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स्वतंत्रता के 75वें साल में आकर माकपाइयों को तिरंगे को लेकर आई सद्बुद्धि, जानिए पूरी कहानी

CPI(M) to Hoist National Flag स्वतंत्रता के 75वें साल में आकर माकपाइयों को तिरंगे को लेकर सद्बुद्धि आई है। माकपा की केंद्रीय कमेटी ने इस बार 15 अगस्त को पार्टी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निर्णय लिया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 11 Aug 2021 12:20 PM (IST)Updated: Wed, 11 Aug 2021 12:20 PM (IST)
स्वतंत्रता के 75वें साल में आकर माकपाइयों को तिरंगे को लेकर आई सद्बुद्धि, जानिए पूरी कहानी
आखिर माकपा में यह परिवर्तन इतने वर्षो के बाद क्यों आया है?

कोलकाता, स्टेट ब्यूरो। In a First, CPI(M) to Hoist National Flag भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद तत्कालीन कम्युनिस्टों ने नारा दिया था ‘यह आजादी झूठी है।’ हालांकि बाद में अविभाजित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआइ) ने गलती को स्वीकार ली थी। परंतु इन वाम नेताओं का तर्क था कि जब आर्थिक स्वतंत्रता ही नहीं है तो फिर यह कैसी आजादी है! पर जब वक्त का पहिया घूमा तो भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति वाम नेतृत्व की आस्था भी बढ़ी थी। बाद में 1964 में सीपीआइ विभाजित हुआ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी) (माकपा) बनी। इसके बाद माकपाइयों ने जनप्रतिनिधित्व वाले लोकतंत्र में तो हिस्सा लिया, लेकिन कभी भी अपने पार्टी दफ्तरों में स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय ध्वज नहीं फहराया। स्वतंत्रता के 75वें साल में आकर माकपाइयों को तिरंगे को लेकर सद्बुद्धि आई है।

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दरअसल भाजपा के राष्ट्रवाद से टक्कर लेने के लिए माकपा की केंद्रीय कमेटी ने इस बार 15 अगस्त को देशभर के पार्टी कार्यालयों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निर्णय लिया है। अब तक माकपा मानव श्रृंखला सहित अन्य कार्यक्रम आयोजित कर गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस मानती थी, पर पार्टी कार्यालयों में तिरंगा झंडा नहीं फहराया जाता था। वहां कम्युनिस्टों का लाल झंडा लहराता था। यही वजह थी कि पार्टी के अंदर बार-बार सवाल उठाया जाता था कि क्या अभी तक माकपा के लिए यह आजादी झूठी है? अजादी के 75वें साल सीताराम येचुरी की पार्टी ने सोच और मानसिकता बदली है। कन्नूर में होने वाली आगामी पार्टी कांग्रेस से पहले माकपा केंद्रीय समिति की बैठक में इस बार अभूतपूर्व प्रस्ताव पारित कर माकपा के सभी कार्यालयों में स्वतंत्रता दिवस मनाने और राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निर्णय लिया गया। यह माकपा ही नहीं वामपंथियों के इतिहास में पहली बार होने जा रहा है।

आखिर माकपा में यह परिवर्तन इतने वर्षो के बाद क्यों आया है? इस पर कामरेडों के तर्क तो अलग-अलग हैं, लेकिन उनके सार को समङों तो उनका मानना है कि जिस तरह से भाजपा ने राष्ट्रवाद के जरिये देशवासियों को प्रभावित किया है, उससे मुकाबले के लिए रणनीति में परिवर्तन जरूरी है और इसी नीति के तहत यह निर्णय लिया गया है। सवाल है कि माकपा के विचार व नीति बदलने में इतना वक्त क्यों लगा? क्योंकि 34 वर्षो तक बंगाल पर राज करने वाली माकपा आज यहां अस्तित्व संकट से जूझ रही है। राष्ट्रवाद को लेकर माकपा नेता और क्या-क्या करते हैं और इसका उन्हें कितना फायदा मिला, यह वक्त बताएगा।


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