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शरद पूर्णिमा की किरणों से निरोगी होंगी काया, क्यों है महत्वपूर्ण और क्या है इसका साइंस

शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसी आधार पर कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 29 Oct 2020 01:28 PM (IST)Updated: Thu, 29 Oct 2020 01:55 PM (IST)
शरद पूर्णिमा की किरणों से निरोगी होंगी काया, क्यों है महत्वपूर्ण और क्या है इसका साइंस
वर्ष की सभी पूर्णिमा में आश्विन पूर्णिमा विशेष चमत्कारी मानी गई है

सिलीगुड़ी, अशोक झा। वर्ष की सभी पूर्णिमा में आश्विन पूर्णिमा विशेष चमत्कारी मानी गई है। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसी आधार पर कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है। आचार्य पंडित यशोधर झा बताते हैं कि शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं। पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाएगी। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा। शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजन का विशेष विधान है।

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क्या है शरद पूर्णिमा

आचार्य पंडित यशोधर झा के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यूं तो साल में 12 पूर्णिमा तिथियां आती हैं। लेकिन अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को बहुत खास माना जाता है। शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस पूर्णिमा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित मानी जाती है। ज्योतिष गणना के अनुसार संपूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा से निकली रोशनी समस्त रूपों वाली बताई गई है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है जबकि रात्रि को दिखाई देने वाला चंद्रमा अपेक्षाकृत अधिक बड़ा होता है। ऐसी मान्यता है कि भू लोक पर लक्ष्मी जी घर घर विचरण करती हैं, जो जागता रहता है उस पर उनकी विशेष कृपा होती है।

शरद पूर्णिमा 2020 तिथि और समय

इस बार, शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर 2020 शुक्रवार को है।

पूर्णिमा तिथि (शुरू) - शाम 17:45 (30 अक्टूबर 2020)

पूर्णिमा तिथि (अंत) - रात 20:18 बजे (31 अक्टूबर 2020)

धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे

30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 47 मिनट से पूर्णिमा तिथि का आरंभ हो जाएगा। अगले दिन 31 अक्टूबर रात 8 बजकर 21 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी। 30 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि आरंभ होने के कारण इसी दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी। आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 30 अक्टूबर शुक्रवार शाम 5:46 पर लग रही है जो कि 31 अक्टूबर शनिवार को रात्रि 8:19 तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार पूर्णिमा तिथि 31 अक्टूबर, शनिवार को रहेगा जिसके फलस्वरूप स्नान दान व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे।

शरद पूर्णिमा खीर के लाभ

शरद पूर्णिमा की रात्रि में आकाश के नीचे रखी जाने वाली खीर को खाने से शरीर में पित्त का प्रकोप और मलेरिया का खतरा भी कम हो जाता है। यदि आपकी आंखों की रोशनी कम हो गई है तो इस पवित्र खीर का सेवन करने से आंखों की रोशनी में सुधार हो जाता है। अस्थमा रोगियों को शरद पूर्णिमा में रखी खीर को सुबह 4 बजे के आसपास खाना चाहिए। शरद पूर्णिमा की खीर को खाने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। साथ ही श्वास संबंधी बीमारी भी दूर हो जाती है। पवित्र खीर के सेवन से स्किन संबंधी समस्याओं और चर्म रोग भी ठीक हो जाता है।

शरद पूर्णिमा पर बन रहे हैं खास योग

इस बार 2020 को शरद पूर्णिमा पर अमृदसिद्धि योग बन रहा है। 30 अक्टूबर 2020 शु्क्रवार के दिन मध्यरात्रि में अश्विनी नक्षत्र रहेगा। साथ ही इस दिन 27 योगों के अंतर्गत आने वाला वज्रयोग, वाणिज्य / विशिष्ट करण तथा मेष राशि का चंद्रमा रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा जाता है। 

चंद्रमा की किरणों से आरोग्य का संबंध :

