विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष: सचेत तो छिन जाएगी जिंदगी, सरकार या प्रशासन ही नहीं हर व्यक्ति को होना होगा जागरूक
अक्टूबर नवंबर व दिसंबर माह में प्रदूषण की वजह से मौत के आंकड़े भी बढ़ जाते हैं। यदि हम अभी से नहीं चेते तो आने वाले कुछ सालों में साफ हवा में सांस लेने के लिए सिर्फ पहाड़ और जंगल ही बचे रह जाएंगे।
अशोक झा,सिलीगुड़ी। हिमालय की गोद में बसा हुआ पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार सिलीगुड़ी। इसका नाम सामने आते ही इसके चारों ओर ऊंची ऊंची पहाड़ियां, कल-कल करती नदियां, बड़े-बड़े जंगल और उसके आसपास दूर दूर तक फैली चाय बागान। शांत और प्राकृतिक सौंदर्य मानो अपनी बाहें फैला लोगों को आगोश में लेने को व्याकुल रहती है। इसकी खूबसूरती ही ब्रिटिश शासनकाल में इस क्षेत्र को स्वास्थ्य लाभ के चेंज किया था। आज परिस्थिति धीरे धीरे विपरीत होते जा रही है।
जैसे-जैसे शहर विकसित हो रहे हैं, हरियाली कम और कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। बाहर से हरी-भरी दिखने वाली जंगल अंदर से दिन प्रतिदिन खोखले होते जा रहे हैं। हर साल प्रदूषण के मामले में बढ़ोतरी हो रही है। अक्टूबर,नवंबर वह दिसंबर माह में प्रदूषण की वजह से मौत के आंकड़े भी बढ़ जाते हैं। यदि हम अभी से नहीं चेते तो आने वाले कुछ सालों में साफ हवा में सांस लेने के लिए सिर्फ पहाड़ और जंगल ही बचे रह जाएंगे।
प्रदूषण लगातार हमारी सांसें कम कर रहा है। नए पैदा होने वाले बच्चों पर इसका असर भी दिख रहा है। कोविड-19 महामारी की दो लहरों के बाद भी अगर हम ना चेते तो हमारी जिंदगी छिन जाएगी। इसलिए कहना पड़ रहा है कि कोविड-19 महामारी में क्षेत्र में सबसे ज्यादा मौत और संक्रमण पर्वती क्षेत्र में ही देखने को मिला है।जैव विविधता एक प्रमुख प्राकृतिक संसाधन है, जो प्राकृतिक व पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से बेहद अहम है। छोटी सी चिड़िया हो या हाथी जैसा विशालकाय जानवर, ये सब खाद्य शृंखला का एक उचित तालेमल बनाए रखते हैं। दुनियाभर में इनकी संख्या 20 लाख के आसपास है और ये सभी प्रकृति व पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसमें सबसे ज्यादा उत्तर बंगाल में है।
पर्यावरण संतुलन में जैव विविधता के महत्व को दर्शाने के लिए ही इस बार संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण दिवस का थीम इस विषय को चुना है। यह सब एक बार फिर इसका एहसास दिलाता है कि हमें अपने विकास की प्रक्रिया के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है। कोविड-19 महामारी के कारण कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं होगा लेकिन पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमको और आपको मिलकर सोचना है।
12 महीने के बदले 4 माह में ही बारिश
उत्तर बंगाल, सिलीगुड़ी और आसपास के क्षेत्र में यहां साल भर वर्षा होती थी। यही कारण था कि घर से निकलने से पहले लोग छाता लेकर ही निकलते थे। लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण यहां 12 महीना के बदले चार माह बारिश होती है। वह भी महीने और समय का निर्धारण नहीं है। मौसम में आए बदलाव के कारण कई प्रकार की बीमारियां भी हो रही है। पहाड़ और समतल के मौसम में ज्यादा बदलाव नहीं दिखता। विश्व पर्यावरण दिवस जो 5 जून को मनाया जाता है इसका मुख्य कारण है लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना है। क्योंकि जुलाई से अगस्त के अंदर पौधरोपण किए जाते हैं। लेकिन अब उसमें भी कमी देखी जा रही है।
