एनबीएमसीएचः वार्डों में बेड पर चादर के रंग से पता चलता है दिन के बारे में
सिलीगुड़ी स्थित नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल के वार्डों मेें हर बेड पर अलग-अलग दिन अलग-अलग रंग की चादर बिछाई जाती है।
सिलीगुड़ी [शिवानंद पांडेय]। सिलीगुड़ी में स्थित नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल के वार्डों में बेड्स पर बिछी चादरों से दिन के बारे में पता लगाया जा सकता है। दरअसल यहां सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग रंग की चादर बेड्स पर बिछाई जाती है। रंग के लिए दिन तय हैं।
यहां सोमवार को गुलाबी, मंगलवार को नीला, बुधवार को भूरा, गुरुवार को हरा, शुक्रवार को सफेद, शनिवार को स्काई ब्ल्यू तथा रविवार को पीले रंग की चादर बिछाई जाती है। ऐसा यहां शासन के निर्देश पर किया जाता है।
सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में भी इसकी तैयारी चल रही है। अभी तक यहां तीन ही रंग की चादर बिछती है। आने वाले दिनों में इस अस्पताल में भी सप्ताह के सातों दिन अलग-अलग रंग की चादरें देखने को मिलेंगी। सिलीगुड़ी जिला अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अमिताभ मंडल का कहना है कि सातों दिन सात रंग की चादर बिछाई जा सके, इसके लिए मंगाने के आर्डर दिए गए हैं।
दूसरी ओर एनबीएमसीएच के अधीक्षक डॉ. कौशिक समद्दार ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश के मुताबिक एनबीएमसीएच हर दिए अलग-अलग रंग की चादर बिछाई जा रही है।
बताया गया कि यह व्यवस्था नेशनल क्वालिटी एश्योरेंश स्टैंडर्ड के तहत शुरू की जा रही है, जिसे इस वर्ष एक अप्रैल से लागू कर दिया गया है। इसके लिए केंद्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न मेडिकल कॉलेजों व जिला अस्पतालों को निर्देश गत फरवरी में ही जारी कर दिए गए थे। एनबीएमसीएच के आधिकारिक सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार फिलहाल स्वीकृत बेडों की संख्या 599 है। पहले हरे रंग के ही चादर बेडों पर बिछाई जाती थी। बाद में हल्का नीला, गुलाबी व सफेद रंग की चादर बिछाई जाने लगी। हालांकि इसके लिए किसी तरह का दिन निर्धारित नहीं किया गया था। केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा आदेश जारी होने के छह महीने के अंदर एनबीएमसीएच में इसे लागू करते हुए अलग-अलग दिनों में अलग-अलग रंग के चादर बिछाने की प्रक्रिया अब शुरू कर दी गई है।
सूत्रों द्वारा मिली जानकारी के अनुसार मरीजों व उनके परिजनों की अक्सर शिकायत रहती थी कि बेड पर चादर नहीं बदली जाती है। सात दिनों में सात रंग की चादर बदलने के पीछे मरीजों की इस शिकायत को दूर करना है।