Move to Jagran APP

मिसाल: बीएसएफ के जांबाज कमांडेंट हरविंदर सिंह बेदी, जिन्होंने नामुमकिन को कर दिखाया मुमकिन, बंद करा दी तस्करी

मालदा जिले में 44वीं बटालियन के इलाके में पिछले ढाई वर्षों से नहीं सफल हुई तस्करी की एक भी घटना पहले इस इलाके से मवेशियों से लेकर जाली नोटों हथियारों व अन्य सामानों की तस्करी सहित गैर कानूनी गतिविधियों के लिए कुख्यात रहा है।

By Priti JhaEdited By: Published: Sun, 09 May 2021 08:52 AM (IST)Updated: Sun, 09 May 2021 08:52 AM (IST)
मिसाल: बीएसएफ के जांबाज कमांडेंट हरविंदर सिंह बेदी, जिन्होंने नामुमकिन को कर दिखाया मुमकिन, बंद करा दी तस्करी
बीएसएफ के जांबाज कमांडेंट हरविंदर सिंह बेदी,।

कोलकाता, राजीव कुमार झा। बांग्लादेश की सीमा से सटा बंगाल का मालदा जिला मवेशियों से लेकर जाली नोटों, हथियारों व अन्य सामानों की तस्करी सहित गैर कानूनी गतिविधियों के लिए कुख्यात रहा है। इनमें खासकर सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की 44वीं बटालियन के अंतर्गत पड़ने वाले इलाके आइओ, ओल्ड मालदा एवं इंग्लिश बाजार समेत यहां से गुजरने वाली महानंदा नदी के जरिए कुछ साल पहले तक बड़े पैमाने पर मवेशियों व अन्य सामानों की बांग्लादेश में तस्करी होती थी, जिसके लिए यह क्षेत्र काफी बदनाम था। तस्करों व असामाजिक तत्वों ने इस सीमावर्ती क्षेत्र में इस प्रकार अपनी जड़े जमा ली थी कि बीएसएफ के बड़े- बड़े अधिकारियों को भी नहीं लगता था कि यहां कभी तस्करी रुकने वाली है।

loksabha election banner

यह मान लिया गया था कि गो तस्करों के नेक्सस को तोड़ना असंभव है एवं खासकर मवेशियों की तस्करी को यहां से किसी भी सूरत में रोका नहीं जा सकता। लेकिन जून, 2018 में मालदा के इस क्षेत्र में 44वीं बटालियन की तैनाती के बाद इसकी कमान संभाल रहे बीएसएफ के जांबाज कमांडेंट हरविंदर सिंह बेदी ने वह अभूतपूर्व काम कर दिखाया जो बीएसएफ के बड़े- बड़े अधिकारियों को भी नामुमकिन लगता था। उन्होंने लगभग 65 किलोमीटर लंबे इस बटालियन के सीमा क्षेत्र में न केवल तस्करी व गैरकानूनी गतिविधियों को पूरी तरह बंद करवा दी है, बल्कि इसमें शामिल लोगों को मुख्यधारा में लौटने पर विवश कर दिया। आज इस क्षेत्र में तस्करी बीते दिनों की बात हो चुकी है।

बेदी का दावा है कि पिछले ढाई वर्षों में इस इलाके से तस्करी की एक भी घटना सफल नहीं हुई है। यानी जहां हर साल नदी के जरिए हजारों मवेशियों की तस्करी होती थी वह शून्य हो गई है।तस्कर अब उनके नाम सुनते ही डर से थरथर कांपते हैं। बड़ी संख्या में तस्करों की धरपकड़ के साथ दर्जनों कुख्यात तस्करों को उन्होंने इलाका तक छुड़वा दिया। यानी तस्करों व अपराधियों की उन्होंने कमर तोड़ कर रख दी है।अब इस क्षेत्र से तस्करी के बारे में 50 बार सोचना पड़ता है। महीने या दो महीने में कभी छोटी-छोटी तस्करी की कोशिश भी की जाती है तो उसे सफल नहीं होने दिया जाता।

