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Bengal Assembly Elections 2021: बंगाल की सियासी धरती पर अब तक की सबसे बड़ी चुनावी जंग

Bengal Chunav देश की आजादी के बाद से बंगाल के चुनावी इतिहास में शायद यह पहला मौका है जब केंद्र में सत्तारूढ़ दल यहां विधानसभा चुनाव को लेकर इतनी ताकत झोंक रहा है। हर गली-मोहल्ले में तृणमूल और वाम-कांग्रेस के साथ-साथ अब भगवा झंडा भी लहराने लगा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 02 Mar 2021 09:28 AM (IST)Updated: Tue, 02 Mar 2021 03:57 PM (IST)
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर बंगाल में कभी भाजपा दो से अधिक सीटें नहीं जीत पाई।

कोलकाता, जयकृष्ण वाजपेयी। Bengal Assembly Elections 2021 बंगाल की सियासी धरती पहले कांग्रेस, फिर वाममोर्चा और उसके बाद तृणमूल कांग्रेस के लिए काफी उपजाऊ रही है। आजादी के बाद से 1977 के शुरुआत तक, बीच में कुछ वर्षो को छोड़ दें तो सूबे में कांग्रेस का एकछत्र राज रहा। वर्ष 1977 में माकपा की अगुआई में वाममोर्चा सत्ता पर ऐसे काबिज हुआ कि 34 वर्षो तक शासन में रहा। मई 2011 में वामपंथी शासन का अंत हुआ और पिछले करीब एक दशक से तृणमूल सत्तासीन है, लेकिन जिस बंग भूमि पर जनसंघ के संस्थापक डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी पैदा हुए, वह धरा भाजपा के लिए तीन वर्ष पहले तक बंजर थी। इसकी वजह कांग्रेस और वामपंथ की मजबूत जड़ें रही, जिसने भगवा रंग यहां के लोगों पर चढ़ने ही नहीं दिया। यही कारण है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर बंगाल में कभी भाजपा दो से अधिक सीटें नहीं जीत पाई।

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विधानसभा चुनाव की बात करें तो वर्ष 2016 में पहली बार भाजपा का खाता खुला और विधानसभा में उसके मात्र तीन सदस्य ही पहुंच पाए। इससे पहले वर्ष 1991 और 2017 के विधानसभा उपचुनावों में सिर्फ दो बार भाजपा को जीत नसीब हुई थी। परंतु इस वर्ष परिस्थितियां काफी बदली हुई हैं। एक तरफ तृणमूल कांग्रेस तो दूसरी तरफ भाजपा बंगाल की धरती पर अब तक की सबसे बड़ी जंग लड़ रही है। न तो भाजपा ने इससे पहले बंगाल में विधानसभा चुनावों में कभी इतनी ताकत लगाई थी और न ही ममता बनर्जी को इतनी कड़ी चुनौती मिली थी।

हुगली के शाहगंज मैदान में पिछले दिनों एक जनसभा को संबोधित करते पीएम मोदी। फाइल

देश की आजादी के बाद से बंगाल के चुनावी इतिहास में शायद यह पहला मौका है, जब केंद्र में सत्तारूढ़ दल यहां विधानसभा चुनाव को लेकर इतनी ताकत झोंक रहा है। इससे पहले ममता बनर्जी वामपंथियों की पारंपरिक चुनावी रणनीति से लड़ रही थीं, लेकिन भाजपा की अत्याधुनिक रणनीति से पहली बार उनका सामना हो रहा है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा को जिस तरह से सफलता मिली, उससे भाजपा नेतृत्व काफी उत्साहित है। भगवा ब्रिगेड को लगने लगा है कि कांग्रेस, वाममोर्चा और तृणमूल के बाद अब बंगाल की जनता के मन में भाजपा के प्रति लगाव बढ़ा है। वर्ष 2009 और 2014 के लोकसभा और 2011 व 2016 के विधानसभा चुनावों में वामपंथियों को त्यागने के बाद यहां की जनता तृणमूल या यूं कहें कि ममता बनर्जी के रंग में रंग गई थी।

इसी का नतीजा था कि वर्ष 2008 के पंचायत चुनाव के बाद से तृणमूल 2019 के पहले तक एक भी चुनाव नहीं हारी, लेकिन इस विधानसभा चुनाव में हवा बदली हुई दिख रही है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या फिर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा हों या फिर केंद्रीय मंत्रियों समेत भाजपा के अन्य नेता, इन सभी की सभाओं, रैलियों और रोड शो में जिस तरह से भीड़ जुट रही है, वह कहीं न कहीं यहां के लोगों पर चढ़ रहे भगवा रंग को दर्शा रहा है। हालांकि विधानसभा चुनाव का परिणाम क्या होगा, यह तो दो मई को पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार कुछ अलग होने वाला है। ममता तीसरी बार सत्ता में आती हैं या फिर भाजपा के हाथ सत्ता लगती है, यह तो बाद की बात है। एक बड़ी बात यह है कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की धरती पर भगवा के प्रभाव का विस्तार हो चुका है। हर गली-मोहल्ले में तृणमूल और वाम-कांग्रेस के साथ-साथ अब भगवा झंडा भी लहराने लगा है।

पीएम की सभा के कुछ दिनों बाद उसी मैदान में जनसभा को संबोधित करतीं ममता। फाइल

बंगाल की जनता ने पहले कांग्रेस, फिर 1977 से अप्रैल 2011 तक वाममोर्चा को सत्ता सौंपी और 2011 में तृणमूल को सत्तारूढ़ कर दिया। वर्ष 1977 में वामपंथियों को 47.63 फीसद वोट मिले थे और ज्योति बसु मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद 34 वर्षो तक 50 फीसद से अधिक मतों के साथ बंगाल की सत्ता पर वाममोर्चा काबिज रहा। वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव से पहले के हालात के विश्लेषण से पता चला कि बंगाल की जनता स्वभाव से करीब 34 वर्षो तक वामपंथी हो गई थी, लेकिन 2006 के विधानसभा चुनाव के बाद बदलाव देखा गया। वर्ष 2011 में तो पूरा परिवर्तन हो गया यानी वामपंथी स्वभाव को त्यागकर लोग तृणमूल के रंग में रंग गए और ममता बनर्जी को 48.4 फीसद वोट देकर सत्तारूढ़ कर दिया। इस प्रकार वामपंथी हो जाने की जो छाप यहां की जनता पर लगी थी, उसे भी उन्होंने बदल दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में जहां तृणमूल कांग्रेस को 43.3 फीसद वोट मिले, वहीं 40.7 फीसद मतदाताओं के स्वभाव में एक बार फिर परिवर्तन दिखा और भाजपा को बंगाल में अभूतपूर्व सफलता मिली।

इस बार होने जा रहे चुनाव में भी जनता का मूड हर कोई जानने को बेताब है। हरेक दल का अपना-अपना दावा है। लड़ाई भी काफी कड़ी है। यहां की जनता का फैसला क्या होगा? यह तो दो मई को पता चलेगा। पर एक बात जो सबसे खास है, वह यह कि अब बंगाल के लोग भी हरेक चुनाव में किसी एक दल या मोर्चा को समर्थन देने के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं। वैसे बंगाल के मतदाता शुरू से ही दो भागों में बंटे रहे हैं। वर्ष 1977 से पहले कांग्रेस समर्थक और गैर कांग्रेस समर्थक यानी वामपंथी। अब तृणमूल और भाजपा समर्थक दिख रहे हैं।

[राज्य ब्यूरो प्रमुख, बंगाल]


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