कोरोना में बदल रहा लोगों की दिनचर्या, बेड टी नहीं काढा को करते हैं पसंद, मॉर्निंग वाक में बढ़ने लगी है भीड़, थकने के बाद आती है गहरी नींद
कोरोना ने बहुत कुछ सिखाया भी प्रकृति के करीब आने को मजबूर कर दिया। जिस चीज को लोगों ने बेकार समझना शुरू कर दिया था अब उसी चीज के लिए मारामारी कर रहे हैं। सुबह सात-आठ बजे तक सोने वाले लोग भी चार बजे सुबह उठ रहे हैं
सिलीगुड़ी, अशोक झा। वायरस जनित वैश्विक महामारी कोरोना ने हर किसी को तबाह कर दिया है। कोरोना के दूसरे लहर से बंगाल में हड़कंप मचा हुआ है। पूर्वोत्तर के प्रवेश द्वार में बेड पर चाय-कॉफी से दिन की शुरुआत करने वाले लोग काढ़ा पी रहे हैं और वह काढ़ा, जिसमें कोई केमिकल नहीं, सिर्फ प्राकृतिक चीजें हैं। शासन-प्रशासन लोगों को कोरोना के कहर से बचाने के लिए हर संभव उपाय कर रही है लेकिन इन सारी कवायद के बीच कोरोना ने बहुत कुछ सिखाया भी, प्रकृति के करीब आने को मजबूर कर दिया। जिस चीज को लोगों ने बेकार समझना शुरू कर दिया था, अब उसी चीज के लिए मारामारी कर रहे हैं। सुबह सात-आठ बजे तक सोने वाले लोग भी चार बजे सुबह उठ रहे हैं, बाइक से ही सही लेकिन पेड़-पौधा वाले जगहों पर जाकर परिक्रमा कर रहे हैं।
गुलमा और सेवक की ओर कर रहे हैं रुख
कोरोनावायरस बचने के लिए बड़ी संख्या में लोग सुबह उठकर सेवक, गुलमा और सुकना की ओर प्राकृतिक आनंद लेने के लिए निकल पड़ते हैं। यहां लोगों को प्राकृतिक आनंद के साथ कम कीमत पर जड़ी बूटियों और ऑर्गेनिक सब्जियां भी प्राप्त हो जाती है। क्षेत्र में जंगली जानवरों का खतरा निरंतर बना रहता है इसके लिए न्यू सावधानी बरतनी पड़ रही है।
पर्यावरण के प्रति हो रहे हैं जागरूक
आज ऑक्सीजन के लिए हर ओर मारामारी हो रही है लेकिन ऑक्सीजन की कमी के लिए मनुष्य भी कम जिम्मेदार नहीं है। पेड़ बेहिसाब काटे गए लेकिन लगाए नहीं गए, अब जब सांस भी खरीदनी पड़ रही है तो लोगों का रुझान अचानक से पेड़ लगाने की ओर गया है। यही हाल जड़ी बूटियों की है। जंगल और पहाड़ से धीरे इस पूरे क्षेत्र में अब जड़ी बूटियों को लगाने और उसे बचाने की प्रक्रिया शुरू हुई है।
प्राचीन समय से तमाम बीमारियों के इलाज के लिए रामबाण जड़ी बूटियों को लोगों ने भुला दिया था, उसे जंगल समझ कर बर्बाद कर रहे थे लेकिन जब कोरोना कहर बरपाने लगा तो उसी जंगल के लिए लोग जंगल-जंगल मारे फिर रहे हैं। नहीं मिल रहा है तो ऊंचे दामों पर खरीद रहे हैं।
इंटरनेट पर खोज रहे हैं रोग प्रतिरोधक जड़ी बूटियां
इंटरनेट पर इम्यूनिटी बूस्टर और वायरस जनित बीमारियों को दूर रखने वाले जड़ी-बूटियों की खोज हो रही है, आयुर्वेदिक तत्वों की खोज रहो रही है। काढ़ा के बढ़े डिमांड को लेकर सबसे अधिक मांग गिलोय (गूरीच) की हो रही है। गांव के पेड़ पौधे और जंगलों पर जब बड़ी मात्रा में गिलोय होता था। लेकिन आधुनिक मनुष्यों ने उसे काट कर फेंकना शुरू कर दिया।
200 रुपए किलो ग्राम खरीद रहे हैं गिलोय
कोरोना वायरस आया तो गिलोय की जोर-शोर से तलाश हो रही है। शहर में पहले गिलोय आयुर्वेदिक दुकानों पर ही पाए जाते थे। कच्ची डाली सिलीगुड़ी कोर्ट और अस्पताल के पास पाए जाते थे। अब शहर के प्रमुख हजारों में फुटपाथ पर इसे बेचा जा रहा है। इसकी बिक्री इतनी बड़ी है कि अब लोग ज्यादातर दुकानों में इसे रखना प्रारंभ कर दिया है। इससे जुड़े लोग अब इसे 200 रुपए किलो बेच रहे हैं। सौ मर्ज की एक दवा गिलोय को संस्कृत में अमृता नाम दिया गया है। गिलोय एक ऐसी बेल है, जो व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा कर उसे बीमारियों से दूर रखती है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने का काम करते हैं। यह खून को साफ करती है, बैक्टीरिया से लड़ती है। लिवर और किडनी की अच्छी देखभाल भी गिलोय के बहुत सारे कामों में से एक है।
कई बीमारियों में आता है काम:
आयुर्वेद जानने वाले बताते हैं कि अगर किसी को बार-बार बुखार आता है तो उसके लिए गिलोय का सेवन अचूक उपाय है। गिलोय हर तरह के बुखार से लड़ने में मदद करती है। इसलिए डेंगू के अलावा मलेरिया, स्वाइन फ्लू में आने वाले बुखार से भी गिलोय छुटकारा दिलाती है।
जिलेबी फल की भी बड़ी मांग
यही हाल जंगली जिलेबी का है। इंटरनेट से जब पता चला कि जंगली जिलेबी (पेड़ पर फलने वाला) इम्यूनिटी बूस्टप करता है। वायरस खत्म करता है, कैंसर के लिए रामबाण है, चर्म रोग और पेट के लिए भी बहुत अधिक बीमारियों से दूर रखती है।