'स्कूल शिक्षक' न बन पाने वाला बना 'स्कूल मालिक'!
-स्कूल में औसत रहे छात्र का जीवन में असामान्य प्रदर्शन -खुद नहीं पा सके नौकरी, आज सैकड़ों को दे रहे
-स्कूल में औसत रहे छात्र का जीवन में असामान्य प्रदर्शन
-खुद नहीं पा सके नौकरी, आज सैकड़ों को दे रहे रोजगार
इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी :
वह शिक्षक की नौकरी के लिए स्कूलों में गए। बी.एड. की डिग्री मांगी गई। नहीं थी! बी.एड. करने कॉलेजों में गए। शिक्षण का अनुभव मांगा गया। नहीं था! ऐसी विडंबना के बीच, मोटर पार्टस् के जमे-जमाए लाभप्रद खानदानी ऑटोमोबाइल बिजनेस से जुड़ सकते थे। मगर, नहीं। दिल-व-दिमाग में शिक्षक बनने की ही धुन सवार थी। फिर क्या हुआ? इतना अच्छा हुआ जो कल्पना से परे था।
यह बड़ी दिलचस्प व प्रेरणादायक कहानी है। उस शख्सियत की जिसका नाम है संदीप घोषल। यह नाम आज सिलीगुड़ी के शिक्षा जगत में शायद ही किसी के लिए अनजाना हो। संदीप घोषल आज शहर के नामी-गिरामी शिशु शिक्षण संस्थान 'ब्राइट एकेडमी' (पंजाबी पाड़ा) के मालिक हैं। उनकी ब्राइट एकेडमी का विस्तार सिलीगुड़ी के खालपाड़ा व ज्योति नगर और जलपाईगुड़ी तक ही सीमित नहीं है। राजधानी कोलकाता के दमदम व साल्टलेक तक में उनकी 'ब्राइट एकेडमी' की शाखाएं खुल चुकी हैं। जहां, आज हजार से ज्यादा विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसके साथ ही सैकड़ों लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार पा रहे हैं।
इस सफलता के कोण से यह अंदाजा लगाना स्वाभाविक है कि संदीप घोषल बहुत मेधावी छात्र रहे होंगे। मगर, ऐसा नहीं है। वर्ष 1995 में आइसीएसइ बोर्ड के महबर्ट हाईस्कूल से 10वीं में भले ही उन्हें अच्छे मार्क्स आए। मगर, वर्ष 1997 में सिलीगुड़ी कॉलेज से 12वीं और वर्ष 1999 में सिलीगुड़ी कॉलेज ऑफ कॉमर्स से सामान्य कॉमर्स स्नातक में उनके नंबर औसत ही रहे। पर, उनके करियर व जीवन का प्रदर्शन असामान्य है।
उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। इसके बावजूद, 10वीं पास करने के बाद से ही संदीप घोषल शिक्षण से जुड़ गए। घरों में जा कर बच्चों को पढ़ाने लगे। संग-संग अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। स्नातक के बाद बहुत जूते घिसे। कहीं किसी स्कूल में शिक्षक की नौकरी नहीं पा सके। तब, वर्ष 1999 में ही पंजाबी पाड़ा में अपना छोटा सा कोचिंग सेंटर खोला। अपने ही ट्यूशन वाले बच्चों को लेकर शुरुआत की। कोचिंग सेंटर अच्छा चलने लगा। मगर, यहीं तक उनका सपना समाप्त हो जाने वाला नहीं था।
अब तक अपनी कुछ जमा पूंजी व पिता से कुछ पूंजी लेकर वर्ष 2004 में नई शुरुआत की। पंजाबी पाड़ा में ही। किराये के मकान में शिशु शिक्षण संस्थान (प्री-स्कूल) 'ब्राइट एकेडमी' कायम किया। मात्र सात बच्चों को लेकर शुरुआत करनी पड़ी। शुरुआती दिन संकट भरे गुजरे। लोग भी तंज कसते। पर, उन्होंने हार नहीं मानी। लगे रहे। मेहनत, लगन, समर्पण ने रंग लाना शुरू किया। टॉड्डलर्स, प्ले-ग्रुप, नर्सरी व के.जी. स्तर तक का उनका प्री-स्कूल अब प्राइमरी स्तर (कक्षा एक से पांचवीं) तक प्रोन्नत हो गया है। एक दिलचस्प बात यह भी कि उनके ट्यूशन व कोचिंग में रहे विद्यार्थियों के बच्चे भी अब उनके ही स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
अब, पांच शाखाएं, हजार से ज्यादा विद्यार्थी, सैकड़ों शिक्षक व गैर-शिक्षक कर्मचारी, 'ब्राइट एकेडमी' परिवार की सफलता की गाथा है। अब संदीप घोषल का सपना एक श्रेष्ठ सेकेंडरी स्तर का स्कूल कायम करना है।
संदीप घोषल कहते हैं कि मैं हमेशा एक औसत छात्र ही रहा। पर, यह मेरे लिए कहीं समस्या की बात नहीं रही। क्योंकि, मेरे व्यवसायी पिता नवरतनमल घोषल व गृहिणी माता सुशीला देवी घोषल और मेरी पत्नी शालिनी घोषल या परिवार के किसी ने भी कभी मुझ पर अपनी मर्जी नहीं थोपी। मेरी इच्छानुरूप मेरे सपनों को साकार करने की दिशा में पूरा सहयोग दिया। हमेशा हौसला बढ़ाया। मैं आज जो कुछ भी हूं। यह सब उसी का फल है। मेरे परिवार को मेरे मार्क्स से ज्यादा मेरी मेधा पर भरोसा था, जो रंग लाया।