Vijayadashami: बंगाल में शमी की पूजा के साथ मना विजयदशमी
Vijayadashami शहरे का पावन त्योहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। साथ ही उसी दिन से इसे मनाने की परंपरा शुरू हो गई। ऐसे में देश के विभिन्न शहरों में दशहरे का त्योहार अलग- अलग रीति- रिवाजों के साथ मनाया जाता है।
जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी। Vijayadashami: नवरात्रि के पावन दिन पूरे नौ दिन चलते है। उसके बाद दसवें दिन विजयदशमी यानि दशहरा मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम ने राक्षसों के राजा लंकापति रावण का वध किया था। ऐसे में दशहरे का पावन त्योहार बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, उसी दिन से इसे मनाने की परंपरा शुरू हो गई। ऐसे में देश के विभिन्न शहरों में दशहरे का त्योहार अलग- अलग रीति- रिवाजों के साथ मनाया जाता है। दशहरे के दिन बहुत सी जगहों पर शस्त्र व शमी के पेड़ की पूजा होती है।
महाभारत काल से जुड़ी है शमी पेड़ की पूजा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के समय पर पांडवों ने अपने अस्त्र-शस्त्रों को शमी के वृक्ष पर ही छुपाया था। महाभारत का युद्ध कर उन्होंने कौरवों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में दशहरे वाले दिन प्रदोषकाल में शमी के पेड़ की पूजा करना बेहद शुभ माना जाता है। इसके साथ रोजाना इसकी पूजा करने से जीवन के संकटों से मुक्ति मिलने के साथ सुख- समृद्धि व शांति आती है। सबसे पहले नहाकर साफ कपड़े धारण किया गया। फिर प्रदोषकाल में शमी के पेड़ के पास जाकर सच्चे मन से प्रमाण कर उसकी जड़ को गंगा जल, नर्मदा का जल या शुद्ध जल चढ़ाया गया। उसके बाद तेल या घी का दीपक जलाकर उसके नीचे अपने शस्त्र रख दिए। फिर पेड़ के साथ शस्त्रों को धूप, दीप, मिठाई चढ़ाकर आरती कर पंचोपचार या षोडषोपचार पूजन किया गया।
इस संबंध में आचार्य पंडित यशोधर झा ने बताया कि
शमी शम्यते पापम् शमी शत्रुविनाशिनी।
अर्जुनस्य धनुर्धारी रामस्य प्रियदर्शिनी।।
करिष्यमाणयात्राया यथाकालम् सुखम् मया।
तत्रनिर्विघ्नकर्त्रीत्वं भव श्रीरामपूजिता।।'
इसका अर्थ है, हे शमी वृक्ष आप पापों को नाश और दुश्मनों को हराने वाले है। आपने ही शक्तिशाली अर्जुन का धनुश धारण किया था। साथ ही, आप प्रभु श्रीराम के अतिप्रिय है। ऐसे में आज हम भी आपकी पूजा कर रहे हैं। हम पर कृपा कर हमें सच्च व जीत के रास्ते पर चलने की प्रेरणा दें। साथ ही, हमारी जीत के रास्ते पर आने वाली सभी बांधाओं को दूर कर हमें जीत दिलाए। यह प्रार्थना करने के बाद अगर आपको पेड़ के पास कुछ पत्तियां गिरीं मिलें तो उसे प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें। साथ ही, बाकी की पत्तियों को लाल रंग के कपड़े में बांधकर हमेशा के लिए अपने पास रखें। इससे आपके जीवन की परेशानियां दूर होने के साथ दुश्मनों से छुटकारा मिलेगा। इस बात का खास ध्यान रखें कि आपकी पेड़ से अपने आप गिरी पत्तियां उठानी है।
सिद्धिदात्री की पूजा के साथ मंगा वरदान
देवी मां की नवमी तिथि पर उपासना का विशेष महत्व होता है। नवमी तिथि के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना की जाती है। मां सिद्धिदात्री को सिद्धि और मोक्ष की देवी माना जाता है। मान्यता है कि मां दुर्गा के इस स्वरूप की पूजा करने से भक्त को यश, बल और धन की प्राप्ति होती है।
मां सिद्धिदात्री से जुड़ी ये पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव ने मां सिद्धिदात्री की कठोर तपस्या कर आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था। साथ ही मां सिद्धिदात्री की कृपा ने भगवान शिव का आधा शरीर देवी हो गया था और वह अर्धनारीश्वर कहलाए। मां दुर्गा का यह अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप है।
शास्त्रों के अनुसार, देवी दुर्गा का यह स्वरूप सभी देवी-देवताओं के तेज से प्रकट हुआ है। कहते हैं कि दैत्य महिषासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवतागणम भगवान शिव और प्रभु विष्णु के पास गुहार लगाने गए थे। तब वहां मौजूद सभी देवतागण से एक तेज उत्पन्न हुआ। उस तेज से एक दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ। जिन्हें मां सिद्धिदात्री के नाम से जाते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, मां सिद्धिदात्री के पास अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व सिद्धियां हैं। माता रानी अपने भक्तों को सभी आठों सिद्धियों से पूर्ण करती हैं। मां सिद्धिदात्री को जामुनी या बैंगनी रंग अतिप्रिय है। ऐसे में भक्त को नवमी के दिन इसी रंग के वस्त्र धारण कर मां सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से माता की हमेशा कृपा बनी रहती हैं।