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कोरोना काल में छोटे तबके के कुछ युवा कर रहे हैं बड़े काम

-रोटी चैलेंज को पूरा करने के लिए बना दिया रोटी बैंक -हर दिन दो सौ गरीबों के लिए होता है भोजन क

By JagranEdited By: Published: Tue, 22 Sep 2020 06:36 PM (IST)Updated: Tue, 22 Sep 2020 06:36 PM (IST)
कोरोना काल में छोटे तबके के कुछ युवा कर रहे हैं बड़े काम
कोरोना काल में छोटे तबके के कुछ युवा कर रहे हैं बड़े काम

-रोटी चैलेंज को पूरा करने के लिए बना दिया रोटी बैंक

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-हर दिन दो सौ गरीबों के लिए होता है भोजन का इंतजाम

-तीन रोटियों के साथ परोसा जाता है आलूदम मोहन झा, सिलीगुड़ी : कहने को तो हम आधुनिक दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन मानव जीवन की तीन सबसे न्यूनतम आवश्यकता रोटी, कपड़ा और मकान में से रोटी और कपड़ा आज भी एक तबके के लिए लोहे के चने चबाने जैसी समस्या से कम भी नहीं है। कोरोना महामारी के इस काल में सिलीगुड़ी के सड़क किनारे खुले आसमान के नीचे जीवन गुजारने वालों को रात की रोटी मुहैया कराने का जिम्मा आनंद मार्ग यूनिवर्सल रिलीफ टीम (आमरुत) ने लिया है। इस टीम को कुछ दोस्तों ने मिलकर बनाई है। कोरोना महमारी के इस दौर में रोजाना करीब 200 जरुरतमंदो को रोटी खिलाने का काम हो रहा है। इस काम को उनलोगों ने रोटी बैंक का नाम दिया है।

कोरोना महामारी की शुरुआत में केंद्र सरकार द्वारा कराए करीब ढ़ाई महीने गरीब और असहायों को भोजन व राशन उपलब्ध कराने वालों का ताता लगा हुआ था। लेकिन अनलॉक की प्रक्रिया शुरु होने के बाद अब भोजन और राशन बाटने वाले मौन हो गए हैं। लेकिन कोरोना महामारी की वजह से बेपटरी हुई अर्थव्यवस्था को वापस पटरी पर लौटने में समय तो लगेगा। पूर्ण लॉकडाउन के बीते करीब ढ़ाई महीने खुले आसमान के नीचे जीवन बिताने वाले असहाय और गरीबों को भोजन व राशन-पानी की दिक्कत तो नहीं हुई। लेकिन अनलॉक होने के बाद पेट भरने वालों के सामने रोटी एक विकराल समस्या बनी हुई है। ऐसे में रोटी बैंक एक अनोखा प्रयास है। इसके लिए इन युवाओं ने भरोसा नामक सोशल मीडिया ग्र्प का भी गठन किया है। वैसे तो सिलीगुड़ी शहर में रात के 12 बजे तक चहल-पहल रहती थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से आज-कल 9 बजे के बाद सड़कें सुनसान पड़ जाती है। वर्तमान समय में रात के नौ बजे के बाद सिलीगुड़ी की सड़कों पर रात गुजारने वालों को रोटी खिलाते कुछ युवक-युवती आपको नजर आ जायेंगे। ये युवक-युवती आमरुत और इनका सहयोग करने वाले ब्लॉसॉम नामक संस्था के सदस्य हैं। ये लोग जरूरतमंदों को रोटी के साथ आलू दम खिलाते हैं। इस संस्था के सदस्यों के पास आíथक मजबूती से ज्यादा इनकी इच्छा शक्ति दृढ़ है। कोई भी सदस्य किसी भी व्यवसायिक परिवार से ताल्लुकात नहीं रखता। बल्कि कोई दुकानों में, कोई स्कूल में, कोई दीवारों पर चित्रकारी कर अपना और परिवार का पेट भरता है। ये लोग गली-गली घूम कर रोटी का जुगाड़ करते हैं और उसे जमा करते हैं। इसी कारण इसे रोटी बैंक कहते हैं। बैंक में जितनी रोटिया जमा होती है उसको आलू दम के साथ गरीबों को खिला देते हैं। रात को रेलवे स्टेशन, सड़क किनारे व बस स्टैंड पर सोने वालों में इसका वितरण करते हैं। सीधे तौर पर कहें तो भिखारी सिर्फ अपने पेट के लिए मागता है, लेकिन आमरुत और ब्लॉसॉम संस्था के सदस्य रोजाना 200 असहायों की भूख मिटाने के लिए हाथ फैलाते हैं। इसको ये लोग रोटी चैलेंज बताते हैं। इनका कहना है रोटी चैलेंज से रोटी बैंक में रोटिया जमा करते हैं। सुबह से ही शुरू होता है रोटी जुटाने का जुगाड़

इस ग्रुप में शामिल सदस्य सुबह से लेकर शाम के चार बजे तक जहा-तहा घूम कर रोटी और सब्जी का जुगाड़ करते हैं। अब तो सुबह ही ग्र्रुप में रोटी देने वाले के नाम, पता और ठिकाना मिल जाता है। इसी तरह घूम-घूम कर रोजाना 600 रोटी और आलू दम का जुगाड़ होता है। इसके लिए शहर के होटल व रेस्टोरेंट आदि के साथ भी संपर्क किया जाता। अब तो समाज के कई लोगों ने होटल में नियमित 50 रोटी और आलू दम इनको देने के लिए ही निर्धारित कर दिया है। बस जाकर ले आना है। इसके बाद तीन रोटी और आलू दम का रोजाना करीब 200 पैकेट संस्था के सदस्य बनाते हैं। फिर रात आठ बजे बाइक पर लेकर असहायों को खिलाने निकल जाते हैं। किन-किन इलाकों में वितरण

न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन, सिलीगुड़ी जंक्शन रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड, हाशमी चौक, हिलकार्ट रोड, सेवक रोड आदि पर खुले आसमान के नीचे रात गुजारने वालों को खिलाने के बाद दस से साढ़े दस बजे सभी अपने-अपने घर लौटते हैं और फिर अपना पेट भरते हैं।

क्या कहते हैं संगठन के सदस्य

ग्रुप के सदस्य अभिजीत दास ने बताया कि वे अपनी जेब से खर्च कर रोटी नहीं बाटते हैं। उनकी आíथक स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है। लेकिन इसके बाद भी असहायों का पेट भरने के लिए तत्पर लोगों को लेकर व्हाट्सएप पर एक ग्र्रुप बनाया गया है। उसी के माध्यम से रोजाना करीब 200 लोगों के लिए रोटी का प्रबंध होता है। बीते पांच-छह महीने से रोटी चैलेंज के जरिए खुले आसमान के नीचे जीवन बिताने वालों को रात की रोटी मुहैया करायी जा रही है। बल्कि यह प्रक्रिया जारी रहेगी।


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