तस्करी में शामिल रहे युवा कर रहे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी

तस्करी जैसे गैर कानूनी काम करने वाले लोग आज साफ-सुथरे रोजगार कर सम्मान पूर्वक जीवन यापन कर रहे हैं। इतना ही नहीं बीएसएफ कमांडेंट की प्रेरणा से इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में अवैध कार्यों में शामिल रहे युवा आज मुख्यधारा में लौट कर अच्छी पढ़ाई- लिखाई व प्रतियोगी परीक्षाओं तक की तैयारी कर रहे हैं। इनमें से कईयों ने तो नौकरी भी हासिल कर ली है। कमांडेंट की दूरदर्शी सोच से बॉर्डर एरिया के अंतर्गत आने वाले युवाओं का भविष्य संवारने के लिए 44वीं बटालियन की ओर से फ्री कोचिंग भी चलाई जा रही है।

तस्करों का फलता- फूलता था पूरा साम्राज्य

दरअसल, यह वही इलाका है जहां बड़ी तादाद में सक्रिय तस्करों का पूरा साम्राज्य फलता -फूलता था। बेदी ने बताया- '44वीं बटालियन की तैनाती से पूर्व यह क्षेत्र मुख्यत: महानंदा नदी के जरिए गो तस्करी के लिए कुख्यात था। हर वर्ष हजारों की संख्या में मवेशियों की भारत से बांग्लादेश में तस्करी की जाती थी, जिससे लोगों की धार्मिक भावना को आहत होती ही थी, साथ में पर्यावरण एवं नदी में अत्यधिक प्रदूषण होता था। इससे क्षेत्र के लोग त्रस्त हो गए थे एवं यह नदी जो कि उनकी जीवन रेखा है, उससे दूर होते जा रहे थे। यही नहीं असामाजिक तत्वों का यहां इतना बोलबाला था कि शाम ढलते ही महिलाओं को बेटियों का घर से निकलना मुश्किल हो जाता था, ना जाने किसके साथ कब दुराचार जैसी घटनाएं हो जाए।'

बेदी के नेतृत्व में आया अभूतपूर्व परिवर्तन

वहीं, अब यहां के स्थानीय लोग भी इस बात को मानते हैं कि कमांडेंट बेदी के आने के बाद से इस इलाके में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है और इस क्षेत्र का भविष्य उज्जवल हुआ है।मालदा के उस पूरे क्षेत्र में जहां यह बटालियन तैनात है अब हर प्रकार की तस्करी एवं गैर कानूनी गतिविधियों पर पूरी तरह अंकुश लग गया है। दरअसल, जून 2018 में इस बटालियन की कमान संभालते ही बेदी ने तस्करी व गैरकानूनी गतिविधियों को खत्म करने की मुहिम छेड़ दी। जिन जगहों से तस्करी होती थी उन-उन इलाकों और नदी घाटों में उन्होंने जवानों को तैनात कर दिया और दिन- रात पेट्रोलिंग बढ़ा दी। इसके फलस्वरूप जल्द ही दो दर्जन से ज्यादा तस्कर व अपराधी पकड़े गए। इसके बाद डर से कईयों ने इलाका छोड़ दिया जबकि बाकी मुख्य धारा में शामिल हो चुके हैं। यानी कुछ ही महीनों के भीतर उन्होंने तस्करों व अपराधियों में खौफ पैदा कर शिकंजा कस दिया।

कमांडेंट बेदी का कहना है कि इस सीमावर्ती क्षेत्र में गैरकानूनी गतिविधियां भी तकरीबन नगण्य हो गई है। महिलाएं व बेटियां अब 12 बजे रात में भी अकेले यहां कहीं आना- जाना चाहें तो वह निडर होकर जा सकती हैं, किसी में भी उनके साथ छेड़छाड़ करने की हिम्मत नहीं है। पूरे क्षेत्र में आज अमन-चैन का वातावरण है और