जंगली के पेड़ काटे जाने से हो रहा नुकसान
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले शंकर मजूमदार का कहना है कि प्राकृतिक जंगल को काटे जाने से बड़ा नुकसान होता है। इसकी भरपाई पौधरोपण से नहीं किया जा सकता। प्राकृतिक वन क्षेत्र में पशु पक्षी फलदार वृक्ष को खाने के बाद एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं और वहां गिरे फल के बदौलत खुद ब खुद पेड़ तैयार होता है। प्राकृतिक जंगल में वहां रहने वाले जीव जंतुओं का आहार भी वहीं से पूरा होता है। पैर के अंधाधुंध कटाई के कारण ही जंगली जीव जंतु और जानवर जैसे हाथी तेंदुआ रिहायशी इलाकों में प्रवेश कर रहे हैं। इसके अलावा वन क्षेत्र में रहने वाले कई प्रकार के पक्षी भी विलुप्त होते जा रहे हैं। इस वित्तीय वर्ष में राज्य सरकार ने वन्य क्षेत्र के बजट को 54 फीसद कम कर दिया है जो चिंता का विषय है।
नदियों को प्रदूषण मुक्त करना जरूरी
पहाड़ और नदी क्षेत्र में लगातार शोध और कार्य करने वाले अनिमेष बसु का कहना है की जैव विविधता को बचाने के लिए सबसे पहले सिलीगुड़ी और उसके आसपास इन नदियों महानंदा, फुलेश्वरी, पंचनई, महेशमारी, वालासन, चमटा, जोड़ा पानी, जल डूबार, चेंगा, मेंची समेत अन्य छोटी नदियों को भी बचाना पड़ेगा।सिलीगुड़ी और इसके आसपास के क्षेत्रों में नदियों के अलावा धुआं उगलते ऑटो, नदियों, नाले और हाइड्रिन में कचड़े, शुद्ध पेयजल की व्यवस्था, जल संरक्षण के साथ ही कचरा निस्तारण की आधुनिक पद्धति पर बल दिया जाना चाहिए।
सबको मिलकर सोचने का आया है समय
इस पर्यावरण दिवस पर हम सब इस बारे में सोचें कि हम अपनी धरती को स्वच्छ और हरित बनाने के लिए और क्या कर सकते हैं। किस तरह इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। पर्यावरण दिवस पर अब सिर्फ पौधारोपण करने से कुछ नहीं होगा। जब तक हम यह सुनिश्चित नहीं कर लेते कि हम उस पौधे के पेड़ बनने तक उसकी देखभाल करेंगें। सिलीगुड़ी और आसपास तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण बड़ी मात्रा में कृषि भूमि आबादी की भेंट चढ़ती गई। जिस कारण वहां के पेड़-पौधे काट दिये गये व नदी-नालों को बंद कर बड़े-बड़े भवन बना दिए गए। जिससे वहां रहने वाले पशु-पक्षी अन्यत्र चले गए। लेकिन लाकडाउन ने लोगों को उनके पुराने दिनों की याद दिला दी है। पुराने समय में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिये पेड़ों को देवताओं के समान दर्जा दिया जाता था। उसे हमें फिर से प्रतिष्ठित करना होगा।
पौधा लगाओ, पानी बचाओ पॉलिथीन हटाओ पर देना होगा बल
