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बुद्धदेव भट्टाचार्य ने माकपा के दबाव में आकर पद्मभूषण को स्वीकार नहीं किया, दिलीप घोष ने किया दावा

सूर्यकांत मिश्रा ने कहा-बुद्धदेव बाबू के पक्ष में अभी अध्ययन करना या बार-बार उठना-बैठना संभव नहीं है। हमें जब उनके परामर्श की जरूरत होती है तो उनकी बातें सुनकर उसे लिख लेना पड़ता है फिर पहले उन्हें सुनाना पड़ता है। दिमागी तौर पर हालांकि वे पहले से ज्यादा सक्रिय हैं।

By Vijay KumarEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 05:58 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 05:58 PM (IST)
बुद्धदेव भट्टाचार्य ने माकपा के दबाव में आकर पद्मभूषण को स्वीकार नहीं किया, दिलीप घोष ने किया दावा
भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने गुरुवार को किया दावा

राज्य ब्यूरो, कोलकाता : भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने गुरुवार को दावा किया कि बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने माकपा के दबाव में आकर पद्मभूषण पुरस्कार को स्वीकार नहीं किया। घोष ने कहा कम्युनिस्ट केकड़े की तरह होते हैं। जिस तरह एक बालटी में बहुत से केकड़ों को रख देने से वे किसी को चढ़कर बाहर निकलने नहीं देते। एक-दूसरे की टांग खींचते रहते हैं, उसी तरह कम्युनिस्ट भी किसी को ऊपर चढ़ने नहीं देते। घोष ने इस बाबत बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी का उदाहरण पेश किया।

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उन्होंने ने कहा कि कम्युनिस्टों ने ज्योति बसु को देश का प्रधानमंत्री बनने नहीं दिया था और सोमनाथ चटर्जी जैसे दिग्गज माकपा नेता का भी पार्टी से बहिष्कार कर दिया था। बुद्धदेव भट्टाचार्य को उन्होंने पार्टी अनुशासन का हवाला देकर पद्मभूषण पुरस्कार लेने नहीं दिया। बुद्धदेव बाबू पुरस्कार ग्रहण करना चाहते थे लेकिन दबाव के कारण नहीं कर पाए। दूसरी तरफ बंगाल माकपा के सचिव सूर्यकांत मिश्रा ने ट्विटर पर एक अपील पोस्ट कर इसके बुद्धदेव का बताया है।

ट्वीट में लिखा है कि बुद्धदेव बाबू ने सभी से अनुरोध किया है कि उनकी वर्तमान शारीरिक स्थिति को देखते हुए सरकारी अधिकारी समेत कोई भी पद्म भूषण पुरस्कार के लिए उन्हें फोन न करें अथवा उनसे मिलने न आएं। इस बारे में डाक से उनके घर या माकपा की राज्य कमेटी के कार्यालय में संपर्क किया जा सकता है।

सूर्यकांत मिश्रा ने कहा-'बुद्धदेव बाबू के पक्ष में अभी अध्ययन करना या बार-बार उठना-बैठना संभव नहीं है। हमें जब भी उनके परामर्श की जरूरत होती है तो उनकी बातें सुनकर उसे लिख लेना पड़ता है, फिर पहले उन्हें सुनाना पड़ता है। दिमागी तौर पर हालांकि वे पहले से ज्यादा सक्रिय हैं। हमने उनकी बातों को ट्वीट के माध्यम से हूबहू रखने की कोशिश की है।'


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