स्थानीय लोग भी इससे प्रसन्न हैं। हर छोटी- बड़ी परेशानियों में बीएसएफ सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों की आगे बढ़कर मदद भी कर रही है, जिससे बीएसएफ के प्रति उनका विश्वास भी बढ़ा है।

अब तक 1.97 करोड़ के तस्करी के सामान व 58 तस्कर पकड़े

आंकड़े बताते हैं कि जून, 2018 से अब तक इस क्षेत्र से कुल 1.97 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य के तस्करी के सामानों को जब्त किया गया है। इस अवधि में 58 तस्कर भी पकड़े गए। इनमें सबसे ज्यादा साल 2018 में 1.34 करोड़ के सामानों की जब्ती हुई जिनमें अधिकतर मवेशी हैं, और 26 तस्कर पकड़े गए। इससे तस्करों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ और जो पकड़े गए उन्हें जेल जाना पड़ा, जबकि बाकी को डर से इलाके से ही पलायन कर रोजी- रोटी कमाने के लिए निकलना पड़ा।

इस क्षेत्र में तस्करी बंद होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2018 में जहां 1.34 करोड़ के सामानों की जब्ती हुई, वह 2019 में घटकर 33.87 लाख पर आ गई, 2020 में 23.44 एवं 2021 में घटकर 5.94 लाख पर आ गई है। इसी तरह 2018 में 26 तस्कर पकड़े गए, 2019 में 16, 2020 में 14 एवं 2021 में यह दो पर आ गई है। यानी पूरी तरह नकेल कस दिया है।

तस्करी के सरगनाओं द्वारा धमकियां भी मिलीं, पर नहीं कि किसी की परवाह

कमांडेंट बेदी बताते हैं कि जिस तरह से इस क्षेत्र में तस्करी का धंधा दशकों से फल-फूल रहा था, उसे रोकना इतना आसान नहीं था। शुरुआत में जब उन्होंने तस्करों के खिलाफ सख्ती बरतनी शुरू की तो उनको यहां सक्रिय तस्करी गिरोह के सरगनाओं की ओर से अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न माध्यमों से बार-बार धमकियां भी मिलीं, हालांकि उन्होंने इन सबकी कोई परवाह नहीं की। प्रलोभन भी दिया गया, लेकिन उन्होंने एक नहीं सुनी। उन्होंने तस्करों व दलालों की धरपकड़ का अभियान जारी रखा। उन्होंने बताया कि पहले इस इलाके के ज्यादातर लोग तस्करी व दलाली के धंधे से जुड़े थे, क्योंकि यह उनके लिए सबसे आसान काम व कमाई का जरिया था। दूसरा, इस बटालियन क्षेत्र के बड़े इलाके में सीमा पर फेंसिंग (बाड़) तक नहीं लगी है जिससे उन्हें तस्करी में आसानी होती थी। ऐसे में तस्करी रोकना यहां बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था। उन्होंने बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान भी चलाया। इसका भी असर हुआ। तस्करी रोकने में कुछ स्थानीय लोगों ने भी मदद की, जिससे तस्करों को पकड़ सके।‌

बीएसएफ डीआइजी भी बोले, इस क्षेत्र में पूरी तरह बंद हो गई है तस्करी

इधर, बीएसएफ के दक्षिण बंगाल फ्रंटियर के प्रवक्ता व डीआइजी सुरजीत सिंह गुलेरिया ने भी बताया कि 44वीं बटालियन ने बेहतरीन काम किया है और इस क्षेत्र में पिछले दो-ढाई साल से तस्करी पूरी तरह बंद हो गई है।

