Move to Jagran APP

Bengal Assembly Election 2021: क्या भगवा ब्रिगेड भेद पाएगी ममता बनर्जी का दक्षिणी किला?

Bengal Politics बीते सप्ताह मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी ने दावा किया था कि भाजपा 30 सीटें भी नहीं जीत पाएगी। प्रशांत किशोर ने भाजपा के 99 का आंकड़ा पार नहीं कर पाने की बात कही है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 05 Jan 2021 10:43 AM (IST)Updated: Tue, 05 Jan 2021 04:08 PM (IST)
Bengal Assembly Election 2021: क्या भगवा ब्रिगेड भेद पाएगी ममता बनर्जी का दक्षिणी किला?
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर तृणमूल की जीत सुनिश्चित करने के लिए दुआरे सरकार, बंग ध्वनि जैसे अभियान चलवा रहे हैं।

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बंगाल में 200 से अधिक विधानसभा सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है, जबकि सत्ता के सिंहासन पर पहुंचने के लिए जादुई आंकड़ा 148 का ही है। केंद्रीय गृहमंत्री व भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने जब यह लक्ष्य निर्धारित किया था तो तृणमूल के नेताओं ने इसे दिवास्वप्न करार दिया था। भाजपा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। बंगाल का चुनावी महासमर हर दिन दिलचस्प मोड़ लेता जा रहा है। भगवा ब्रिगेड की रणनीति सिर्फ मुख्यमंत्री व तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के वोट बैंक में सेंधमारी की ही नहीं है, बल्कि उनके संगठन को कमजोर करने की भी है।

loksabha election banner

यही वजह रही है कि थोक के भाव में तृणमूल के छोटे-बड़े नेताओं, कार्यकर्ताओं को भगवा कैंप में शामिल कराया जा रहा है। हालांकि इन सबके बावजूद भाजपा के लिए सत्ता के शिखर पर पहुंचने की राह आसान नहीं होगी, क्योंकि ममता ने पिछले डेढ़ दशक में दक्षिण और मध्य बंगाल में अपना ऐसा किला तैयार कर रखा है, जिसे भेदे बिना भाजपा का सपना साकार नहीं हो सकेगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पिछला लोकसभा चुनाव है। उत्तर बंगाल और जंगलमहल में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद दक्षिण बंगाल में भाजपा को महज छह सीटें ही हाथ लगी और मध्य बंगाल में तो खाता भी नहीं खुला।

पिछले लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 18 और तृणमूल को 22 सीटें मिली थीं। यदि इन लोकसभा सीटों पर मिली जीत में विधानसभावार नतीजों को देखें तो भाजपा 121 और तृणमूल 164 सीटों पर आगे थी, जबकि सत्तासीन होने के लिए 148 सीटें चाहिए। वर्ष 2019 में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन तृणमूल दक्षिण और मध्य बंगाल में अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रही। यह ममता का पारंपरिक गढ़ माना जाता है। विगत लोकसभा चुनाव में जिन 121 सीटों पर भाजपा आगे रही, उनमें से 67 सीटें पहाड़ी, उत्तर बंगाल और जंगलमहल क्षेत्र की थीं। इन क्षेत्रों में कुल 94 विधानसभा सीटें हैं। वहीं दक्षिण की 167 और मध्य बंगाल की 33 सीटों में से भाजपा महज 48 और छह सीटों पर आगे रही थी।

तमाम गुणा-भाग और समीकरण को ध्यान में रखते हुए भाजपा बंगाल के इलाकों को पांच जोन में बांटकर अपनी रणनीति को अमलीजामा पहना रही है। उत्तर बंगाल जोन में आठ जिले हैं, जहां 54 सीटें हैं। नवद्वीप जोन में मुर्शीदाबाद, नदिया और उत्तर 24 परगना जिले के कुछ हिस्से को शामिल किया है, जिसमें 63 सीटें हैं। राढ़बंग जोन में दोनों बर्द्धमान, बांकुड़ा, पुरुलिया और बीरभूम जिले को शामिल किया गया है, जहां 57 सीटें हैं। मेदिनीपुर जोन में दोनों मेदिनीपुर, हावड़ा और हुगली जिले को शामिल किया है, जहां 69 सीटें हैं और कोलकाता जोन में महानगर, दक्षिण 24 परगना और उत्तर 24 परगना जिले के कुछ हिस्सों को शामिल किया गया है, जहां 51 विधानसभा सीटें हैं। हर जोन में अधिक से अधिक सीटें जीतने के लिए भाजपा ने पांच राज्यों के संगठन महामंत्रियों के साथ-साथ राष्ट्रीय महासचिव व सचिवों को भी तैनात किया है।

गुजरात के संगठन महामंत्री भीखूभाई दलसानिया नवद्वीप जोन देख रहे हैं और वहां प्रभारी की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सचिव विनोद तावड़े संभाल रहे हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के संगठन महामंत्री सुनील बंसल कोलकाता जोन में मोर्चा संभाल रहे हैं और वहां प्रभारी के रूप में राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम हैं। वहीं हरियाणा के संगठन महामंत्री रवींद्र राजू को राढ़बंग जोन में तैनात किया गया है, जहां के प्रभारी विनोद सोनकर हैं। हिमाचल प्रदेश के संगठन महामंत्री पवन राणा मेदिनीपुर जोन में कामकाज संभाल रहे हैं, जहां की कमान सुनील देवधर और उत्तर बंगाल जोन में त्रिपुरा के संगठन महामंत्री पीएन शर्मा कार्य देख रहे हैं और प्रभारी राष्ट्रीय सचिव हरीश द्विवेदी हैं। ये सभी बंगाल में सक्रिय हैं।

अपनी स्थिति परखने को भाजपा कई स्तरों पर आंतरिक सर्वे भी करा कर जनता की नब्ज टटोल रही है। अभी हाल में हुए सर्वे में भाजपा को बहुमत के करीब बताया गया है, लेकिन जो लक्ष्य है, उससे अभी दूर है। दूसरी तरफ ममता अभी पूरी तरह से मैदान में नहीं उतरी हैं, क्योंकि उनकी अपनी लोकप्रियता है और बंगाल में उनके स्तर का नेता भाजपा के पास नहीं है। इसके अलावा, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर तृणमूल की जीत सुनिश्चित करने के लिए दुआरे सरकार, बंग ध्वनि जैसे अभियान चलवा रहे हैं। 

[स्टेट ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.