भारतीय जनता पार्टी के नेता, पर्यावरण के लिए काम करने वाले हार्टिकल्चर सोसाइटी के अध्यक्ष नांटू पाल का कहना है कि कोविड-19 महामारी ने बता दिया है कि समय आ गया है की पौधा लगाओ पानी बचाओ और पॉलिथीन हटाओ को जीवन का सूत्र मानना होगा। उन्होंने कहा कि बतौर पति-पत्नी पार्षद होने के पहले से जल संरक्षण व पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करते आए है। जल संरक्षण के बिना जीवन असम्भव है, इसके कारण ही हमारे वन्य जीव-जन्तुओं का अस्तित्व है। हमारी पहल अगली पीढ़ी के लिए जल को बचाए रखने की होनी चाहिए। जन-जन में यही चेतना जाग्रत करने का काम द्वारा किया जा रहा है। कोशिश केवल यही कि भावी पीढ़ी के लिए घर के भंडार को सुरक्षित रखा जा सके। इन दिनों जल प्रदूषण को लेकर सबसे ज्यादा चिता जताई जा रही है। आने वाले समय में जहा स्वच्छ पेयजल की कमी को लेकर कई प्रकार की चिंताएं जताई जा रही है, वहीं दूसरी और उपलब्ध जल को प्रदूषित किया जा रहा है। प्रदूषण से नदियों, कुंओं और तालाबों के जल के साथ ही भूमिगत जल स्त्रोत भी विषाक्त हो रहे हैं।
पर्यावरण संरक्षण में रोजगार के बेहतर अवसर
उन्होंने बताया कि पर्यावरण संरक्षण व जल प्रबंधन के क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार के कई नए अवसर पैदा हुए हैं। फूल और पौधों के माध्यम से पूरे उत्तर बंगाल में एक लाख से अधिक लोग जुड़े हुए है। फूल और पौधरोपण के माध्यम से जल संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा कर रही हैं। यह सभी पर्यावरण संरक्षण के साथ अपने परिवार का भरण पोषण भी कर रहे हैं।
बिहारी कल्याण मंच से सीख ले लोग
सिलीगुड़ी बिहारी कल्याण मंच पिछले 4 साल से शहर के 43 नंबर वार्ड प्रकाश नगर में वृक्षारोपण का कार्य कर रही है। यहां सिर्फ पौधा लगाना ही नहीं बल्कि वर्षों तक इसे बचाने की मुहिम में कर्मवीर सिंह ओझा के नेतृत्व में बैजू राय, बबलू गोस्वामी सुरेंद्र यादव गौतम राय सुरेश राय आदि ने 700 से अधिक पेड़ को बचाए रखा है। इन से प्रेरणा लेकर पर्यावरण के प्रति जो भी कार्य करते हैं वह पौधा लगाने के साथ उसे बचाने की जिम्मेदारी निभाए तो शहर को हरा-भरा और प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है।
पूछते हैं लोग हम क्या कर सकते हैं
शनिवार को विश्व पर्यावरण दिवस है। समाचार संग्रह के दौरान लोगों की जिज्ञासा थी कि हम क्या कर सकते हैं?। दैनिक जागरण के पाठकों से कहना है कि ऐसे मौके पर हम सभी को कोई ऐसा प्रण लेना चाहिए जो आने वाली पीढ़ियों को साफ सुथरी हवा देने में मददगार हो सके।
आम लोगों को भी इसमें योगदान देना है।
- - इसके लिए वो अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखें।
- -सड़क पर कूड़ा ना फेंके और न ही कूड़े में आग लगाएं। कूड़ा रीसाइकल के लिए भेजें।
- -प्लास्टिक, पेपर, ई-कचरे के लिए बने अलग-अलग कूड़ेदान में कूड़ा डाले ताकि वह आसानी से रीसाइकल के लिए जा सके।
- -वाहन चालक निजी वाहन की बजाय कार-पूलिंग, गाडियों, बस या ट्रेन का उपयोग करें।
- - कम दूरी के लिए साइकिल चलाना पर्यावरण और सेहत के लिहाज से बेहतर है।
- -पानी बचाने के लिए घर में लो-फ्लशिंग सिस्टम लगवाएं, जिससे शौचालय में पानी कम खर्च हो। शॉवर से नहाने की बजाय बाल्टी से नहाएं।
- - ब्रश करते समय पानी का नल बंद रखो। हाथ धोने में भी पानी धीरे चलाएं।
- -गमलों में लगे पौधों को बॉल्टी-मग्गे से पानी दें।
- -नल में कोई भी लीकेज हो तो उसे प्लंबर से तुरंत ठीक करवाएं ताकि पानी टपकने से बरबाद न हो।
- -नदी, तालाब जैसे जल स्त्रोतों के पास कूड़ा ना डालें। यह कूड़ा नदी में जाकर पानी को गंदा करता है।
- -घर की छत पर या बाहर आंगन में टब रखकर बारिश का पानी जमा करें, इसे फिल्टर करके फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं।