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रणनीति: विस उपचुनावों के बाद अब नगर निकायों का चुनाव भी अकेले लड़ने पर विचार कर रही माकपा

माकपा की राज्य कमेटी की बैठक में मिले हैं ऐसे संकेत वाम दलों का वोट तो कांग्रेस के खाते में गया था लेकिन कांग्रेस का वोट वाम दलों को नहीं मिल पाया था। पिछले विधानसभा चुनाव में साथ मिलकर लड़ने पर दोनों का बहुत बुरा अंजाम हुआ था।

By Priti JhaEdited By: Published: Wed, 10 Nov 2021 03:03 PM (IST)Updated: Wed, 10 Nov 2021 03:03 PM (IST)
रणनीति: विस उपचुनावों के बाद अब नगर निकायों का चुनाव भी अकेले लड़ने पर विचार कर रही माकपा
विस उपचुनावों के बाद अब नगर निकायों का चुनाव भी अकेले लड़ने पर विचार कर रही माकपा

राज्य ब्यूरो, कोलकाता। बंगाल विधानसभा उपचुनावों के बाद अब नगर निकायों के चुनाव में भी माकपा अकेले चलने पर विचार-विमर्श कर रही है। माकपा की राज्य कमेटी की बैठक में ऐसे ही संकेत मिले हैं। पार्टी नेताओं का एक वर्ग इसके पुरजोर समर्थन में है। उसका कहना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन करके वाममोर्चा, खासकर माकपा, को कोई फायदा नहीं हुआ है। 2016 में वाममोर्चा ने कांग्रेस के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। उस वक्त कांग्रेस को वाम दलों से ज्यादा सीटें मिल गई थीं।

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वाम दलों का वोट तो कांग्रेस के खाते में गया था लेकिन कांग्रेस का वोट वाम दलों को नहीं मिल पाया था। पिछले विधानसभा चुनाव में साथ मिलकर लड़ने पर दोनों का बहुत बुरा अंजाम हुआ था। इस वर्ग का आगे कहना है कि शांतिपुर विधानसभा उपचुनाव माकपा ने जब अकेले लडा़ तो उसे पिछली बार की तुलना में काफी ज्यादा वोट मिले इसलिए माकपा को नगर निकायों का चुनाव भी अकेले लड़ना चाहिए।

माकपा की राज्य कमेटी के एक सदस्य ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहा कि भाजपा और तृणमूल काग्रेस के खिलाफ सभी प्रकार की लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एकजुट करने के राजनीतिक लक्ष्य से पार्टी के हटने का सवाल नहीं उठता, हालांकि ज्यादातर समीकरण चुनाव में स्थानीय स्थिति पर निर्भर करते हैं। नागरिक संघों या विभिन्न प्रकार के मंचों के नाम पर भी नगर निकायों के चुनाव में लड़ाई होती है। इस बात पर विचार किया जाना चाहिए कि कहां लड़ना है और कहां नहीं। जहां कांग्रेस या कोई और दल भाजपा व तृणमूल को अच्छी टक्कर दे सकता है, वहां वामदलों को अपना उम्मीदवार खड़ा करने की कोई जरूरत नहीं है। 


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