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Bengal Politics: अंतर्कलह के कीचड़ में फंसे तृणमूल कांग्रेस और भाजपा

कल्याण-कुणाल के वाकयुद्ध पर एक दिन पहले ही तृणमूल के वरिष्ठ नेता पार्थ चटर्जी ने दोनों से कहा था कि वे सार्वजनिक रूप से शिकायत करने से बचें और अगर कोई मुद्दा है तो अनुशासनात्मक समिति से बातचीत करें। अब देखना यह है कि आगे क्या होता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 11:23 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 11:24 AM (IST)
Bengal Politics: अंतर्कलह के कीचड़ में फंसे तृणमूल कांग्रेस और भाजपा
अंदरूनी कलह में फंसी भाजपा-तृणमूल: दोनों दलों के चुनाव चिन्ह। प्रतीकात्मक

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। जोड़ा फूल यानी तृणमूल कांग्रेस और कमल फूल यानी भाजपा, दोनों ही राजनीतिक दल इस समय बंगाल में अंतर्कलह के कीचड़ में फंसे हुए हैं। अंदरूनी द्वंद्व ऐसा है कि पार्टी नेताओं ने अपने ही सहयोगियों के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। इनमें सबसे बड़ा मोर्चा तृणमूल के वरिष्ठ नेता व सांसद कल्याण बनर्जी का पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी के खिलाफ है। अभिषेक केवल पार्टी महासचिव ही नहीं हैं, बल्कि मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के भतीजे भी हैं, वहीं कल्याण का कद भी छोटा नहीं हैं। वह ममता के सबसे वफादार, विश्वसनीय और पुराने सहयोगियों में से एक होने के साथ ही लोकसभा में तृणमूल के ‘चीफ व्हिप’ भी हैं। कालीघाट में ममता के आवास के पास ही कल्याण का निवास भी है।

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आखिर ऐसा क्या हुआ कि अचानक उन्होंने अभिषेक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया? यह प्रश्न ऐसा है, जिसका उत्तर हर तृणमूल नेता को पता है, लेकिन वे बोलेंगे नहीं, क्योंकि बात यहां ममता के उत्तराधिकारी माने जाने वाले के खिलाफ है। ऐसा नहीं है कि यह उठापटक केवल तृणमूल में ही चल रही है। भाजपा में भी अंदरूनी लड़ाई छिड़ी है। केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर से लेकर एक दर्जन विधायक तक राज्य व जिला कमेटी में जगह नहीं मिलने के कारण राज्य नेतृत्व से खफा हैं, विरोधस्वरूप एक दर्जन से अधिक नेता, विधायक और सांसद राज्य इकाई का वाट्सएप ग्रुप छोड़कर अलग बैठक कर रहे हैं और रणनीति बना रहे हैं। मुकुल राय समेत पांच भाजपा विधायक पहले ही पार्टी छोड़कर तृणमूल में जा चुके हैं। ऐसे में नए सिरे से भगवा कैंप में जारी विवाद राज्य से लेकर केंद्रीय नेतृत्व के लिए सिरदर्द बढ़ाने वाला है।

जिस तरह से बंगाल के सत्तारूढ़ और विपक्षी दल के संगठन के अंदरखाने संग्राम चल रहा है, उसका नतीजा क्या होगा, यह तो समय बताएगा, लेकिन एक बात यहां अवश्य कही जा रही है कि इस चुनावी मौसम में दोनों ही दलों के शीर्ष नेतृत्व के लिए अंतर्कलह ने परेशानी बढ़ा रखी है। एक तो बंगाल में चार नगर निगमों के चुनाव हैं, वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा हो या फिर तृणमूल, दोनों के ही शीर्ष नेतृत्व का इस समय पूरा ध्यान चुनावी राज्यों पर है। बंगाल में जो कुछ पार्टी के अंदर हो रहा है, वह चिंता बढ़ने वाला है। दरअसल, अभिषेक के उस बयान का कल्याण ने खुलकर विरोध किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि राज्य में तेजी से बढ़ रहे कोरोना के मामलों के मद्देनजर वह चाहते हैं कि दो महीने के लिए राज्य में चुनावी व धार्मिक सभी तरह के आयोजन बंद कर दिए जाएं। साथ में उन्होंने यह भी कहा था कि यह उनकी निजी राय है। इसी पर कल्याण ने कहा था कि एक जनवरी को डायमंड हार्बर (अभिषेक के संसदीय क्षेत्र) में मुंबई से गायक-गायिकाओं को बुलाकर लाखों लोगों की भीड़ जुटाकर नाच-गाना आयोजित किया गया और इसके बाद कार्यक्रम बंद रखने की बात कही जा रही है। वे यहीं नहीं रुके, अभिषेक की ओर से अपने संसदीय क्षेत्र में स्वामी विवेकानंद की जयंती पर कोरोना जांच के लिए कैंप लगाए गए थे, जिसमें 53 हजार से अधिक लोगों की जांच होने का दावा किया गया। इसे ‘डायमंड हार्बर माडल’ कहकर प्रचारित कर अभिषेक का खूब गुणगान किया गया। इसे लेकर भी कल्याण ने कहा कि क्या है यह माडल। पहले भीड़ लगाओ, फिर जांच कराओ।

इसके बाद तृणमूल प्रवक्ता कुणाल घोष अपने ही नेता कल्याण पर हमलावर हो गए और कहा कि अभिषेक पार्टी की सर्वोच्च नेता ममता के बाद हैं। अगर अभिषेक जैसे नेता कुछ कहते हैं तो हमें पार्टी के सामान्य सैनिकों के रूप में इसे चुपचाप सुनना चाहिए। इस पर कल्याण भी चुप नहीं रहे और अभिषेक के करीबी माने जाने वाले कुणाल ने सारधा चिटफंड घोटाले में गिरफ्तारी के बाद जो बातें कही थीं, उसे याद दिलाते हुए कहा कि जो लोग जेल जाते समय ममता के खिलाफ बोल रहे थे, वे आज उपदेश दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मैं ममता के अलावा किसी को नेता नहीं मानता हूं।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


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