Bengal Assembly Elections 2021: आखिर ममता दीदी केंद्र के निर्देश का विरोध क्यों कर रही हैं?
Bengal Assembly Elections 2021 ममता ने इस बार पत्र शिक्षा मंत्रलय के एक ज्ञापन को लेकर लिखा है। उन्होंने पीएम से मांग की है कि शिक्षा मंत्रलय को निर्देश दें कि वह अपने दिशानिर्देश को तत्काल वापस ले।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। Bengal Assembly Elections 2021 केंद्र सरकार के खिलाफ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अब एक नया मोर्चा खोल दिया है। चुनावी मौसम में इस तरह का विरोध सामान्य है। परंतु अगर बात राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी हो और उसका विरोध किया जा रहा हो तो उसे सियासी स्वार्थ ही कहा जाएगा। बुधवार को पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ शब्दों की मर्यादा तोड़ने के बाद कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने को लेकर पीएम को पत्र लिखा। इसके महज 24 घंटे के भीतर ही ममता ने गुरुवार को प्रधानमंत्री को एक और पत्र भेज दिया। इस बार पत्र उन्होंने शिक्षा मंत्रलय के एक ज्ञापन को लेकर लिखा है।
उन्होंने पीएम से मांग की है कि शिक्षा मंत्रलय को निर्देश दें कि वह उस संशोधित दिशानिर्देश को तत्काल वापस ले, जिसमें राज्य सरकार से सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों को वैश्विक सम्मेलनों के आयोजन से पहले मंत्रलय की मंजूरी लेने को कहा गया है। मंत्रलय ने 15 जनवरी को कहा था कि सरकार द्वारा पोषित विश्वविद्यालय अगर राष्ट्रीय सुरक्षा या फिर प्रत्यक्ष तौर पर भारत के आंतरिक मामलों से जुड़े मुद्दों पर ऑनलाइन वैश्विक सम्मेलन आयोजित करना चाहते हैं तो उन्हें मंत्रलय से पहले इसकी मंजूरी लेनी होगी।
ममता ने लिखा है कि संशोधित दिशानिर्देशों से राज्य द्वारा पोषित विश्वविद्यालयों द्वारा ऑनलाइन/ डिजिटल अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन/ संगोष्ठी/ प्रशिक्षण आदि के आयोजन में कई बाधाएं खड़ी हो गई हैं। उन्होंने लिखा है कि इस निर्देश से पहले राज्यों से इस संबंध में परामर्श नहीं किया गया। कार्यालय ज्ञापन द्वारा थोपी गई पाबंदियां हमारे देश में उच्च शिक्षा प्रणाली के केंद्रीयकरण की भारत सरकार की मंशा की ओर रेखांकित करती हैं। शिक्षण संस्थानों को ऐसे निर्देश जारी करने से पहले राज्य सरकारों के साथ परामर्श न करना संघीय ढांचे की भावना के विपरीत होगा। ऐसे किसी भी संवाद को राज्यों की संवैधानिक शक्तियों की अवमानना के उदाहरण के तौर पर देखा जाएगा।
परंतु यहां सवाल यह उठ रहा है कि आखिर ममता इस निर्देश का विरोध क्यों कर रही हैं? उन्होंने पत्र में विश्वविद्यालयों के शीर्ष स्तर के स्वशासन और स्वतंत्रता का अनुभव होने की जो बात लिखी है क्या वह बंगाल में है? यहां तो विश्वविद्यालयों पर सत्तारूढ़ दल का ऐसा वर्चस्व है कि कुलपति से लेकर रजिस्ट्रार तक बिना राज्य सरकार की अनुमति के कुछ नहीं करते। फिर सिर्फ यह दुहाई देना उचित नहीं है। यह सही है कि विश्वविद्यालयों को पूरी स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, लेकिन देश विरोधी गतिविधियों के लिए छूट भी नहीं मिलनी चाहिए।