Move to Jagran APP

बंगाल का रण: कोलकाता की सभी सीटों पर तृणमूल का कब्जा, जानें क्‍या है सियासी गणित और यहां के बड़े मुद्दे

कोलकाता बंगाल की सियासत का केंद्र ही नहीं सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का पावर हाउस भी है जिसका स्विच ऑफ करना विरोधी दलों के लिए आसान नहीं होगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व राज्य के पांच कद्दावर मंत्री इसी महानगर की विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं।

By Vijay KumarEdited By: Published: Thu, 04 Mar 2021 10:29 PM (IST)Updated: Thu, 04 Mar 2021 10:29 PM (IST)
बंगाल का रण: कोलकाता की सभी सीटों पर तृणमूल का कब्जा, जानें क्‍या है सियासी गणित और यहां के बड़े मुद्दे
कोलकाता की सभी 11 सीटों पर पिछले एक दशक से तृणमूल का कब्जा

विशाल श्रेष्ठ, कोलकाता : कोलकाता बंगाल की सियासत का केंद्र ही नहीं, सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस का 'पावर हाउस भी है, जिसका स्विच ऑफ करना विरोधी दलों के लिए आसान नहीं होगा। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व राज्य के पांच कद्दावर मंत्री इसी महानगर की विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ते और जीतते आ रहे हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव, दोनों ही नजरिए से कोलकाता तृणमूल का सबसे मजबूत दुर्ग है। जिले की दोनों लोकसभा सीटों कोलकाता उत्तर व कोलकाता दक्षिण पर तृणमूल का एक दशक से अधिक समय से एकछत्र राज है। ममता का आवास दक्षिण कोलकाता के कालीघाट इलाके में हैं और निर्वाचन क्षेत्र भी भवानीपुर है जो गृह इलाका है। इस क्षेत्र में पंजाबी, हिंदी भाषियों की अच्छी खासी संख्या है।

loksabha election banner

पिछले लोकसभा चुनाव में कोलकाता की 11 विधानसभा सीटों में से आठ पर ही तृणमूल आगे थी, जबकि तीन सीटों पर भाजपा बढ़त बना लिया था। बड़ाबाजार जैसे इलाका जिसे भाजपा का गढ़ कहा जाता है, लेकिन भगवा को कभी जीत नहीं मिली है। बड़ाबाजार में रहने वाले प्रतीक तिवारी का कहना है कि पिछले पचास सालों में कोलकाता में कुछ नहीं बदला है। सिर्फ रंग बदला है। पहले लाल था और अब सफेद-नीला हो गया है। इसी इलाके में 31 मार्च 2016 विधानसभा चुनाव के दौरान ही बड़ाबाजार का निर्माणाधीन फ्लाईओवर ढहा था जिसमें, करीब 27 लोगों की मौत और 80 लोग जख्मी हो गए थे। इस घटना में सिंडिकेट और भ्रष्टाचार की बात सामने आई थी। कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई। परंतु, मुख्य आरोपित घटिया सीमेंट समेत अन्य सामान आपूर्ति करने वाले सिंडिकेट माफिया बच निकले। आज भी ढहा हुआ अधूरा फ्लाई ओवर बेकार पड़ा है। कब बनेगा या उसे तोड़ा जाएगा कुछ पता नहीं। इस पर भाजपा उसी सिंडिकेट और कट मनी को मुद्दा बना रखा है।

इसी तरह मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र में रहने वाले ललीत यादव का कहना है कि मैं पिछले चालीस सालों से यहां रह रहा हूं, लेकिन सब कुछ पहले ही जैसी है। सिर्फ महंगाई बढ़ी, फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों से वसूली बढ़ी है। साफ सफाई का आलम सड़कें खुद बता रही है। बावजूद इसके चुनाव में तृणमूल ही जीत रही है।

कोलकाता के कुछ क्षेत्र मुस्लिम बहुल है जिसे मटियाबुर्ज, खिदिरपुर, राजाबाजार, पार्कसर्कस, बेलगछिया इन सब इलाकों में हिंदी भाषी मुसलमानों की अच्छी संख्या है। यही वह है कि एक तरफ ममता ने पोर्ट इलाके से मंत्री फिरहाद हकीम को तो दूसरी ओर महानगर से सटे कसबा क्षेत्र से मंत्री जावेद खान को उतारती रही हैं।

