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...तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर होगा सियालदह स्टेशन का नाम

ब‌र्द्धमान स्टेशन का नाम बटुकेश्वर दत्त स्टेशन किए जाने के निर्णय के बाद अब सियालदह स्टेशन का नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी रखे जाने के प्रस्ताव ने बंगाल के सियासी माहौल को गर्म कर दिय

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 24 Jul 2019 10:22 AM (IST)Updated: Wed, 24 Jul 2019 10:22 AM (IST)
...तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर होगा सियालदह स्टेशन का नाम
...तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर होगा सियालदह स्टेशन का नाम

कोलकाता, जागरण संवाददाता। केंद्र में भाजपा की दूसरी पारी शुरू होने के बाद पश्चिम बंगाल के विभिन्न रेलवे स्टेशनों के नाम बदलकर प्रसिद्ध हस्तियों के नाम पर करने की जुगत ने केंद्र और राज्य सरकार के बीच चल रहे मनमुटाव को और बढ़ा दिया है। ब‌र्द्धमान स्टेशन का नाम बटुकेश्वर दत्त स्टेशन किए जाने के निर्णय के बाद अब सियालदह स्टेशन का नाम श्यामा प्रसाद मुखर्जी रखे जाने के प्रस्ताव ने बंगाल के सियासी माहौल को गर्म कर दिया है।

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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट कर दिया कि बिना राज्य सरकार की रजामंदी के स्टेशनों का नाम परिवर्तित नहीं किया जा सकेगा। गौरतलब है कि गत 20 जुलाई को महान स्वतंत्रता सेनानी बटुकेश्वर दत्त की 54वीं पुण्यतिथि पर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय पटना के जक्कनपुर गांव में उनके परिवार से मिलने पहुंचे थे। इस मौके पर उन्होंने ब‌र्द्धमान रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर बंगाल के महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के नाम पर रखने का एलान किया था।

उन्होंने कहा था कि सभी प्रक्रियाएं पूरी कर शीघ्र ही केंद्र सरकार इसका आदेश जारी कर देगी। इस घोषणा के बाद ही बंगाल का सियासी पारा चढ़ गया था। बिना समय गंवाए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मीडिया के सामने खुलकर केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार को अंधेरे में रखकर ब‌र्द्धमान स्टेशन का नाम बदला जा रहा है, जो असंवैधानिक है। यह मामला अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि अब सियालदह स्टेशन का नाम बदलकर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नाम पर किए जाने के प्रस्ताव की भनक  लगते ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तेवर तल्ख नजर आए।

उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीतिक द्वेष के चलते भाजपा बंगाल के स्टेशनों का नाम बदलने की योजना बना रही है। केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल का नाम बदलकर बांग्ला करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को अधर में लटका रखा है जबकि स्टेशनों के नाम बदलने के लिए राज्य सरकार से मशविरा तक नहीं किया। सरकार संविधान से चलती है न कि किसी राजनीतिक पार्टी की इच्छा से।

उधर, यात्रियों के एक वर्ग ने भी स्टेशनों के नाम बदलने के प्रस्ताव पर नाखुशी जाहिर की। उनका सवाल है कि क्या विभूतियों के नाम पर स्टेशनों का नाम रखे जाने से ही उन्हें सम्मान मिलता है? सियासत चमकाने के लिए स्टेशनों के नाम तो बदल दिए जाते हैं लेकिन समस्या से यात्रियों को जूझना पड़ता है। लोगों के अनुसार कई वर्ष पहले कोलकाता के मेट्रो स्टेशनों के भी नाम बदले गए थे जो आज तक किसी को याद नहीं हुए। मेट्रो के नए नामों को लेकर लोगों में भ्रम की स्थिति बनी रहती है। बहरहाल स्टेशनों के नाम बदलने को लेकर केंद्र सरकार की मंशा कुछ भी होल लेकिन इस मुद्दे को लेकर बंगाल का सियासी पारा चरम पर है। 


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