आरोग्य लाभ के लिए शरद पूर्णिमा के चरणों में औषधीय गुण विद्यमान रहते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि में दूध से बनी खीर को चांदनी की रोशनी में अति स्वच्छ वस्त्र से ढंक कर रखी जाती है। ध्यान रहे कि चंद्रमा के प्रकाश की किरणें उस पर पड़ती रहें। भक्ति भाव से प्रसाद के तौर पर भक्तों में वितरण करके स्वयं भी ग्रहण करते हैं। जिससे स्वास्थ्य लाभ होता है तथा जीवन में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है।

चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखने का यह है कारण

एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शरद पूर्णिमा का दिन सबसे महत्वपूर्ण

शरद पूर्णिमा का दिन सबसे महत्वपूर्ण इसलिए माना जाता है कि इस दिन में जो हम लोग दूध का उपयोग करके जो खीर बनाते हैं और उसे हम रात में चंद्र का प्रतिबिंब देखकर उसे सेवन किया जाता है यह खास करके चंद्र का जब प्रतिबंध उस खीर में पड़ता है तो चंद्र की जो शक्तियां होती है वह उस दूध में समाविष्ट होती है और जिसके कुंडली में चंद्र कमजोर है चंद्र के पाप ग्रह की दृष्टि है वैसे लोगों को यह उपाय सबसे बड़ा कारगर साबित होता है

पूर्णिमा पर होगी लक्ष्मी के इन आठ स्वरूपों की पूजा :

श्री लक्ष्मी जी के आठ स्वरूप माने गए हैं जिनमें धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राज लक्ष्मी, वैभव लक्ष्मी, ऐश्वर्या लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी, कमला लक्ष्मी एवं विजय लक्ष्मी है लक्ष्मी जी की पूजा अर्चना आदि रात्रि में किया जाता है। इस बार 30 अक्टूबर शुक्रवार को रात्रि में लक्ष्मी जी की विधि विधान पूर्वक पूजा का आयोजन किया जाएगा। कार्तिक स्नान के यम व्रत व नियम तथा दीपदान 31 अक्टूबर शनिवार से प्रारंभ हो जाएंगे। जबकि पूजा के विधान के तौर पर सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समस्त कार्यों से निवृत होकर अपने आराध्य देवी देवता की पूजा के बाद शरद पूर्णिमा के व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

पुरखों के स्मरण का अवसर :

इस पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहा जाता है शरद पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात तक आकाश दीप जलाकर दीपदान करने की महिमा मानी गई है। दीप दान करने से समस्त प्रकार के दुख दूर होते हैं तथा सुख समृद्धि का आगमन होता है, आकाश दीप प्रज्वलित करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है।

शरद पूर्णिमा का दिन हिंदू धर्म में बहुत महत्व

शरद पूर्णिमा का दिन हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात देवी लक्ष्मी धरती पर विचरण करने निकलती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा का शुभ अवसर देवी लक्ष्मी को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि यदि आप इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, तो आप उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, और आपके जीवन में धन की कोई कमी नहीं होगी।

शरद  पूर्णिमा के दिन करें यह काम

 नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा को देखकर त्राटक करें । जो भी इन्द्रियां शिथिल हो गई हैं उन्हें पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चांदनी में रखी खीर रखना चाहिए। चंद्र देव,लक्ष्मी मां को भोग लगाकर वैद्यराज अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना चाहिए कि 'हमारी इन्द्रियों का तेज-ओज बढ़ाएं।' तत्पश्चात् खीर का सेवन करना चाहिए। शरद पूर्णिमा अस्थमा के लिए वरदान की रात होती है। रात को सोना नहीं चाहिए। रात भर रखी खीर का सेवन करने से दमे का दम निकल जाएगा। पूर्णिमा और अमावस्या पर चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। इस रात श्वेत आसन पर बैठकर चांदी की थाली में मखाने, खीर, चावल और सफेद फूल का भोग चंद्रदेव को लगाएं। शरद पूर्णिमा पर पूजा, मंत्र, भक्ति, उपवास, व्रत आदि करने से शरीर तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि आलोकित होती है। इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है। 


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