Siliguri News: सरकारी स्कूलों में बढ़ती जा रही 'ड्राॅप-आउट' की संख्या, टीनएजर्स पढ़ाई छोड़ कर रहे राेजगार का रुख
कोविड-19 के दौरान बच्चों की शिक्षा-दीक्षा को बरकरार रखने के लिए ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम को अपनाया गया। पर इसे अपना पाना हर किसी के बूते की बात नहीं। मध्यमवर्गीय व गरीब परिवारों के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर इसका गहरा असर पड़ा है
सिलीगुड़ी, इरफान-ए-आजम। कोविड महामारी के कारण सरकारी स्कूलों में ड्रॉप आउट विद्यार्थियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। कोविड ने न सिर्फ बच्चों का बचपन बल्कि शिक्षा-दीक्षा भी छीन लिया है। कोविड महामारी के कारण कंप्लीट लाॅकडाउन, आंशिक लाॅकडाउन से ले कर अब मिनी लॉकडाउन तक कोविड-19 प्रतिबंधों का दौर जारी है। यूनिवर्सिटी, काॅलेज व स्कूल सब बंद हैं। बच्चे स्कूल जा नहीं सकते। ऐसे में बच्चों की शिक्षा-दीक्षा को बरकरार रखने के लिए ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम को अपनाया गया। मगर मध्यमवर्गीय या गरीब परिवारों में स्मार्ट फोन नहीं होने या एक ही मोबाइल होने की वजह से बच्चे ऑनलाइन क्लास भी नहीं कर पा रहे हैं।
ऑनलाइन एजुकेशन सबके बूते की बात नहीं
समाज के उन परिवारों के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर इसका गहरा असर पड़ा है जिन परिवारों में रोज कुआं खोदने और पानी पीने की नौबत है। ऐसे में गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के बच्चों विशेष कर सरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों के 'ड्राॅप-आउट' होने की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। खबर तो यह भी है कि, नौवीं से 12वीं के ऐसे अनेक विद्यार्थी हैं जिन्होंने या तो शिक्षा को अलविदा कह दिया है या फिर एक किनारे रख कर अपने घर-परिवार को संबल देने को रोजी-रोटी कमाने में जुट गए हैं।
100 की जगह 25 विद्यार्थियों का नामांकन
इस बारे में, सिलीगुड़ी से थोड़ी दूर मोहरगांव-गुलमा चाय बागान स्थित इला पाल चौधरी मेमोरियल ट्राइबल हिंदी हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक डाॅ. अनिल कुमार सिंह बताते हैं कि कोरोना का शिक्षा जगत पर बहुत गहरा असर पड़ा है। कोरोना से पहले हर साल जनवरी महीने में हमारे स्कूल में छठी कक्षा में 80-100 विद्यार्थियों का नामांकन हो जाता था। पर, कोरोना काल में वर्तमान वर्ष में यह हाल है कि, जनवरी का महीना बीतने-बीतने को है और अब तक बमुश्किल 20-25 विद्यार्थियों ने ही नामांकन कराया है। अन्य उच्च कक्षाओं में इतना ज्यादा नहीं लेकिन कुछ असर जरूर पड़ा है। 'ड्राॅप-आउट' विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। जबकि, सरकारी स्कूलों में बच्चों को बहुत सी सुविधाएं हैं जो कि प्राइवेट स्कूलों में मिल पानी मुमकिन नहीं है। एक तो फीस नाम मात्र, उस पर पुस्तकें मुफ्त, पोशाक, मिड-डे मील, छात्रवृत्ति, व कई सारी योजनाओं का लाभ है। फिर, भी अब बच्चों व उनके अभिभावकों में नामांकन को लेकर वह उत्साह नजर नहीं आता जो कोरोना काल से पहले होता था। फिर भी, हम लोग अभिभावकों-बच्चों के घर पर जा कर, उनसे मिल कर, बातचीत कर उन्हें समझाने-बुझाने और बच्चों का स्कूल में नामांकन करवाने का प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है कि, धीरे-धीरे फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा।
