विश्वभारती के पूर्व वीसी, रजिस्ट्रार व प्रोफेसर को 5-5 साल की जेल
- बोलपुर कोर्ट ने जाली दस्तावेज के मामले में सुनाई सजा - अदालत के फैसले को चुनौती दे हाईकोट
- बोलपुर कोर्ट ने जाली दस्तावेज के मामले में सुनाई सजा
- अदालत के फैसले को चुनौती दे हाईकोर्ट जाने की तैयारी
जागरण संवाददाता, कोलकाता: कविगुरु रवींद्र नाथ टैगोर के सपनों के शहर शांतिनिकेतन स्थित विश्वभारती विश्वविद्यालय (विवि) के पूर्व कुलपति (वीसी) दिलीप कुमार सिन्हा, पूर्व रजिस्ट्रार दिलीप मुखोपाध्याय और गणित की महिला प्रोफेसर मुक्ति देव गुलटी को फ्राड (जालसाजी) के एक मामले में बोलपुर कोर्ट ने गुरुवार को पांच-पांच साल की जेल की सजा सुनाई। लगे हाथ एक-एक हजार रुपये आर्थिक दंड भी लगाया। उक्त अदालत ने बुधवार को ही तीनों को दोषी करार दिया। पूर्व कुलपती, रजिस्ट्रार और प्रोफेसर अब बोलपुर अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए कलकत्ता हाई कोर्ट जाने की तैयारी में हैं। देश में यह पहला मामला है जब किसी पूर्व वीसी और रजिस्ट्रार को फ्राड के मामले में सजा सुनाई गई है। मालूम हो कि यह मामला साल 2004 में कविगुरु रवींद्र नाथ टैगोर के नोबेल पदक चोरी होने की घटना के कुछ दिनों बाद ही सामने आया था। सिन्हा बाद में रिटायर हो गए और मामले की जांच सीआइडी को सौंप दी गई थी।
आरोप है कि महिला प्रोफेसर मुक्ति देव बिना आवश्यक योग्यता के ही करीब छह वर्षो तक विश्वविद्यालय के पोस्ट ग्रेजुएट छात्र-छात्राओं को गणित पढ़ाती रहीं। सीआइडी के अधिवक्ता नवकुमार घोष ने बताया था कि जांच में पता चला कि मुक्ति देव माध्यमिक पास करने के बाद 1997 में केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षक की नौकरी फर्जी दस्तावेज दिखाकर प्राप्त की थी। उक्त फर्जी दस्तावेज को सिन्हा ने वीसी रहते हुए सत्यापित किया था। 2001 में सिन्हा के रिटायर होने के बाद 2004 में विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद ने मुक्ति देव को पहले निलंबित किया और बाद में बर्खास्त कर दिया। इसके बाद सीआइडी ने जून 2004 में सिन्हा को कोलकाता से गिरफ्तार किया था। बाद में वे जमानत पर रिहा हो गई थीं। मार्च 2006 में जांच पूरी कर सीआइडी ने बोलपुर कोर्ट में आरोपितों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था। तीनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 466(फ्राड) 467(मूल्यवान दस्तावेज को लेकर धोखा), 468(जालसाजी), 469(प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए जालसाजी), 471(वास्तविक दस्तावेज के स्थान पर जाली दस्तावेज का इस्तेमाल), 474 (जाली दस्तावेज) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।