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West Bengal : कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रोतिक प्रकाश बनर्जी का निधन

न्यायाधीश के रूप में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लैंगिक समानता को बरकरार रखते हुए निर्णय दिए आईपीएस राजीव कुमार को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा देने का आदेश पारित किया था

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 03 Jul 2020 12:04 PM (IST)Updated: Fri, 03 Jul 2020 12:04 PM (IST)
West Bengal : कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रोतिक प्रकाश बनर्जी का निधन
West Bengal : कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रोतिक प्रकाश बनर्जी का निधन

कोलकाता, राज्य ब्यूरो। कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस प्रोतिक प्रकाश बनर्जी का शुक्रवार सुबह हृदय गति रुकने से निधन हो गया। वह 51 वर्ष के थे। उन्हें सितंबर 2017 में कलकत्ता उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्होंने 25 जनवरी, 1995 को बार में दाखिला लिया और कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की।

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कलकत्ता में उच्च न्यायालय के बार एसोसिएशन के वरिष्ठ अधिवक्ता और भूतपूर्व सचिव स्वर्गीय मुकुल प्रकाश बनर्जी और दिवंगत लेखा बनर्जी, एडवोकेट के पुत्र न्यायमूर्ति बनर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय के कलकत्ता बॉयज़ स्कूल और यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ़ लॉ से शिक्षा प्राप्त की। बार में रहते हुए उन्होंने कई विषयों पर टिप्पणियां लिखीं, जिनमें बंगाल एक्साइज एक्ट, आवश्यक वस्तु अधिनियम, मूल पक्ष नियम और अपीलीय पक्ष नियम शामिल हैं। वह एनयूजेएस में एक अतिथि व्याख्याता रहे और कॉन्ट्रैक्ट, कंपनी और "क्लिनिक" क्लास लेते रहे। वे "प्रोतिक दा" नाम के से, लॉओक्टोपस पर एक ब्लॉग लिखते थे।

एक न्यायाधीश के रूप में, उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लैंगिक समानता को बरकरार रखते हुए निर्णय दिए। बाल देखभाल अवकाश से वंचित करने के मामले में न्यायमूर्ति बनर्जी ने कहा था कि "लोकतांत्रिक संवैधानिकता की प्रामाणिक मांगों के साथ पितृसत्ता असंगत है, इसकी दृढ़ता लोकतंत्र के लिए एक सतत खतरा है।" पिछले साल, उन्होंने कानून के एक सवाल के जवाब में सनसनीखेज सीबीआई बनाम कोलकाता पुलिस मामले में आईपीएस राजीव कुमार को गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा देने का आदेश पारित किया था।

इसमें विधि प्रश्न था कि "क्या सीबीआई ऐसे व्यक्ति की हिरासत में पूछताछ कर सकती है, जो अभियुक्त नहीं है?" उन्होंने एक मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो की वैधता के बारे में भी सवाल उठाए थे और मामले को बड़ी पीठ को भेजा था। उन्होंने इस आधार पर एक मामले की सुनवाई करने से भी इनकार कर दिया कि वकील उनके 'फेसबुक मित्र' थे। 


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