Move to Jagran APP

Bengal Politics: प्रतिनियुक्ति को लेकर केंद्र और बंगाल सरकार में ठनी, जानिए किसके दावों में है दम

Bengal Politics केंद्र और राज्य के बीच बढ़ते टकराव के कारण संवैधानिक और प्रशासनिक संकट पैदा होने के आसार नजर आ रहे हैं। आइए जानते हैं कि प्रतिनियुक्ति को लेकर क्या कहते हैं नियम और इससे पूर्व कब-कब ऐसे मामले सामने आ चुके हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 19 Dec 2020 09:06 AM (IST)Updated: Sat, 19 Dec 2020 12:52 PM (IST)
Bengal Politics: प्रतिनियुक्ति को लेकर केंद्र और बंगाल सरकार में ठनी, जानिए किसके दावों में है दम
2012 में गुजरात कैडर के आइपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा को केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए कोर्ट की शरण लेनी पड़ी

नई दिल्ली, जेएनएन। बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र और राज्य सरकार के बीच लगातार तल्खी बढ़ती जा रही है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हमले के बाद गृह मंत्रालय ने नड्डा की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार तीन आइपीएस अधिकारियों को केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर वापस बुला लिया है। जवाब में बंगाल सरकार ने तीनों अधिकारियों को भेजने से साफ इन्कार कर दिया है। 

loksabha election banner

इन तीन के लिए आमने-आमने

  • भोलानाथ पांडे, पुलिस अधीक्षक, डायमंड हार्बर
  • प्रवीण त्रिपाठी, पुलिस उप महानिरीक्षक, प्रेसिडेंसी रेंज
  • राजीव मिश्रा, अतिरिक्त महानिदेशक, दक्षिण बंगाल
  • 10 दिसंबर को भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की यात्रा के दौरान सुरक्षा की जिम्मेदारी इन्हीं तीनों अधिकारियों पर थी

राज्य को मानना होगा केंद्र का निर्णय : भारतीय पुलिस सेवा (काडर) नियम 1954 के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकार के बीच किसी प्रकार की असहमति होने पर संबंधित राज्य की सरकार को केंद्र सरकार के निर्णय को मानना होगा। हालांकि कुछ दिनों के लिए ही सही राज्य सरकार कुछ वक्त के लिए मामले को टाल सकती है, लेकिन अधिकारियों को भेजना उसकी मजबूरी है। दूसरी ओर, अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 में बताया गया है कि यदि अधिकारी राज्य मामलों में सेवा दे रहा है तो दंड का अधिकार राज्य सरकार को होगा।

हर साल भेजी जाती है प्रतिनियुक्ति की सूची : केंद्र सरकार हर साल राज्यों से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए अधिकारियों की सूची मंगवाती है। अधिकारियों की इच्छा के आधार पर ही राज्य सरकारें यह सूची भेजती है। इस सूची के आधार पर केंद्र तय करता है कि किस अधिकारी को प्रतिनियुक्ति पर भेजा जाएगा।

पूर्व में भी अधिकारियों पर रार : केंद्र और बंगाल सरकार के मध्य अधिकारियों को लेकर पहले भी ठन चुकी है। फरवरी 2019 में सारधा चिटफंड मामले में सीबीआइ की टीम कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से पूछताछ के लिए पहुंची थी। उस वक्त पुलिस ने सीबीआइ के अधिकारियों को हिरासत में ले लिया था। जिसके बाद बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद धरने पर बैठ गई थी। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था।

पहले भी सामने आ चुके हैं कई मामले :

  • प्रतिनियुक्ति को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों का पूर्व में भी टकराव हो चुका है। 13 मई 2001 को जयललिता ने मुख्यमंत्री की शपथ ली थी। इसके करीब डेढ महीने बाद तमिलनाडु पुलिस की सीबी-सीआइडी ने पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि और केंद्र सरकार में मंत्री मुरासोली मारन और टीआर बालू के ठिकानों पर छापे मारकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने छापे में शामिल तीन आइपीएस अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली बुला लिया। ममता की ही तरह ही जयललिता ने उन्हें दिल्ली भेजने से इन्कार कर दिया। बाद में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने गृह मंत्रालय के आदेश पर रोक लगा दी।
  • इसी तरह से 2014 में केंद्र और तमिलनाडु सरकार के बीच तमिलनाडु की अधिकारी अर्चना रामासुंदरम को लेकर ठन गई थी। सीबीआइ में प्रतिनियुक्त रामासुंदरम को रिहा करने से तमिलनाडु सरकार ने इन्कार कर दिया था। केंद्र ने उन्हें सीबीआइ में अतिरिक्त निदेशक नियुक्त किया। जिसके बाद नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। जिसके बाद उन्हें सशस्त्र सीमा सुरक्षा बल का प्रमुख बनाया गया।
  • 2012 में गुजरात कैडर के आइपीएस अधिकारी कुलदीप शर्मा को भी केंद्र में प्रतिनियुक्ति के लिए कोर्ट की शरण लेनी पड़ी थी।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.