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पीएम व सीएम से इच्‍छा मृत्‍यु मांग रहे नक्‍सलबाड़ी के रंजीत दास, पढि़ए उनकी मार्मिक कहानी

अगर कोई व्यक्ति इच्छा मृत्यु मांग रहा हो तो उसकी अंतर्वेदना को समझा जा सकता है । यह मानव हृदय को झकझोर देने वाली घटना होती है। नक्सलबाड़ी के बाबूपाड़ा के रहने वाले रंजीत दास की भी ऐसी ही मार्मिक कहानी है।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Fri, 28 Jan 2022 04:20 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jan 2022 06:44 PM (IST)
पीएम व सीएम से इच्‍छा मृत्‍यु मांग रहे नक्‍सलबाड़ी के रंजीत दास, पढि़ए उनकी मार्मिक कहानी
नक्‍सलबाड़ी के रंजीत दास मीडिया से बात करते हुए, जागरण फोटो।

सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। अगर कोई व्यक्ति इच्छा मृत्यु मांग रहा हो तो उसकी अंतर्वेदना को समझा जा सकता है । यह  मानव हृदय को झकझोर देने वाली घटना होती है। क्योंकि कोई ऐसे ही इच्छा मृत्यु थोड़े ही मांगता है। भारत जैसे देश में अब तक इच्छा मृत्यु का प्रावधान नहीं है, जबकि दुनिया के कई देशों में इच्छामृत्यु को कानूनी मान्यता देते हुए खास परिस्थितियों में इसकी अनुमति  है। नक्सलबाड़ी के बाबूपाड़ा के रहने वाले रंजीत दास की भी ऐसी ही मार्मिक कहानी है।

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रंजीत दो साल से बिस्तर पर पड़े हुए हैं। वह बिस्तर पर पड़े-पड़े ही अपनी सारी नित्य क्रिया करते हैं। इस काम में उनकी पत्नी पूनम देवी मदद करती हैं। दरअसल दो साल पहले रंजीत दास काम करते हुए चार मंजिला मकान से  गिर गए थे, जिसके बाद से उनका स्पाइनल कोड व हिप ज्वाइंट बुरी तरह से चोटिल हो गए। इसके बाद से वह पूरी तरह से बिस्तर पर आ गए । वह पलंबर मिस्त्री का काम करते थे।

मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जीने से बेहतर है कि वह मर जाएं, क्योंकि उनकी आंखों के सामने उन्हें अपने परिवार का दुःख देखा नहीं जाता है। वह बिस्तर पर आ गए हैं । पत्नी किसी तरह से दो वक्त की रोजी-रोटी का जुगाड़ करती है। इसलिए उन्होंने देश के प्रधानमंत्री ,राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री व राज्यपाल से पत्र लिखकर अपनी इच्छामृत्यु की मांग की है। लेकिन उन्हें कहीं से भी कोई जवाब नहीं मिला। उनका कहना है कि कम से कम इच्छामृत्यु नहीं दे सकते तो उनकी चिकित्सा व्यवस्था कर दी जाए, जिससे वे बैठने लायक हो जाए ताकि वह व्हीलचेयर पर बैठकर कुछ काम  कर सकें। क्योंकि ऐसे तो जिंदगी काटे नहीं काट रही।

उनकी पत्नी पूनम देवी ने बताया कि दो साल पहले वह कामकाज के दौरान गिर गए थे। उसके बाद से ही बिस्तर पर हैं। उनका अच्छे से अच्छे इलाज के लिए बहुत पैसे की जरूरत है जो उनके पास नहीं है। वह सेल्फ हेल्प ग्रुप के साथ जुड़ी हुई हैं और काम करके किसी तरह अपनी दो बेटियों के साथ घर का खर्च चलाती हैं। उन्होंने कहा कि शुरुआती दौर में स्थानीय राजनीतिक दलों के नेता उनके साथ खड़े हुए थे लेकिन बड़े तौर पर उन्हें कहीं से कोई सहयोग नहीं मिला है। पंचायत से उन्हें सहयोग मिलता रहा है। पंचायत से उन्हें राशन जैसी जरूरतें पूरी होती है। उन्होंने अपील की कि उनके पति के चिकित्सा के लिए कुछ  व्यवस्था हो जाए तो वो बेहतर जीवन जी सकेंगे।


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