Move to Jagran APP

कोविड-19 महामारी काल में फाइलों में धूल फांक रहे बाल श्रम उन्मूलन कानून, सिलीगुड़ी और आसपास और बदत्‍तर हालात

कोविड-19 महामारी काल में निरंतर बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बाल श्रम उन्मूलन के लिए बनाए गए  कानूनों को क्रियान्वित करने के लिए तैयार किया गया फाइल यहां धूल फांक रहा है। इसकी सुध ना तो श्रम मंत्रालय और ना जिला प्रशासन को।

By Vijay KumarEdited By: Published: Sat, 12 Jun 2021 03:34 PM (IST)Updated: Sat, 12 Jun 2021 03:34 PM (IST)
कोविड-19 महामारी काल में फाइलों में धूल फांक रहे बाल श्रम उन्मूलन कानून, सिलीगुड़ी और आसपास और बदत्‍तर हालात
सिलीगुड़ी और उसके आसपास  20,000 से अधिक बाल श्रमिक

अशोक झा,सिलीगुड़ी! पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार सिलीगुड़ी। यहां कोविड-19 महामारी काल में निरंतर बाल श्रमिकों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण बाल श्रम उन्मूलन के लिए बनाए गए  कानूनों को क्रियान्वित करने के लिए तैयार किया गया फाइल यहां धूल फांक रहा है। इसकी सुध ना तो श्रम मंत्रालय के उपाय और ना जिला प्रशासन को। सिलीगुड़ी तराई, दुअर्स तथा बंद चाय बागान इसकी संख्या सबसे ज्यादा देखी जा सकती है। बाल श्रमिकों ,बाल तस्करी तथा पारिवारिक विवादों के एक काम करने वाली संस्था डिस्ट्रिक्ट लीगल एड फोरम के महासचिव अमित सरकार का कहना है कम से कम 20,000 से अधिक बाल श्रमिकों की संख्या है। जो विभिन्न नदियों के किनारे पत्थर तोड़ने ,बालू निकालने के साथ दुकानों, मोटर गैरेज, कचरा चुनने, रेस्टोरेंट्स, होटल्स तथा रात्रि को फैक्ट्रियां में काम करते हैं। सबसे ज्यादा ऐसे बाल मजदूर राजगंज से खोड़ीबाड़ी के बीच देखे जा सकते हैं। इस संबंध 20 मई को डिस्ट्रिक्ट लेबर वेलफेयर डिपार्टमेंट डागापुर को इस संबंध में पत्र लिखा है। इसकी प्रतिलिपि जिलाधिकारी समेत अन्य संबंधित अधिकारियों को भी दिया गया है।

loksabha election banner

काम के बोझ तले बीत रहा बचपन

बचपन इंसान के जीवन का सबसे हसीन समय है बचपन। ना तो किसी बात की चिंता और ना ही कोई जिम्मेदारी। हर समय मस्ती भरी हंसी-ठिठौली, खेलना-कूदना और पढऩा। लेकिन सबका बचपन एक जैसा हो यह भी जरूरी नहीं।परिवार की आर्थिक तंगी के साथ बेबसी और लाचारी के अलावा परिजनों की प्रताडऩा के कारण कुछ बच्चों की जिंदगी बालश्रम के दलदल में धंसता चला जाता है। ऐसे बच्चों का बालपन विद्यालय में पोथी-पन्नों और मित्रों के बीच नहीं, बल्कि दूसरों के घर, होटल, ढाबों से लेकर औद्योगिक कारखानों में बर्तन साफ करने से लेकर झाड़ू-पोंछा लगाने और छैनी, हथौड़ा, औजारों के बीच बीतता है।

बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या

कोरोना महामारी के कारण आर्थिक संकट से गुजर रहा है। उद्योग-धंधों के साथ रोजगार चौपट होने से सबसे ज्यादा प्रभावित निचले तबके के लोग ही हुए है। इसमें उत्तर बंगाल सबसे ज्यादा प्रभावित है।यही वजह है कि एक साल में ही बाल श्रमिकों की तादाद काफी बढ़ गई है।केंद्र से लेकर राज्य सरकार बाल मजदूरी के कानून के तहत काफी योजनाओं को लागू तो करतीं है, लेकिन इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाने बाले सरकार के नुमाइंदे ही इन गरीब बाल मजदूरों की योजनाओं व पुनर्वास के मिलने वाली सुविधाओं को योजनाबद्ध तरीके से डकार जाते है। सिस्टम की उदासीनता का भुगतान बच्चों को मजदूरी कर चुकाना पड़ता है।इसी तरह अनुच्छेद-24 के तहत चौदह साल से कम उम्र के किसी भी बच्चे को किसी कारखाने या खदान या किसी अन्य खतरनाक रोजगार में नियोजित नहीं किया जाएगा।2025 तक बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने का लक्ष्य रखा है देखना होगा इस दिशा में विश्व समुदाय कैसे मजबूती से आगे बढ़ता है। बाल श्रम को दूर करने के लिए देश के भीतर बहुत से कठोर कानून व नीतियां भी बनाई गई हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से कारखानों, फैक्ट्रियों व खानों में जोखिम भरे कार्य कराना अपराध है। 

क्यों मनाया जाता है बाल श्रम उन्मूलन दिवस

प्रत्येक साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है। मकसद बच्चों के साथ हो रहे अपराध के लिए लोगों को जागरूक करना होता है। 14 साल से कम उम्र के बच्चों को इस काम से निकाल कर उन्हें शिक्षा दिलाने का उद्देश्य भी होता है। सरकार ने बाल मजदूरी के खिलाफ सख्त कानून बनाया है। बावजूद प्रशासनिक उदासीनता के कारण यह कानून जिले में कारगर कम फाइलों में अधिक सख्त कानून जितने मर्जी बना दिए जाएं लेकिन जब तक धरातल पर इन्हें प्रभावशाली तरीके से लागू नहीं किया जा सकता। तब तक बाल श्रम निषेध कानूनों की फेहरिस्त ही लंबी होगी इन कानून के हाथ लंबे नहीं हो सकते। इसके साथ ही समाज को भी बच्चों के प्रति अपनी सोच बदलनी होगी। बच्चों को काम देने का अहसान करने की बजाए उसके व्यस्क अभिभावकों को रोजगार दिया जाना चाहिए।हम सबका दायित्व बनता है वह बचपन जिसमें बच्चा सपनों के पंखों से उड़ान भरना सीखता है उसमें इन पंखों को काट कर आपाहिज करने की बजाए खुला आसमान देने की जरूरत है। क्या कहता है बाल श्रम कानून: सिलीगुड़ी बार एसोसिएशन के अधिवक्ता अत्रिदेव शर्मा का कहना है कि संशोधित अधिनियम के जरिए उल्लंघन करने वालों के लिए सजा को बढ़ाया है।

बच्चों को रोजगार देने वालों को छह महीने से दो साल की जेल की सजा होगी। 20,000 से लेकर 50,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों लग सकेगा। पहले तीन महीने से एक साल तक की सजा और 10,000 से 20,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान था। दूसरी बार अपराध में संलिप्त पाए जाने पर नियोक्ता को एक साल से लेकर तीन साल तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। कानून के मुताबिक किसी भी बच्चे को किसी भी रोजगार या व्यवसाय में नहीं लगाया जाएगा। हालांकि स्कूल के समय के बाद या अवकाश के दौरान परिवार की मदद करने की छूट दी गई है। इसके अलावा बाल अधिनियम-1933, बाल रोजगार अधिनियम -1938, भारतीय कारखाना अधिनियम-1948, बागान श्रम अधिनियम-1951, खान अधिनियम-1952, बाल श्रम गिरवीकरण अधिनियम तथा बाल श्रमिक प्रतिबंध एवं नियमन अधिनियम-1986 आदि कानून व नीतियां बाल मजदूरों की सेवाओं, कार्यदशाओं, कार्य के घंटे, मजदूरी दर आदि का नियमन करते हैं।

बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986, के अनुसार "बच्चे" का मतलब है एक व्यक्ति जिसने अपनी उम्र के 14 वर्ष पूरा न किए हों। यह अधिनियम, अधिनियम की अनुसूची के भाग क एवं ख (धारा 3) में शामिल 18 व्यवसाय और 65 प्रक्रियाओं आदि उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति को प्रतिबंधित करता है।संविधान में स्थापित अनुच्छेद 21-क में बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार कानून उनको 6 से 14 साल की उम्र तक सरकार द्वारा क़ानून के जरिए निर्धारित रूप से निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का मौलिक अधिकार देता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.