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रद्दी से कागज बटोर कर दो दोस्त बना रहे हैं लिखने की कॉपी

स्वस्थ और शिक्षित समाज -जरूरतमंद छात्र-छात्राओं में कॉपी का वितरण जारी -सरकारी स्कूलों

By JagranEdited By: Published: Thu, 02 Jul 2020 06:52 PM (IST)Updated: Thu, 02 Jul 2020 06:52 PM (IST)
रद्दी से कागज बटोर कर दो दोस्त बना रहे हैं लिखने की कॉपी
रद्दी से कागज बटोर कर दो दोस्त बना रहे हैं लिखने की कॉपी

स्वस्थ और शिक्षित समाज

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-जरूरतमंद छात्र-छात्राओं में कॉपी का वितरण जारी

-सरकारी स्कूलों में नैपकिन वेडिंग मशीन लगाने की भी तैयारी

-चाय बागान की महिलाओं को भी मिलेगा लाभ

मोहन झा, सिलीगुड़ी : कहते हैं जहा चाह, वहां राह। अर्थात कुछ करने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो तो रास्ता बनता चला जाता है। सिलीगुड़ी के दो छात्रों की दृढ़ इच्छा शक्ति ने इस कहावत को सार्थक किया है। इन दोनों छात्रों ने अपने लिए नहीं वरन गरीब विद्यार्थियों की सहायता और स्वस्थ समाज की दिशा मे सार्थक कदम बढ़ाया है।

व्यवसायी परिवार मे जन्मे रचित अग्रवाल और सिद्धात अग्रवाल अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अन्य जरूरतमंदों की पढ़ाई जारी रखने में एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। शिक्षित और स्वस्थ समाज की दिशा में दोनों ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। समाज हित की दिशा मे कार्य करने के लिए दोनों ने मुसाफिरी नाम से एक संगठन भी बना लिया है। फिलहाल यही दोनों इसके सदस्य भी हैं। इनकी सोच और कदम समाज को एक नई दिशा दे रही है।

यह दोनों छात्र रद्दी बटोर कर गरीब बच्चों को लिखने के लिए मुफ्त में कॉपी मुहैया करा रहे हैं। कोरोना के कारण लॉकडाउन के दौरान रद्दी बटोर कर एक सौ पेज वाली चार सौ कॉपी तैयार कर दोनों ने गरीब विद्याíथयों के बीच बाटा है। रचित और सिद्धात ने इस बारे में बताया कि अमूमन सत्र समाप्त होने पर अधिकाश विद्यार्थी किताब और कॉपी रद्दी में बेच देते हैं। जबकि उन कॉपी में काफी पन्ने ऐसे होते हैं,जिनका उपयोग ही नहीं होता है। काफी साफ पेज भी रद्दी के भाव बिक जाते हैं। हमलोग इन्हीं रद्दी के भाव बिकी कॉपियों से सादा पन्ना बटोर कर कॉपी बनाते हैं। सोशल मीडिया कि सहायता से नेटवìकग के जरिये घर-घर जाकर रद्दी बटोर कर साफ पेज छांट कर निकाला जाता है। उसके बाद एक सौ पेज की बाइंडिंग कर एक कॉपी तैयार कर लेते हैं।

इसके अलावा,मुसाफिरी ने चाय बागानों और ग‌र्ल्स स्कूलों मे सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाने का निर्णय लिया है। इस दिशा में पहल भी शुरू कर दी गई है। रचित और सिद्धात ने बताया की फिलहाल वे तीन सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाने जा रहे हैं। इसके लिए धन राशि का भी जुगाड़ हो गया है। मशीन लगाने के लिए चाय बागान और ग‌र्ल्स स्कूल का चयन किया जा रहा है। कोरोना की वजह से फिलहाल यह योजना रुकी हुई है। स्कूल खुलते ही योजना को सफल बनाया जाएगा। दोनों ने आगे बताया कि सैनिटरी पैड का उपयोग करने में आज भी हमारे समाज में लज्जा और शर्म की बात मानी जाती है। वहीं गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवार की महिलाओं के लिए इसका प्रयोग अतिरिक्त खर्च का बोझ है। चाय बागानो मे महिला कर्मचारी भी होती हैं। वहीं सरकारी स्कूलों मे पढ़ने वाले अधिकाश विद्यार्थी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवार से ताल्लुकात रखते हैं। चाय बागान श्रमिक महिलाओं और सरकारी स्कूलों मे पढ़ने वाली युवतियों के लिए पैड अतिरिक्त खर्च के समान ही है। महावरी के समय पैड के बजाए कपड़े का प्रयोग करने की वजह से महिलाएं विभिन्न प्रकार की बीमारियों से ग्रसित हो रही हैं। इसीलिए चाय बागानो और सरकारी ग‌र्ल्स स्कूलों मे नैपकिन वेंडिंग मशीन लगाने का निर्णय लिया है।

इसी साल शुरू हुई है मुसाफिरी की यात्रा

यहां बताते चलें कि मुसाफिरी ने अभी-अभी अपनी यात्रा प्रारंभ की है। इसी वर्ष जनवरी मे संस्था का गठन हुआ है। रचित और सिद्धात सिलीगुड़ी के नामी अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ते हैं। रचित बारहवीं तो सिद्धात दसवीं के छात्र हैं। इन दोनों को सामाजिक कार्य मे इनके परिवार का भी पूरा सहयोग मिला है। साथ ही मुसाफिरी की योजनाओ को देखकर समाज के अन्य लोग भी मदद के लिए आगे आए हैं।


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