जब हम बैठे हैं घरों में, वो झेल रहे हैं गंदगी, यही है बंदगी!
-जान जोखिम में डाल कर लगातार काम कर रहे हैं सफाई कर्मचारी -अपने से ज्यादा समाज के हितो
-जान जोखिम में डाल कर लगातार काम कर रहे हैं सफाई कर्मचारी
-अपने से ज्यादा समाज के हितों की है चिंता -खुदा के बंदों की खिदमत ही सच्ची बंदगी होती है, ऐसे बंदों को सलाम
-गजब का जोश और जज्बा,वे कहते हैं कि हम बचें न बचें, समाज बचना चाहिए इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी:योद्धा केवल वे ही नहीं होते जो हथियारों से लैस हो कर दिन-रात सरहदों पर डटे रहते हैं और सीना तान कर दुश्मनों का मुकाबला करते हैं। कई योद्धा ऐसे भी होते हैं जो हर घड़ी हमारे आसपास ही रहते हैं। दिन-रात हमारी जीवन रक्षक सेवा में जुटे रहते हैं। उन्हें हम अक्सर देखते हैं पर उनकी सेवा और महत्व को हम महसूस ही नहीं कर पाते। पर, आज जानलेवा कोरोना के विश्वव्यापी आतंक के साए में सहमी सी दुनिया इसे सहज ही महसूस कर सकती है। इस नाजुक समय में हर किसी को यह अहसास हो रहा है कि एक-एक व्यक्ति व पूरे समाज के लिए उनका कितना महत्व है। हम बात कर रहे हैं ऐसे योद्धा की जो अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। वे हैं हमारे समाज के सफाई कर्मी। जी हा, कोरोना वायरस के जानलेवा संक्रमण के इस भीषण समय में जब पूरा शहर, राज्य, देश व दुनिया लॉकडाउन है। घरों से निकलना सुरक्षित नहीं है। जान जाने का डर है। हालात बड़े नाजुक हैं। हर कोई अपने-अपने बीवी-बच्चों, परिवार संग घरों में सिमटा बैठा है तब इस जनलेवा हालात के बीच भी वे अपने बीवी बच्चों घर परिवार को छोड़ कर अपनी जान जोखिम में डाल कर हमारी सेवा में मुस्तैद हैं। जरा गौर करें कि आज अगर सफाई कर्मी समय पर सड़कों, नालों, गली, मोहल्लों की सफाई ना करें, गंदगी का अंबार ना हटाएं, तो कीटाणु, जीवाणु विषाणु के संक्रमण का क्या रूप हो जा सकता है। उसका हमारी जिंदगी पर कितना भयावह असर पड़ सकता है। शहर के 35 नंबर वार्ड अंतर्गत भक्ति नगर इलाके में लॉकडाउन के बीच ऐसे ही दो योद्धा अपनी सेवा देने में डटे नजर आए। वे हैं विश्वजीत दत्त व गोविंद दास। उनसे जब पूछा गया कि सारी दुनिया घरों में सिमटी हुई है। बाहर निकलने पर कोरोना वायरस के जानलेवा संक्रमण का डर है। ऐसे आलम में उन्हें क्या डर नहीं? तो उनका जवाब था कि डर तो उन्हें भी है लेकिन डर से पहले फर्ज है। उनकी जान अकेले की जान है। अगर खुदानख्वास्ता उन्हें कुछ हो गया तो वह अकेले ही प्रभावित होंगे। मगर, उन्होंने गंदगी की सफाई बंद कर दी
तो इससे न जाने कितने-कितने लोग प्रभावित होंगे। कितनी कितनी जिंदगिया प्रभावित हो जाएंगी। इसीलिए खुद से ज्यादा उन पर सामाजिक दायित्व है। उसी का वे निर्वहन कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे लोग हर रोज सुबह-सुबह 6 बजे ही सफाई का काम शुरू कर देते हैं। तीन-चार किलोमीटर के दायरे में उन्हें इस काम को अंजाम देना होता है। यह काम अंजाम देते देते दोपहर पार हो जाता है। तब जाकर वे अपने घर जाते हैं।
जरा सोचिए, आज के इस नाजुक समय में ऐसे योद्धा ना होते तो हम लोग जानलेवा कोरोना से कैसे युद्ध लड़ पाते। आज की इस विकट परिस्थिति में अपनी जान की बाजी लगा कर लोगों की जान बचाने में लगे हुए जाबाज डॉक्टरों, नसरें स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस, सुरक्षा बल व सफाई कर्मियों को तह-ए-दिल से सलाम।