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ज्योति बसु की राह पर ममता, पिछले 7 दशकों से बंगाल में सत्तासीन दलों का राज्यपालों के साथ रहा 36 का आंकड़ा

बंगाल के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो राज्यपाल के साथ सूबे की सरकारों के टकराव की कहानी पहली बार नवंबर 1967 में शुरू हुई थी। तत्कालीन राज्यपाल धर्मवीर ने अजय मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 25 May 2021 11:39 AM (IST)Updated: Tue, 25 May 2021 11:23 PM (IST)
ज्योति बसु की राह पर ममता, पिछले 7 दशकों से बंगाल में सत्तासीन दलों का राज्यपालों के साथ रहा 36 का आंकड़ा
बंगाल के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। जगदीप धनखड़ को राज्यपाल के पद से हटाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को हाल ही में एक पत्र लिखा है। ममता का पत्र यह बताने को काफी है कि उनकी सरकार और राज्यपाल के बीच विवाद कहां तक पहुंच चुका है। राज्यपाल हों या फिर केंद्र सरकार, जिस तरह से मुख्यमंत्री रहते हुए कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु विरोध किया करते थे, उसी राह पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी चल रही हैं। बंगाल के लिए इसे विडंबना ही कहेंगे कि पिछले 69 वर्षों में जितनी भी पार्टियों की सरकारें बनी, उसमें कांग्रेस को छोड़कर लगभग सभी सत्तासीन दलों का राज्यपालों के साथ 36 का आंकड़ा रहा है।

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बंगाल के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो राज्यपाल के साथ सूबे की सरकारों के टकराव की कहानी पहली बार नवंबर 1967 में शुरू हुई थी। तत्कालीन राज्यपाल धर्मवीर ने अजय मुखर्जी के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार को बर्खास्त कर दिया था। सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने धर्मवीर की तीखी आलोचना की थी। वर्ष 1969 में फिर संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी, लेकिन राज्यपाल के साथ विवाद नहीं थमा। हालात यहां तक पहुंच गए कि राज्य सरकार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से धर्मवीर को पद से हटाने की मांग की जिसे मान लिया गया।

नए राज्यपाल के रूप में शांतिस्वरूप धवन को भेजा गया। उसके बाद ऐसा लगा कि अब सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव नहीं होगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। वर्ष 1971 में राज्यपाल धवन के साथ एक बार फिर वामपंथियों का विवाद शुरू हो गया। इसी वर्ष विधानसभा चुनाव में वामदलों ने 113 सीटें जीतीं और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आए। कांग्रेस को 105 सीटें मिली। लेकिन धवन ने कांग्रेस को सरकार बनाने का न्योता दे दिया। इस पर ज्योति बसु ने राज्यपाल पर तंज कसते हुए कहा था कि धवन के लिए 113 नहीं, 105 बड़ी संख्या है। धवन का काफी विरोध हुआ था।

इसके बाद 1972 से 1977 तक कांग्रेस का शासन था। इस दौरान राज्यपाल के साथ टकराव नहीं हुआ। वर्ष 1977 में वाममोर्चा ने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई। मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में मित्र सरकार थी। वाम दलों के अनुरोध पर केंद्र ने बंगाल में राज्यपाल के रूप में त्रिभुवन नारायण सिंह को भेजा। त्रिभुवन के साथ मुख्यमंत्री ज्योति बसु का कभी टकराव नहीं हुआ। समस्या की शुरुआत तब हुई जब 1980 में दिल्ली की गद्दी पर फिर से इंदिरा गांधी बैठीं। इसके बाद इंदिरा गांधी ने बीडी पांडेय यानी भैरव दत्त पांडेय को राज्यपाल बनाकर भेजा। लेकिन माकपा के तत्कालीन कद्दावर राज्य सचिव प्रमोद दासगुप्ता ने कहा था कि बीडी का अर्थ भैरवदत्त नहीं, बल्कि ‘बंग दमन’ है। राज्यपाल के साथ तत्कालीन वाम सरकार का टकराव इतना बढ़ गया था कि तमाम वामपंथी बीडी पांडेय को बंग दमन पांडेय के नाम से पुकारते थे। वर्ष 1984 में बंगाल के राज्यपाल अनंत प्रसाद शर्मा बने। वाम सरकार का शर्मा के साथ भी बहुत विवाद हुआ।

दरअसल, माकपा ने राज्यपाल का विरोध करना अपना स्वभाव बना लिया था। कामरेड यहां तक कहने लगे थे कि राज्यपाल का पद ही खत्म कर दिया जाना चाहिए। इसलिए जब भी कोई राज्यपाल बनकर आता तो उसके खिलाफ वामपंथी मुखर हो जाते। इसका एक बड़ा उदाहरण टीवी राजेश्वर हैं। देश के पूर्व खुफिया प्रमुख टीवी राजेश्वर 1990 में बंगाल के राज्यपाल बने। माकपा नेता कहने लगे कि जासूस को भेजा गया है, ताकि राज्य सरकार की जासूसी कराई जा सके। वाम सरकार का अगला टकराव तत्कालीन राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी के साथ हुआ था। गांधी नंदीग्राम की घटना को लेकर वाम सरकार के खिलाफ मुखर हुए थे।

मार्च 2007 में नंदीग्राम में हुई गोलीबारी को गांधी ने ‘बोन चिलिंग टेरर’ (हड्डी कंपा देने वाला आतंक) करार दिया था। इस पर राज्य में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। वाममोर्चा राज्यपाल के खिलाफ मुखर हो गया था। वर्ष 2011 में राज्यपाल एमके नारायणन ने ममता को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई। ऐसा लगा कि अब सब सही होगा। पर स्थिति नहीं बदली। नारायणन से टकराव के बाद 2014 में राज्यपाल बने केसरीनाथ त्रिपाठी ने सूबे में सांप्रदायिक हिंसा को लेकर मुंह खोला तो संवाददाता सम्मेलन बुलाकर ममता ने कहा कि राज्यपाल ने उनका अपमान किया है। वर्ष 2019 में जगदीप धनखड़ आए तो उनके साथ टकराव इतना बढ़ चुका है कि राज्यपाल के पद से उन्हें हटाने को लेकर ममता मुखर हैं।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


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