जहां गूंजता लाल सलाम अब बोलते जय श्रीराम-नक्सलबाड़ी आंदोलन के 53 वर्षों में बदली राजनीति फिजा
यहां प्रतिवर्ष नक्सली संगठन नक्सालबाडी दिवस मनाते हैं। और आज के नक्सलवाड़ी में काफी फर्क दिखाई देता है। जहां कल तक यहां लाल सलाम की गूंज सुनाई देती थी वही आज ज्यादातर घरों में जय श्रीराम के नारे लग रहे हैं।
अशोक झा, सिलीगुड़ी। 24 मई 1967 के दिन नक्सली आंदोलन का खूनी संघर्ष शुरू हुआ था। यह स्थान कहीं और नहीं बल्कि सिलीगुड़ी से 25 किलोमीटर दूर नक्सलबाडी है। यहां पुलिस के साथ संघर्ष के दूसरे दिन यानि 25 मई 1967 जहां पुलिस की गोली से धनेश्वरी देवी, सीमाश्वरी मल्लिक, नयनश्वरी मल्लिक, मुरुबाला बर्मन, सोनामति सिंह, फूलमती देवी, सामसरि सैरानी, गाउद्राउ सैरानी, खरसिंह मल्लिक, साथ में दो बच्चे भी मारे गए थे। उस समय गांव में कोई पुरुष नहीं मौजूद था।
सभा कर रही निहत्थी महिलाओं को 24 मई की घटना के बारे में पता तक नहीं था। पुलिस ने सभी मृतकों के शवों को अपने कब्जे में ले लिया और उन्हें परिजनों तक को नहीं सौंपा। इस बर्बर हत्याकांड से नक्सलबाड़ी को नहीं रोका जा सका, बल्कि इसके खिलाफ जो तूफान उठा, वह नक्सलबाड़ी का झंझावात बनकर समूचे देश में फैल गया। यहां यहां शहीद स्तम्भ के पास माओ त्सेतुंग, चारु मजुमदार, सरोज दत्त की मूर्तियां भी लगी हैं। यहां प्रतिवर्ष नक्सली संगठन नक्सालबाडी दिवस मनाते हैं। और आज के नक्सलवाड़ी में काफी फर्क दिखाई देता है। जहां कल तक यहां लाल सलाम की गूंज सुनाई देती थी वही आज ज्यादातर घरों में जय श्रीराम के नारे लग रहे हैं। यहां से 2021 में विधायक भी भारतीय जनता पार्टी का चुनकर भारी मतों से सदन में पहुंचा है। इसके पीछे वर्तमान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का 2017 में एक दलित के घर भोजन करना बताया जा रहा है। इसलिए यहां की राजनीतिक और आबोहवा पूरी तरह बदली हुई है।
धीरे धीरे फैलता गया आंदोलन:
उसके बाद जातापु आदिवासियों को श्रीकाकुलम में जमींदारों के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए तैयार किया। इसने देश भर के शिक्षित मध्य वर्ग युवाओं को जोड़ा।इसी दौरान बिहार में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के रैडिकल तत्वों ने बिहार के मुसहरी में सशस्त्र आंदोलन शुरू कर दिया।इसके बाद उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल में फसल और जमीन पर कब्जे के लिए आंदोलन भड़क उठे। केरल में अजिता जैसे लोगों ने पुलिस स्टेशन पर छापे मारकर सभी को चौंका दिया। इन सब ताक़तों ने मिलकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का गठन 1969 में किया। इसके बाद जिस भी पार्टी ने सशस्त्र संघर्ष की बात की, वो अपने पार्टी के नाम के पीछे सीपीआई (एम-एल) जोड़ने लगा।
कई दलों में विभक्त हो गई पार्टी:
मूल मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी कई धड़े में टूटी। उत्तर बंगाल नहीं बात करें तो यहां 5 भाग में पार्टी विभक्त हो गई। कानू सान्याल सीपीआई एम एल, तो दूसरे नेता रेड स्टार सीपीआईएमएल, दूसरे नेता पीसीसी, चौथी नेता सीपीआई एमएल न्यू डेमोक्रेसी, पांचवें नेता सीपीआई एम एल लिबरेशन और सीपीआईएमएल न्यू डेमोक्रेसी के नाम पर पार्टी संगठन का काम देख रहे हैं। इसके अलावा महत्वपूर्ण रहे दलों में सीपीआई (एम-एल) पीपल्स वार मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और दंडकारण्य क्षेत्र में सक्रिय है। जबकि माओस्टि कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) पहले बिहार और बाद में पश्चिम बंगाल में स्वतंत्र रूप से काम कर रही है। इसके अलावा विनोद मिश्र के नेतृत्व में सीपीआई (एम-एल) (लिबरेशन), सत्यानारायण सिंह और चंद्र पुला रेड्डी के नेतृत्व में एक अन्य एम-एल पार्टी भी सक्रिय हो गई।
नक्सल आंदोलन से जुड़े नेता करते हैं स्वीकार
भाकपा (माले) लिबरेशन की केंद्रीय समिति के सदस्य और चारू मजूमदार के बेटे अभिजीत मजूमदार दैनिक जागरण से बात करते हुए कहा कि नक्सली के आदर्श और संघर्ष अब भी प्रासंगिक हैं। वे कहते हैं कि कम्युनिस्ट नीतियों को सही तरीके से लागू नहीं कर पाना आज सबसे बड़ी सफलता है रही।दुश्मन सिर्फ स्वरूप ही बदला है। नक्सलबाड़ी में बदलाव के पीछे विभाजन की राजनीति और सांप्रदायिक धु्रवीकरण के जरिए आधार हैं।
आंदोलन और पार्टी की स्थिति के लिए लेफ्ट जिम्मेदार: शांति मुंडा: नक्सल आंदोलन शुरुआत करने वाली एकमात्र जीवित नक्सली शांति मुंडा आज 80 साल की हो गई है। वह कहती है कि आज पार्टी और आंदोलन की इस स्थिति के लिए सिर्फ और सिर्फ लेफ्ट जिम्मेदार है। जिस जमीन के लिए हमारी पीढ़ी संघर्ष में जीवन बिता दिया आज इस जमीन को मजबूरी या लालच में हम बेचने पर मजबूर हैं। जिस नक्सलवादी आंदोलन के नाम पर आज दुनिया भर में यह आंदोलन हिंसक रास्ता अख्तियार कर चुका है आज इस आंदोलन की शुरुआत करने वाली को घर बनाने के लिए 3 कट्ठा जमीन तक बेचना पड़ा।
कानू सान्याल पार्टी के महासचिव कम्युनिस्ट को दे रही है दोष
आंदोलन के जन्मदाता कानू सान्याल की पार्टी सीपीआई एम एल के महासचिव दीपू हालदार जो नक्सलबरी में ही रहती है का कहना है कि आज बाम से राम होने के पीछे कम्युनिस्ट का 34 साल का शासन जिम्मेदार है। पिछले 10 वर्षों से जिस प्रकार तृणमूल कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को आगे बढ़ने का मौका दिया है इसका ही कारण है कि नक्सलवादी में भारतीय जनता पार्टी जीत हासिल कर पाई है। इस बात पर कम्युनिस्ट नेताओं को गहराई से मंथन करना पड़ेगा।