसा चेहरा है। भाजपा में चुनाव जीतने पर मुख्यमंत्री तय करने की परंपरा है। गठबंधन के पास चेहरे के तौर पर क्या है?
उत्तर : वाममोर्चा के पास सैकड़ों चेहरे हैं। हम बैनर-होìडग्स पर करोड़ों रुपये खर्च करके चेहरा तैयार नहीं करते। आंदोलन की राह पर चलकर ये चेहरे खुद से उभरते हैं। कोई मुख्यमंत्री का चेहरा देखकर वोट नहीं देता। जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है। बंगाल में भाजपा के पास चेहरा नहीं है इसलिए उसे मुंबई, गुजरात और इंदौर से लाना पड़ रहा है। बंगाल में उसके पास जो भी चेहरे हैं, सब तृणमूल के दागी हैं। हमारे पास ताजा चेहरे हैं लेकिन वे प्रचारित नहीं हैं।
प्रश्न : अगर गठबंधन की सरकार बनती है तो वाममोर्चा, कांग्रेस अथवा आइएसएफ में से किससे मुख्यमंत्री बनेगा?
उत्तर : यह जनता तय करेगी। जनप्रतिनिधि का चयन जनता करती है। निश्चित तौर पर संयुक्त मोर्चा की सरकार बनेगी और उसके आधे घंटे के अंदर हमारे विधायक दल की पहली बैठक में मुख्यमंत्री चुन लिया जाएगा।
प्रश्न : अगर भाजपा को बंगाल की सत्ता में आने से रोकने के लिए तृणमूल को समर्थन देने की जरुरत पड़ी तो करेंगे?
उत्तर : ऐसी स्थिति आएगी ही नहीं। बंगाल की जनता भाजपा को सूबे की सत्ता में देखना ही नहीं चाहती। भाजपा ने करोड़ों रुपये खर्च करके चुनाव से पहले जो गुब्बारा फुलाया था, वह फट गया है। भाजपा को 294 प्रत्याशी नहीं मिल पाए। तृणमूल से लेने पड़ गए थे।
प्रश्न : माकपा के स्टार प्रचारकों में प्रकाश करात का नाम शामिल क्यों नहीं है?
उत्तर : यह बंगाल का चुनाव है। जब लोकसभा का चुनाव होता है, तब केंद्रीय स्तर के नेता आते हैं। हमारी पार्टी भाजपा जैसी नहीं है, जहां हैदराबाद के नगर निकाय चुनाव में भी मोदी-शाह चले गए थे।