गुरु बिना सिद्धि संभव नहीं :ऋद्धि
गुरु पूíणमा विशेष इरफान-ए-आजम सिलीगुड़ी जीवन के किसी भी क्षेत्र में गुरु बिना सिद्धि संभव नही
गुरु पूíणमा विशेष
इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी : जीवन के किसी भी क्षेत्र में गुरु बिना सिद्धि संभव नहीं है। भारत के जाने-माने क्रिकेटर सिलीगुड़ी के लाल ऋद्धिमान साहा उर्फ ऋद्धि का यह कहना है। गुरु के बारे में वह उद्गार व्यक्त करते हैं कि गुरु एक सच्चा मार्गदर्शक होता है। गुरु के मार्गदर्शन में चलने से मार्ग पर यात्रा भी कठिन नहीं रहती और मंजिल मिलने भी बड़ी मदद मिलती है। आज विश्व स्तर पर प्रसिद्ध जादूगर विकेट-कीपर ऋद्धिमान 35 वर्ष के हो चुके हैं। क्रिकेट की दुनिया में राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने कई बड़ी उपलब्धिया हासिल की हैं। इन सबके बावजूद वह आज भी अपने बचपन के क्रिकेट कोच जयंत भौमिक को भूले नहीं हैं। वह दुनिया में कहीं भी रहें, अपने अच्छे-बुरे हर पल में अपने पहले क्रिकेट गुरु को हर हाल में याद रखते हैं।
इसका खुद, सिलीगुड़ी के जाने-माने क्रिकेट कोच जयंत भौमिक को भी बहुत गर्व है। वह कहते हैं कि <स्हृद्द-क्तञ्जस्>यह बहुत खुशी देती है, और गर्व की बात है कि आसमान छू कर भी ऋद्धिमान जमीन को नहीं भूले हैं। आम दिनों की तो बात ही अलग है। राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी अच्छे बुरे हर पल में वह मुझे याद रखते हैं और मुझसे हमेशा सलाह लेते रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक गुरु के लिए इससे बड़ी उपलब्धि और क्या होगी कि वह अपने शिष्य के नाम से जाना जाए। उसके शिष्य का कद उससे बड़ा हो जाए। जब यह सब देखता हूं सुनता हूं और महसूस करता हूं तो गर्व से सीना चौड़ा हो जाता है और आखों में खुशी के आसू आ जाते हैं।
जयंत भौमिक बताते हैं कि ऋद्धिमान बचपन से ही बहुत मेहनती व निष्ठावान थे। कभी प्रैक्टिस मैच में वह चोटिल हो जाते, उनके नाक से खून निकल जाता, उनके होंठ भी फट जाते, उसमें स्टिच पड़ती तब भी वह हार नहीं मानते। उपचार के बाद घर जा कर आराम नहीं करते बल्कि तुरंत वापस मैदान में आ जाते। हम सब उन्हें मना भी करते। मगर, वह नहीं मानते। कहते कि चोट तो खेल का अंग है इस से क्या घबराना।
उल्लेखनीय है कि ऋद्धिमान के पिता एक बहुत अच्छे फुटबॉलर थे। उन्हीं के असर में ऋद्धिमान के बचपन में शुरुआत फुटबॉल से ही हुई। मगर, फिर, कोच जयंत भौमिक के संपर्क में वह क्रिकेट की ओर आ गए तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अंडर-13 से अंडर-19 तक वह जयंत भौमिक के सानिध्य में प्रशिक्षण लेते रहे। अंडर-19 में चयन के बाद ऋद्धिमान हमेशा आगे ही बढ़ते गए। उन्होंने अंडर -22 टीम के लिए खेला। ऋद्धिमान साहा ने अपना एक दिवसीय डेब्यू 2006-07 की रणजी ट्रॉफी में असम के खिलाफ किया। टेस्ट और वन-डे के साथ ही साथ ऋद्धिमान ने लोकप्रिय इंडियन प्रीमीयर लीग (आईपीएल) में भी खूब जलवे बिखेरे हैं। वह कोलकाता नाइट राइडर्स, चेन्नई सुपर किंग्स, किंग्स-11 पंजाब के लिए खेल चुके हैं। अभी सनराइजर्स हैदराबाद के लिए खेलते हैं। ऋद्धिमान साहा की जादुई विकेटकीपिंग के चलते उन्हें जादूगर विकेटकीपर व फ्लाइंग साहा आदि नामों से भी जाना जाता है। भारतीय क्रिकेट कप्तान विराट कोहली ने उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ विकेटकीपर तक कहा है। इतनी सारी उपलब्धियों का आसमान छूने के बावजूद ऋद्धिमान साहा जमीन को नहीं भूले हैं। आज भी वह अपने बचपन के सिलीगुड़ी शहर, अग्रगामी क्रिकेट कोचिंग सेंटर व क्रिकेट कोच जयंत भौमिक को पल-पल याद रखते हैं। उनके सानिध्य में रहना पसंद करते हैं। उनका मार्गदर्शन लेकर ही चलते हैं।