West Bengal :3 महीने बाद सभी एहतियाती उपाय के साथ 5 जुलाई से खुलेगा मायापुर इस्कॉन मंदिर
बंगाल सहित पूरी दुनिया में एक प्रमुख आस्था व पर्यटन केंद्र के रूप में विख्यात मायापुर स्थित इस्कॉन मंदिर आगामी 5 जुलाई रविवार से भक्तों के लिए खुलेगा।
कोलकाता, राज्य ब्यूरो। बंगाल सहित पूरी दुनिया में एक प्रमुख आस्था व पर्यटन केंद्र के रूप में विख्यात मायापुर स्थित इस्कॉन मंदिर आगामी 5 जुलाई, रविवार से भक्तों के लिए खुलेगा। कोरोना संकट के चलते लगभग 3 महीने बाद इस्कॉन के वैश्विक मुख्यालय मायापुर के प्रसिद्ध चंद्रोदय मंदिर के बहुप्रतीक्षित द्वार श्रद्धालुओं, तीर्थयात्रियों और आगंतुकों के लिए खुलने जा रहा है जहां उन्हें राधा माधव की पूजा व दर्शन का अवसर मिलेगा।
मायापुर एडमिनिस्ट्रेटिव काउंसिल के वाइस चेयरमैन माधव गौरांग दास ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि सभी एहतियाती उपायों को लागू करने के साथ मंदिर को 5 जुलाई से खोला जाएगा। उन्होंने बताया कि दर्शन का समय केवल सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे के बीच होगा। सभी आगंतुकों को मुख्य द्वार और गैमन गेट से प्रवेश की अनुमति होगी। गेट पर ही सभी वाहन को सैनिटाइज किया जाएगा और आगंतुकों की स्क्रीनिंग की जाएगी इसके बाद ही उन्हें मंदिर परिसर में प्रवेश दिया जाएगा।
यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सभी आगंतुक ठीक से मास्क पहने हों। भीड़ नियंत्रण के लिए एक उचित प्रणाली स्थापित की गई है और आगंतुकों के प्रवेश द्वार के बीच शारीरिक दूरी बनाए रखने के लिए निकास द्वार से अलग किया गया है। परिसर के अंदर आगंतुकों की आवाजाही को सीसीटीवी कैमरे द्वारा निगरानी रखी जाएगी। आगंतुकों की सुविधा के लिए प्रसादम को दोपहर में वितरित किया जाएगा। दास ने बताया कि चूंकि हमारे भक्तों और आगंतुकों की सुरक्षा हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है।
मायापुर इस्कॉन प्रबंधन स्थानीय प्रशासन के साथ लगातार संपर्क में है और सभी नियमों का कड़ाई से पालन किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से 70 लाख से अधिक लोग हर साल श्री चैतन्य महाप्रभु के जन्म स्थान और इस्कॉन के वैश्विक मुख्यालय मायापुर में आते हैं। वर्षों से मायापुर ना केवल बंगाल बल्कि पूरी दुनिया का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बन गया है। हालांकि इस वर्ष वैश्विक महामारी ने दुनिया भर के उन भक्तों, तीर्थ यात्रियों और आगंतुकों को बुरी तरह प्रभावित किया है जो आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में यहां आते हैं और हरिनाम संकीर्तन के आनंदमय सागर में डूब जाते हैं।