West Bengal Politics: बंगाल में विस चुनाव से पहले 12 कार्यकर्ताओं की हो चुकी हत्या, जानें क्या कहते हैं राजनीतिक दल
वर्चस्व की लड़ाई - जून से अब तक राजनीतिक संघर्ष में 12 कार्यकर्ताओं की जा चुकी है जानें। मरने वालों में भाजपा के छह सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के पांच एवं एसयूसीआइ के एक कार्यकर्ता शामिल। जबकि बंगाल में विधानसभा चुनाव में अभी 7- 8 महीने बाकी हैं।
राज्य ब्यूरो, कोलकाता : बंगाल में विधानसभा चुनाव में अभी 7- 8 महीने बाकी हैं, लेकिन इससे पहले यहां राजनीतिक हत्याओं का दौर शुरू हो गया है। 1 जून से चरणबद्ध तरीके से अनलॉक-1 की शुरुआत के बाद से लेकर अब तक राज्य में राजनीतिक संघर्ष में 12 कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। इनमें भाजपा के छह, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के पांच एवं एसयूसीआइ (सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया) के एक कार्यकर्ता शामिल हैं। इनमें ज्यादातर राजनीतिक हिंसा की घटनाएं भाजपा व तृणमूल के बीच वर्चस्व को लेकर देखने को मिली है।
बीजेपी व तृणमूल के बीच ठनी
इसके अलावा इस अवधि में एक भाजपा विधायक और 3 भाजपा कार्यकर्ताओं के शव संदिग्ध अवस्था में फंदे से लटके पाए गए हैं। भाजपा इन सभी घटनाओं के पीछे तृणमूल को जिम्मेदार ठहराती रही हैं, वहीं सत्तारूढ़ दल इससे इन्कार कर उल्टे उसी को हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराती रही है।
गौतम दास की पीटकर हत्या
इन घटनाओं पर नजर डालें तो 10 जून को तृणमूल कार्यकर्ता गौतम दास की बर्धमान में पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। 18 जून को पश्चिम मेदिनीपुर जिले में सियासी झड़प में घायल हुए भाजपा कार्यकर्ता के बेटे पवन जाना की पिछले दिनों अस्पताल में मौत हो गई।
अश्विनी व सुधांशु की हत्या
3 जुलाई को दक्षिण 24 परगना के बारुईपुर में तृणमूल कार्यकर्ता अश्विनी मन्ना की कथित रूप से एसयूसीआइ समर्थकों ने पीट पीट कर हत्या कर दी। इसके अगले दिन 4 जुलाई को बारुईपुर में ही एसयूसीआइ के नेता सुधांशु जाना की हत्या कर दी गई और उनके घर में कथित तौर पर तृणमूल कार्यकर्ताओं ने आग भी लगा दी।
बापी घोष की पीट-पीटकर हत्या
5 जुलाई को नदिया के नवद्वीप में भाजपा कार्यकर्ता कृष्णा देवनाथ को पीटा गया और 2 दिन बाद उनकी अस्पताल में मौत हो गई। 16 जुलाई को नदिया में भाजपा कार्यकर्ता बापी घोष की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई।
इजराइल व सुदर्शन की हत्या
6 अगस्त को हुगली जिले में तृणमूल कार्यकर्ता इजराइल खान पर पार्टी के दूसरे गुट द्वारा बम से कथित तौर पर हमले में उनकी मौत हो गई। 15 अगस्त को हुगली के आरामबाग में झंडा फहराने को लेकर तृणमूल के साथ झड़प में भाजपा कार्यकर्ता सुदर्शन प्रमाणिक की कथित हत्या कर दी गई।
रॉबिन व गणेश की हत्या
6 सितंबर को बर्धमान के कालना में मनरेगा के काम को लेकर स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ताओं के साथ झड़प के बाद भाजपा कार्यकर्ता रॉबिन पाल की हत्या कर दी गई। 17 सितंबर को कूचबिहार के माथाभांगा में तृणमूल कार्यकर्ता गणेश सरकार की हत्या कर दी गई।
भाजपा पर हत्या का आरोप
तृणमूल ने भाजपा पर हत्या का आरोप लगाया। 17 सितंबर को पश्चिम मेदिनीपुर केशपुर में तृणमूल के दो गुटों के बीच झड़प 2 लोगों की जानें चली गई थी। 19 सितंबर को पश्चिम मेदिनीपुर में ही भाजपा कार्यकर्ता दीपक मंडल पर कच्चे बम से हमला कर हत्या कर दी गई थी।
फंदे से लटका मिला था शव
जुलाई में उत्तर दिनाजपुर के हेमताबाद से भाजपा विधायक देबेंद्र नाथ राय का शव उनके गांव के पास फंदे से लटका हुआ मिला था। इसी तरह दक्षिण 24 परगना, पूर्व मेदिनीपुर व हुगली जिले में क्रमशः भाजपा कार्यकर्ता गौतम पात्रा, पूर्णचंद्र दास और गणेश राय का का शव उनके घरों के पास फंदे से लटका हुआ मिला था। प्रत्येक मामले में भाजपा ने तृणमूल पर हत्या का आरोप लगाया। हालांकि तृणमूल ने इससे इन्कार करते हुए दावा किया कि चारों लोगों ने आत्महत्या की।
क्या कहना है तृणमूल का
इस संबंध में तृणमूल के महासचिव व राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने कहा कि हर मामले को राजनीतिक रंग देकर तृणमूल पर आरोप मढ़ना भाजपा की आदत बन गई है। उन्होंने दावा किया कि बंगाल में पैर जमाने के लिए भाजपा हिंसा का सहारा लेकर यहां का माहौल खराब कर रही है। वे लोग तृणमूल कार्यकर्ताओं की हत्या और उनके घरों में तोड़फोड़ कर रहे हैं।
क्या कहना है भाजपा का
इधर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व सांसद दिलीप घोष ने कहा कि लोकसभा चुनाव में बंगाल में भाजपा की प्रचंड जीत व यहां लगातार बढ़ते जनसमर्थन से तृणमूल की जमीन खिसक चुकी है। इसीलिए विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल हिंसा के सहारे आतंक व भय का माहौल पैदा कर रही है। उन्होंने कहा- यहां एक नया ट्रेंड चला है और अब भाजपा कार्यकर्ताओं को मार कर लटका दिया जा रहा है। वहीं, कुछ तृणमूल कार्यकर्ताओं की हत्या के आरोपों पर उन्होंने कहा कि यह सत्तारूढ़ दल के आंतरिक गुटबाजी का नतीजा है।
1960 से ही बंगाल में हिंसा
इधर, कोलकाता के रबींद्र भारती विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर विश्वनाथ चक्रवर्ती के अनुसार, 1960 के दशक से ही बंगाल में हिंसा, राजनीति का हिस्सा है। यह वाम शासन के दौरान भी था, और तृणमूल कांग्रेस हिंसा के माहौल में ही सत्ता में आई थी। तृणमूल के शासन में इसे एक संरचनात्मक रूप मिला है। उन्होंने जोर देकर कहा कि हिंसा और राजनीति बंगाल में पर्यायवाची है।