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'जागरण युवा बोल' : आत्म सजगता से ही नारी अस्मिता की रक्षा संभव

दैनिक जागरण के जागरण युवा बोल कार्यक्रम के तहत सिलीगुड़ी में नारी अस्मिता पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें महिलाओं व छात्राओं ने विचार व्यक्त किए। जानिए आप भी उनके विचार...।

By Rajesh PatelEdited By: Published: Mon, 21 Jan 2019 04:00 PM (IST)Updated: Mon, 21 Jan 2019 04:00 PM (IST)
'जागरण युवा बोल' : आत्म सजगता से ही नारी अस्मिता की रक्षा संभव
'जागरण युवा बोल' : आत्म सजगता से ही नारी अस्मिता की रक्षा संभव
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  • दैनिक जागरण ने आयोजित किया जागरूकता कार्यक्रम 'युवा बोल'
  • प्रगति कॉलेज ऑफ एजुकेशन में खूब जमा रंग

सिलीगुड़ी [जागरण संवाददाता] । नारी अस्मिता की रक्षा आत्म सजगता से ही संभव है। पितृसत्तात्मक समय व समाज नारी अस्मिता के लिए सजग नहीं होने वाला। अपने लिए नारी को खुद ही सजग होना पड़ेगा। 'नारी अस्मिता : कल, आज और कल' विषय पर वक्ताओं ने ये उद्गार व्यक्त किए। यह, 'युवा बोल' कार्यक्रम का मौका था। दैनिक जागरण की ओर से अपने देशव्यापी जागरूकता अभियान के तहत प्रगति कॉलेज ऑफ एजुकेशन (ढुकुरिया) में इस कार्यक्रम के तहत विशेष परिचर्चा सत्र आयोजित किया गया था।
परिचर्चा में उपस्थित महिलाएं व छात्राएं। 
इसमें उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय (एनबीयू) के महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रोफेसर दीपिका साहा, हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. मनीषा झा व मेजबान प्रगति कॉलेज की उप-प्राचार्या मीनाक्षी कुमारी पैनलिस्ट के रूप में सम्मिलित हुईं। मीनाक्षी कुमारी ने कहा कि मनु स्मृति की शुरुआत से ही नारी वेदना की शुरुआत हुई। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि जिस शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा की हम पूजा करते हैं, उनके बारे में भी धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि उन्होंने असुर का वध इसलिए किया कि असुर ने उन्हें कुप्रस्ताव दिया था।
  एक पूजनीय शक्ति की देवी को कुप्रस्ताव मिल सकता है तो समझा जा सकता है कि आम नारी की अस्मिता कहां है। धर्म ग्रंथों ने, शास्त्रों ने देवी को 10-10 हाथ दिए, ताकि इंगित हो सके कि नारी को 10-10 काम करने होंगे। मगर, देवताओं के साथ ऐसा नहीं है। शक्ति की देवी दुर्गा को भी विष्णु व शिव से उत्पन्न बताया गया है। संस्कृति की बुनियाद में ही नारी अस्मिता को वेदना से भर दिया गया। इसलिए अस्मिता हेतु नारी आज भी जूझ ही रही है।
   डॉ. मनीषा झा ने कहा कि नारी अस्मिता के संदर्भ में बात करें तो शुरू से ही स्त्री को मनुष्य का दर्जा नहीं दिया गया। उसे अनुगामिनी व आज्ञाकारिणी ही बनाकर रखा गया। यह सब पितृ सत्तात्मक समाज की देन थी और है। भूमंडलीकरण से नारी अस्मिता के सवाल उभरे। स्त्री जागी। उसका यह जगना ही पितृ सत्तात्मक समाज की नींद उड़ा दिया। उन्हें बेचैन कर दिया। स्त्री जब तक सोई हुई थी तब तक पितृ सत्तात्मक समाज चैन से था। उसका जगना उन्हें बेचैन कर गया। नारी अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष आवश्यक है। वह संघर्ष पुरुषों से नहीं पुरुष सत्ता से होनी चाहिए। वैसे अब चीजें बदलने लगी हैं। मगर, एक सतत व लंबे संघर्ष के बाद ही नारी अस्मिता पूरी तरह स्थापित हो पाएगी।
   इस अवसर पर डॉ. देविका साहा ने कहा कि नारी व पुरुष में अंतर तो है। इस नैसर्गिक सच को हमें स्वीकार करना ही होगा। नारी व पुरुष समान नहीं है। इसलिए दोनों में तुलना नहीं की जा सकती है। दोनों अपने आप में बेमिसाल हैं। दोनों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं। सो, तुलना न हो। तुलना होगी तो अनावश्यक चीजें सामने आएंगी। तुलना नहीं होगी तो दोनों खुश रहेंगे। नारी अस्मिता या नारी स्वतंत्रता की यह मतलब नहीं है कि नारी समय व समाज के नियमों से ऊपर है। इसका मतलब है कि किसी और के अधीन न होकर नारी स्व-अधीन रहे। समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए नारी-पुरुष साथ-साथ चले। भेदभाव गलत है। मिलाप सही है। 
    इस सत्र में अतिथि के रूप में दैनिक जागरण (सिलीगुड़ी) के वरिष्ठ समाचार संपादक गोपाल ओझा ने स्वागत भाषण दे कर सबका स्वागत किया। उन्होंने कहा कि नारी-पुरुष का बंट कर चलना सही नहीं, मिल कर चलना सही है। इसी में समय व समाज की भलाई है। सत्र में धन्यवाद ज्ञापन दैनिक जागरण (सिलीगुड़ी) के महाप्रबंधक सुभाशीष (जय) हलदर ने किया। उन्होंने नारी अस्मिता के प्रति समय व समाज को मिल कर संवेदनशील होने की आवश्यकता पर बल दिया। इस सत्र का संचालन पत्रकार इरफान-ए-आजम ने किया। इससे पूर्व स्वागत सत्र का संचालन प्रगति कॉलेज की छात्रा संध्या गुप्ता व सुष्मिता बराइक ने संयुक्त रूप में किया। इस अवसर पर दैनिक जागरण (सिलीगुड़ी) के ब्रांड विभाग के प्रभारी अवधेश दीक्षित व छायाकार संजय साह समेत अन्य शिक्षक-शिक्षिकाएं व अनेक विद्यार्थी सम्मिलित रहे। कार्यक्रम में स्वागत गान पेश करने वाली कॉलेज की छात्राओं देबोस्मिता मोएत्रा, सुरभि सिंह, देबोलीना नाथ व सुचित्रा घोष ने समापन पर भी बहुत ही सुंदर गान प्रस्तुत कर समाज को नारी अस्मिता का बेहतर संदेश दिया। 'पतवार बनूंगी...लहरों से लड़ूंगी... अकेले चढ़ूंगी...दुश्मन से लड़ूंगी... मुझे क्या बेचेगा रुपैया...।  

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