उत्तर बंगाल में भाजपा की मजबूती बनी तृणमूल के लिए बड़ी चुनौती
सियासी जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री जानती हैं कि उत्तर बंगाल उनके लिए अहम हो सकता है और वह तृणमूल का नंबर ऊपर या नीचे लेकर जा सकता है।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। पश्चिम बंगाल में खासकर उत्तर बंगाल में पिछले कुछ सालों में भाजपा ने तेजी से अपनी जड़ें मजबूत की हैं और यह तृणमूल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनकर सामने आ खड़ी हुई है। इसके मद्देनजर ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले ही अहम संगठनात्मक फेरबदल का फैसला लिया, ताकि वह पार्टी की भीतरी कलह को हल कर सकें।
दरअसल, काफी वक्त से उनकी पार्टी पुराने लोगों और नए नेताओं के बीच आपसी कलह की समस्या का सामना कर रही है। बनर्जी इस चीज को लेकर कई बार पार्टी नेताओं को इसे हल करने को लेकर चेता भी चुकी हैं। हाल ही में पार्टी नेताओं के साथ एक वीडियो कांफ्रेंस में उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल को मजबूत करने को लेकर बेबसी जाहिर कर अहम बदलाव कर नए चेहरों को लाने की बात कही थी।
राजनीतिक जानकार कपिल ठाकुर मानते हैं कि उत्तरी बंगाल में पुरुलिया के अतिरिक्त उत्तर 24 परगना और जंगलमहल (जहां माना जा रहा है कि तृणमूल अपनी पकड़ खो रही है) लड़ाई में बेहद अहम होंगे, क्योंकि यहां बंगाल की 294 विस सीटों में से 54 विधानसभा सीटें आती हैं और तृणमूल की किस्मत बहुद हद तक इससे भी तय होगी कि वह इस क्षेत्र में कैसा प्रदर्शन करती है।
बकौल ठाकुर, “आपने पाया होगा कि बनर्जी अब सामुदायिक कार्ड चलना शुरू कर चुकी हैं। वह कभी राजवंशी या कमतापुरी कार्ड खेलती हैं। कभी अनुकूलचंद्र का पत्ता खोलती हैं, तो कभी मतुआ कार्ड खेलती हैं। वैसे, बंगाल में ये कोई नई चीज नहीं है, क्योंकि अधिकतर पार्टियां राजवंशियों को लुभाने का प्रयास करती हैं, जो कि उत्तर बंगाल के किसी भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।”
उत्तर बंगाल तृणमूल के लिए काफी अहम
सियासी जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री जानती हैं कि उत्तर बंगाल उनके लिए अहम हो सकता है और वह तृणमूल का नंबर ऊपर या नीचे लेकर जा सकता है, क्योंकि वह यह भी जानती हैं कि यह वही क्षेत्र है, जिसने बंगाल में भाजपा को अपना संख्याबल बढ़ाने में मदद की। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा दो सीट से बढ़कर 18 सीटों पर उभर कर आई थी।
मार्च 2020 में ममता ने अपनी मेगा रैली के लिए मालदा को चुना था, जहां पर 80 हजार से अधिक पार्टी कार्यकर्ताओं से उन्होंने संवाद किया था। मालदा को चुनने का एक कारण यह भी है- वहां पर 50 फीसद आबादी मुस्लिम है। तृणमूल आज तक इस क्षेत्र में आज तक एक भी सीट नहीं (2016 के विस चुनाव के बाद को छोड़कर) जीत पाई है।