बांग्ला भाषी युवक अर्णब घोष ने सात समंदर पार बढ़ाया अपनी मातृभाषा बांग्ला का मान
ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में कोलकाता के बांग्ला भाषी युवक अर्णब घोष रॉय के अदम्य संघर्ष से वहां के स्वास्थ्य विभाग की आधिकारिक वेबसाइट बांग्ला में शुरू हुई है। इससे सात समंदर पार उनकी मातृभाषा बांग्ला के साथ देश का भी नाम ऊंचा हुआ है..
कोलकाता, इंद्रजीत सिंह। देश की सांस्कृतिक राजधानी कोलकाता से लगभग नौ हजार किलोमीटर दूर ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य की राजधानी मेलबर्न में महान क्रिकेटर तथा बंग संतान सौरव गांगुली ने जनवरी, 2000 में भारतीय कप्तान के तौर पर एकदिवसीय मैच में पहला शतक जड़ कर बंगाल के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया था। ठीक उसके दो दशक बाद बंगाल के एक और लाल अर्णब घोष रॉय ने उसी शहर में रहकर एक नई मिसाल कायम की है।
जी हां, उनकी पहल से ही ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य के स्वास्थ्य विभाग की आधिकारिक वेबसाइट बांग्ला में शुरू हुई है। यह बंगाल के साथ देश के लिए फक्र की बात तो है ही। इसके साथ इससे वहां रहने वाले बड़ी संख्या में बांग्ला भाषियों को काफी सुविधा मिली है।
दरअसल विक्टोरिया राज्य में सात दशक से बांग्ला भाषी रह रहे हैं। इनकी तादाद लाखों में है और लगातार यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। फिर भी किसी आधिकारिक जगह पर बांग्ला भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। ऐसे हालात में खासकर बुजुर्ग बांग्ला भाषियों बहुत प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। खासकर स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं को प्राप्त करने में उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। यह समस्या मेलबर्न में रहने वाले 38 वर्षीय अर्णब घोष रॉय को वर्षो से काफी परेशान कर रही थी। इसके बाद उन्होंने सोचा यदि भाषा की बाधा को हटा दिया जाए यानी बांग्ला में अगर आधिकारिक वेबसाइट शुरू की जाए तो बुजुर्गो को विभिन्न सरकारी सुविधाएं प्राप्त करना आसान हो सकता है।
आधिकारिक वेबसाइट को बांग्ला में शुरू कराने की ठानी :
इसी बीच विक्टोरिया राज्य में कोरोना का संक्रमण भी तेजी से फैला था। इसके बाद ही उन्होंने स्वास्थ्य विभाग की आधिकारिक वेबसाइट बांग्ला में भी शुरू कराने के लिए ठान ली। अर्णब ने सबसे पहले इस मामले में स्थानीय सांसद से चर्चा की। इसके बाद उन्होंने मेलबर्न विश्वविद्यालय और विक्टोरिया विश्वविद्यालय में इस मुद्दे को चर्चा के लिए उठाया। वहां से प्रस्ताव शासन स्तर पर भेजा गया।
दरअसल ऑस्ट्रेलिया में सरकार की नीति को आकार देने में विश्वविद्यालयों की अहम भूमिका है। इसके बाद विक्टोरिया राज्य प्रशासन ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर बांग्ला भाषा को मान्यता दे दी। जहां स्वास्थ्य से संबंधित सभी दिशानिर्देश बांग्ला में लिखे गए हैं। अर्णब ने कहा कि दरअसल ऑस्ट्रेलिया में इलाज का पूरा जिम्मा सरकार उठाती है। सभी को मेडिकेयर कार्ड दिया जाता है। साधारण लोग उस कार्ड को दिखाकर चिकित्सा सेवा प्राप्त कर सकते हैं। बांग्ला में वेबसाइट शुरू होने से वहां बड़ी संख्या में रहने वाले बांग्ला भाषियों को काफी सुविधा मिली है। खासकर उन बुजुर्ग बांग्ला भाषियों को जिन्हें अंग्रेजी की जानकारी कम है।
एक मध्यम-वर्गीय परिवार से है ताल्लुक :
अर्णब कोलकाता से सटे बारासात के एक मध्यम-वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिताजी राज्य सरकार के कर्मचारी थे। परिवार के वित्तीय संकट के बावजूद अध्ययन करने के लिए 2003 में वह ऑस्ट्रेलिया चले गए। दो साल बाद उन्होंने फेडरल यूनिवर्सटिी से वाणिज्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। 2007 में वह इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक अकाउंटेंट्स के एसोसिएट सदस्य बने। 2009 में उन्हें वहां की नागरिकता का अधिकार मिला। 2014 में विक्टोरिया विश्वविद्यालय से एमबीए किया। फिलहाल वह सॉलिसिटर जनरल बनने के उद्देश्य से विक्टोरिया विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं।
अगला संघर्ष बांग्ला को दूसरी भाषा का दर्जा दिलाने का :
अर्णब का कहना है कि विक्टोरिया में बांग्ला भाषियों की लगातार बढ़ती संख्या को ध्यान में रखते हुए उनका अगला संघर्ष यहां दूसरी भाषा के रूप में बांग्ला को शामिल कराने के लिए होगा। इसके लिए उन्होंने अपनी पहल शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि विक्टोरिया के अलावा न्यू साउथ वेल्स प्रांत में भी बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं जिनमें बांग्ला भाषियों की संख्या भी काफी ज्यादा है। यहां के हर स्कूल में हिंदी पढ़ाई जाती है। न्यू साउथ वेल्स के स्कूलों में हिंदी के साथ साथ बांग्ला की पढ़ाई शुरू होने से बांग्ला भाषियों के बच्चों को काफी सहूलियत होगी। इसके लिए उन्होंने विक्टोरिया राज्य प्रशासन के पास एक आवेदन भी किया है।
अर्णब घोष रॉय -
ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया राज्य में कोलकाता के बांग्ला भाषी युवक अर्णब घोष रॉय के अदम्य संघर्ष से वहां के स्वास्थ्य विभाग की आधिकारिक वेबसाइट बांग्ला में शुरू हुई है। इससे सात समंदर पार उनकी मातृभाषा बांग्ला के साथ देश का भी नाम ऊंचा हुआ है..
विक्टोरिया राज्य में सात दशक से बांग्ला भाषी रह रहे हैं। इनकी तादाद लाखों में है और लगातार यह संख्या बढ़ती ही जा रही है। फिर भी किसी आधिकारिक जगह पर बांग्ला भाषा का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। ऐसे हालात में खासकर बुजुर्ग बांग्ला भाषियों को बहुत प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था। खासकर स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं को प्राप्त करने में उन्हें तमाम तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था।