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यादेंः तब बाल-बाल बची थी सुषमा स्वराज की जान

Sushma Swaraj. सुषमा स्वराज अपने पीछे कुछ ऐसी यादें छोड़ गई हैं जो कभी नहीं भुलाई जा सकती हैं।

By Sachin MishraEdited By: Published: Wed, 07 Aug 2019 09:00 PM (IST)Updated: Thu, 08 Aug 2019 12:19 PM (IST)
यादेंः तब बाल-बाल बची थी सुषमा स्वराज की जान
यादेंः तब बाल-बाल बची थी सुषमा स्वराज की जान

सिलीगुड़ी, अशोक झा। प्रखर वक्ता, भाजपा की कुशल नेता व पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आज हमारे बीच नहीं रहीं। वह पंचतत्व में विलीन हो गई हैं। बुधवार को सिलीगुड़ी सहित पूरे उत्तर बंगाल में भाजपा समेत कई संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं में शोक की लहर है। दूसरी ओर, सुषमा स्वराज अपने पीछे कुछ ऐसी यादें छोड़ गई हैं, जो कभी नहीं भुलाई जा सकती हैं। इसी क्रम में एक यादें वर्ष 1989 की है। तब सुषमा स्वराज भाजपा नेताओं की एक टीम के के साथ भारत-बांग्लादेश सीमांत तीनबीघा गलियारे के दौरे पर आई थीं। सिलीगुड़ी से तीनबीघा जाने के क्रम में उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त होते-होते बची थी। तब एक तरह से कहें तो उनकी जान पर बन आई थी। उस समय बांग्लादेश और भारत के बीच हुए तीनबीघा समझौते को लेकर पूरे क्षेत्र में काफी तनाव का माहौल था।

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सुषमा स्वराज की गा,ड़ी तब सिलीगुड़ी में विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष ओम प्रकाश अग्रवाल उर्फ सीमी चला रहे थे। उस घड़ी को याद कर सीमी आज भी सिहर जाते हैं। सुषमा स्वराज के निधन पर ओम प्रकाश अग्रवाल उर्फ सीमी ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में उस कार दुर्घटना सहित सुषमा स्वराज के उत्तर बंगाल दौरे से जुड़ी कई प्रकार की यादों को साझा किया। उन्होंने बताया कि जब सुषमा जी भानु प्रताप शुक्ल, जस्टिस गुमान मल लोढ़ा के साथ सिलीगुड़ी पहुंची तो उनके भोजन और भारत बांग्लादेश सीमांत तीनबीघा तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हम कार्यकर्ताओं पर थी। भोजन मेरे निवास स्थान पर ही हुआ। इस दौरान भाजपा जिला कमेटी सदस्य विनोद अग्रवाल उर्फ बिन्नु, सुशील कलोदिया, सुशील रामपुरिया, जगदीश अग्रवाल, जतीन चक्रवर्ती, तपन सिकदार, प्रताप बनर्जी, गीता चटर्जी आदि मौजूद थीं।

भोजन के बाद वहां तक जाने के लिए वाहन की बात आयी तो विनोद अग्रवाल उर्फ बिन्नु ने वाहन होने की बात कही,परंतु चालक नहीं होने से समस्या बढ़ गई। उसके बाद मैंने स्वयं कार चलाने का निर्णय लिया। यहां से विनोद को अपने पास बैठाकर पीछे सुषमा जी, भानुप्रताप शुक्ल और जस्टिस लोढ़ा को लेकर चले। तीनबीघा सीमा पर दूसरे दिन सभा होने वाली थी, जिसमें लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को भी आना था। बातचीत करते हुए कार आराम से तीनबीघा की ओर बढ़ रही थी, तभी जलपाईगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट के गेट के पास कीचड़ भरे रास्ते व जर्जर सड़क के कारण अनियंत्रित होकर सड़क से दूर जाने लगी। गनीमत रही कि कार किसी पेड़ से नहीं टकराकर सड़क किनारे चली गई। अगर पेड़ से टकराती तो किसी का बच पाना मुश्किल था।

स्थानीय कुछ लोगों की मदद से कार को बाहर निकाला गया। इस घटना के बाद हमलोग विचलित हो गए थे। परंतु सुषमा स्वराज जरा भी विचलित नहीं हुई थी और कहा था कि यह तो आए दिन की बात है। उसके बाद कार बाहर निकाल जब दोबारा हमसब आगे बढ़े तो कार मयनागुड़ी के निकट खराब हो गई। वहां उसे कोई ठीक करने वाला भी नहीं था। उसके बाद दूसरी कार मंगाकर सुषमा जी व प्रतिनिधियों को वहां भेजा गया। यह बात को हमारे जैसा कार्यकर्ता उम्र भर नहीं भूल सकता। विनोद अग्रवाल उर्फ बिन्नु ने बताया कि दूसरे दिन तीनबीघा समझौते को लेकर प्रदर्शन किया गया। प्रशासन ने कार्यकताओं को गिरफ्तार किया और माथाभांगा सिंचाई बांग्लो में ले जाकर रखा था।

जानें, क्या है तीनबीघा गलियारा

त न बीघा गलियारा भारत और बांग्लादेश की सीमा पर स्थित एक भारतीय भूभाग है। जो सितंबर 2011 में बांग्लादेश को लीज पर दे दिया गया है। वह इसलिए क्योंकि बांग्लादेश के दहग्राम और अंगरापोता बीच आवाजाही हो सके। कहते है कि बांग्लादेश जब आजाद हुआ तो 1974 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में भारत बांग्लादेश के बीच एक समझौता हुआ। इसको लेकर काफी कानूनी और संवैधानिक विवाद प्रारंभ हुआ। जब विवाद नहीं सुलझा तो पुन: 1982 में समझौता हुआ। तीनबीघा गलियारे से पहल छह घंटे की आवाजाही शुरू हुई। जून 1996 में यह अवधि बढ़ाकर 12 घंटे कर दी गई। उसके बाद 2011 में इस क्षेत्र को बांग्लादेश को लीज पर दे दिया गया।

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