बहुत ही सख्त व अनुशासित अधिकारी हैं बेदी

यह बताना आवश्यक है कि ऐसे समय में जब बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा के जरिए गो तस्करी के मामले में सीबीआइ कुछ माह पहले बीएसएफ कमांडेंट सतीश कुमार को गिरफ्तार कर चुकी है। कुमार दिसंबर 2015 से मई 2017 तक मालदा में ही बीएसएफ की 20वीं व 36वीं बटालियन में तैनात रहे हैं। तस्करों से कथित सांठगांठ को लेकर कुमार के अलावा कई और बीएसएफ अधिकारी व कर्मी भी सीबीआइ के रडार पर हैं और इस प्रकरण से बीएसएफ की छवि भी धूमिल हुई हैं। लेकिन बीएसएफ में बेदी जैसे कर्तव्यनिष्ठ व ईमानदार अधिकारियों की भी कमी नहीं है, जो अपने मूल्यों व आदर्शों के साथ कभी समझौता नहीं किया और तस्करों व सीमा अपराधियों के खिलाफ मजबूती से लड़ रहे हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी की मानें तो कमांडेंट बेदी स्वभाव में जितने सरल हैं, काम में उतने ही सख्त व अनुशासित हैं। जहां भी वे रहे हैं उन्होंने अपनी यूनिट में करप्शन के प्रति जीरो टॉलरेंस स्थापित की है। अगर इनके यूनिट में कोई भी जरा सा भी भ्रष्टाचार आदि की कोशिश करता है तो वे उससे बेहद ही सख्ती से निपटते हैं। इसमें वे जरा भी समझौता नहीं करते। ये उनकी एक विशेष खासियत है।

नक्सलियों से लेकर आतंकियों तक से लोहा ले चुके हैं सुपर कॉर्प बेदी

1995 में असिस्टेंट कमांडेंट के तौर पर बीएसएफ में भर्ती होने वाले सुपर कॉर्प बेदी अपने 26 साल के सेवाकाल में देश की दुर्गम एवं चुनौतीपूर्ण सीमाओं जिसमें रण ऑफ कच्छ (गुजरात), महारानी बेरा एवं पानीसागर (त्रिपुरा), तुरा (मेघालय) एवं श्रीकरनपुर (राजस्थान) प्रमुख है, में सराहनीय कार्य कर चुके हैं। उन्होंने जम्मू कश्मीर के सोपोर व बारामुला, जीरीबाग (मणिपुर) एवं कांकेर (छत्तीसगढ़) में काउंटर इनसरजेंसी, एंटी मिलिटेंसी एवं एंटी नक्सल ऑपरेशन में व्यक्तिगत उदाहरण पेश करते हुए खुद आगे बढ़- बढ़ कर आतंकियों और नक्सलियों से लोहा ले चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने बल के विजिलेंस अधिकारी के तौर पर भी सराहनीय कार्य किया है।

छत्तीसगढ़ में तैनाती के दौरान नक्सलियों के गढ़ में कायम किया था वर्चस्व

मई 2017 में बेदी ने 44वीं बटालियन के कमांडेंट का कार्यभार संभाला था। उस समय यह बटालियन अति संवेदनशील नक्सलग्रस्त क्षेत्र कांकेर (छत्तीसगढ़) में तैनात थी। उन्होंने वहां अपनी बटालियन को मजबूत एवं प्रभावी नेतृत्व प्रदान करते हुए स्वयं अत्यधिक संवेदनशील नक्सलग्रस्त क्षेत्रों में ऑपरेशन किए, जिसमें उन्हें काफी अच्छी सफलता मिली एवं नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले कई क्षेत्रों पर बटालियन ने अपना वर्चस्व कायम किया। जिसके कारण उन क्षेत्रों में पुलिस एवं बीएसएफ के कैंप स्थापित हुए। जून 2018 में 44वीं बटालियन बंगाल के मालदा जिले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात हुई। यहां भी बेदी के नेतृत्व में इस बटालियन ने तस्करों के छक्के छुड़ाकर दूसरी बटालियनों के लिए भी एक आदर्श स्थापित कर उन्हें सही दिशा दिखाई है। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.