सबसे ज्यादा ड्रॉपआउट छठीं से दसवीं तक
इसी तरह सिलीगुड़ी महकमा के फांसीदेवा प्रखंड अंतर्गत चाय बागान इलाके के मदाती हाईस्कूल के प्रधानाध्यापक ऋषिकेश जवाहर भी कहते हैं कि, कोरोना का शिक्षा जगत पर काफी असर पड़ा है। कोरोना काल से पहले और अब कोरोना काल की तुलना करें तो हर स्तर की कक्षाओं में ड्रॉपआउट विद्यार्थियों की संख्या बढ़ी है। सबसे ज्यादा माध्यमिक स्तर यानी छठी से दसवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों में ड्रॉप-आउट की प्रवृत्ति है। औसतन 15 से 20 प्रतिशत विद्यार्थी ड्रॉप-आउट हुए हैं। कई सारे विद्यार्थियों ने शिक्षा-दीक्षा को छोड़ कर चाय बागानों में काम करना शुरू कर दिया है। अब एक बार जो विद्यार्थी काम में लग जाता है और कुछ आय देखने लगता है तो फिर शिक्षाध्ययन के प्रति उसकी रूचि कम होने लगती है। इस दिशा में हम लोग वैसे विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों को जागरूक करने का भी प्रयास कर रहे हैं कि वे किसी भी कीमत पर शिक्षा को त्यागे नहीं। इस दिशा में हर किसी को चिंतन-मनन कर आवश्यक समाधान तलाशना जरूरी है।
स्कूल ड्रॉपआउट से शहरी क्षेत्रों में भी परेशानी
ऐसी परिस्थिति से केवल दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्र भी दो-चार हैं। वहीं, प्राइवेट स्कूल भी ड्रॉप-आउट की समस्या से अछूते नहीं हैं। भले ही प्रतिशत कम है लेकिन प्राइवेट स्कूलों में भी विद्यार्थी ड्रॉप-आउट हो रहे हैं। क्योंकि, ऐसे भी अनेक परिवार हैं जिनकी कोरोना महामारी के चलते आर्थिक स्थिति संकटग्रस्त हो गई है और वे अपने बच्चों की शिक्षा पर पड़ने वाले खर्च का वहन कर पाने में अब सक्षम नहीं रह गए हैं। सिलीगुड़ी शहर की हृदय स्थली हिलकार्ट रोड के निकट स्थित सरकारी डॉ. राजेंद्र प्रसाद गर्ल्स हाईस्कूल की प्रधानाध्यापिका संचिता देव देवनाथ कहती हैं कि, कोविड के असर से कहीं कोई अछूता नहीं है। कोविड से पहले के काल और अब कोरोना काल की तुलना करें तो ड्रॉपआउट विद्यार्थियों की संख्या थोड़ी बढ़ी है। हालांकि, मेरे स्कूल में गत वर्ष ड्रॉप-आउट ज्यादा थे। मगर, इस वर्ष उस में कुछ कमी आई है। इसके बावजूद इसका असर पांच से 10 प्रतिशत तो है ही। उसमें भी सबसे ज्यादा ड्रॉप-आउट माध्यमिक स्तर की कक्षाओं में एवं उच्च माध्यमिक की 11वीं कक्षा में है। यह औसत कुछ और ज्यादा होता लेकिन हम शिक्षिकाएं अपने स्तर पर पूरी जिम्मेदारी के साथ प्रयास करती रहती हैं कि, हमेशा छात्राओं और उनके अभिभावकों के संपर्क में रहें। उन्हें स्कूल की ओर आकर्षित करें। उसी का नतीजा है कि ड्रॉपआउट की संख्या में कुछ कमी है। मगर, फिर भी कुछ न कुछ ड्रॉप-आउट तो हो ही रहे हैं। अब कोरोना का असर खत्म हो। फिर, सब कुछ दुरुस्त हो जाए। यही उम्मीद है, यही दुआ है।