कोलकाता की सीटों को लेकर लेकर वाम-कांग्रेस, भाजपा और तृणमूल के अपने-अपने दावे हैं। परंतु, मतदाता मौन है। यह मौन किसके मुंह पर जीत की हंसी बिखरेगी यह तो दो मई को ही पता चलेगा।  

ममता को दक्षिण कोलकाता में नहीं मिली कभी हार 

ममता 1991 से लगातार छह बार कोलकाता दक्षिण से सांसद रही हैं। शुरुआती दो बार वे कांग्रेस के टिकट पर निर्वाचित हुई थीं। बाद में चार बार तृणूमल से सांसद बनीं। 2011 में तृणमूल के बंगाल की सत्ता पर काबिज होने के बाद ममता सांसद पद से इस्तीफा देकर सूबे की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी थीं। उसके बाद हुए उपचुनाव में तृणमूल के सुब्रत बक्सी सांसद निर्वाचित हुए थे और वर्तमान में तृणमूल की माला राय यहां से लोकसभा की प्रतिनिधि हैं। दक्षिण की तरह कोलकाता उत्तर पर भी तृणमूल का दबदबा है।

पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी के वरिष्ठ नेता सुदीप बंद्योपाध्याय इस सीट से तीसरी बार निर्वाचित हुए हैं। विधानसभा सीटों के आधार पर देखें तो 2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल ने यहां की सभी 11 सीटों पर परचम लहराया था। 2016 के विधानसभा चुनाव में भी तृणमूल ने अपने शत प्रतिशत रिकार्ड को कायम रखा। 2011 में मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता भवानीपुर सीट से विधानसभा उपचुनाव लड़कर जीती थीं। इस बार फिर वह भवानीपुर से लड़ती हैं या नहीं यह तो आने वाले कुछ दिनों में पता चलेगा। 

कोलकाता में कांग्रेस-वाममोर्चा का हो चुका है सूपड़ा साफ

कोलकाता में कांग्रेस और वाममोर्चा का एक दशक पहले ही सूपड़ा साफ हो चुका है। दोनों अब तक जिले में कम बैक नहीं कर पाए हैं। वहीं भाजपा भी यहां एक सीट नहीं जीत पाई है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि मुख्यमंत्री के गढ़ में तृणमूल को हराना विरोधी दलों के लिए बेहद कठिन चुनौती होगी।

भाजपा के लिए बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के यहां लड़ाई होगी मुश्किल

दक्षिण कोलकाता के वाशिंदा व राजनीतिक विश्लेषक मिंटू पाल कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भाजपा का कोलकाता में प्रभाव बढ़ा है, विशेषकर बड़ाबाजार इलाके में, लेकिन भगवा पार्टी के सामने इस विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी मुश्किल यह होगी कि उसे मुख्यमंत्री के गढ़ में बिना मुख्यमंत्री के चेहरे के चुनाव लडऩा है।

मंत्रियों के मुकाबले तगड़े प्रत्याशी उतारने की चुनौती

कोलकाता पोर्ट सीट से शहरी विकास मंत्री फिरहाद हकीम, रासबिहारी से बिजली मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय, बालीगंज से पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी, श्यामपुकुर से नारी एवं बाल कल्याण मंत्री डॉ शशि पांजा और मानिकतल्ला से उपभोक्ता मामलों के मंत्री साधन पांडे चुनाव लड़ते और जीतते आए हैं। इसके अलावा चौरंगी से तृणमूल सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय की पत्नी व टॉलीवुड अभिनेत्री नयना बंद्योपाध्याय विधायक हैं। इन सभी की अपने विधानसभा क्षेत्रों पर बेहद मजबूत पकड़ है। मंत्रियों से मुकाबला करने के लिए विरोधी दलों को तगड़े उम्मीदवारों की जरुरत पड़ेगी। फिरहाद हकीम और सुब्रत मुखर्जी ने कहा कि तृणमूल को ही बंगाल के लोग चाहते हैं और पार्टी तीसरी बार सत्ता में भारी जनादेश के साथ वापसी करेगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.