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कोरोना वायरस के कारण सोशल डिस्टेंस बनाएं रखने के लिए कंबल पट्टी में मंदिर को बंद कर पूजा कर रहे पुजारी

कोरोना वायरस के कारण लॉक डाउन सोशल डिस्टेंस बनाएं रखने के लिए सिलीगुड़ी में भी मंदिरों के गेट को बंद कर पूजा अर्चना की जा रही है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 26 Mar 2020 04:26 PM (IST)Updated: Thu, 26 Mar 2020 04:26 PM (IST)
कोरोना वायरस के कारण सोशल डिस्टेंस बनाएं रखने के लिए कंबल पट्टी में मंदिर को बंद कर पूजा कर रहे पुजारी
कोरोना वायरस के कारण सोशल डिस्टेंस बनाएं रखने के लिए कंबल पट्टी में मंदिर को बंद कर पूजा कर रहे पुजारी

सिलीगुड़ी, जागरण संवाददाता। कोरोना वायरस के कारण लॉक डाउन सोशल डिस्टेंस बनाएं रखने के लिए सिलीगुड़ी में भी मंदिरों के गेट को बंद कर पूजा अर्चना की जा रही है। कुछ ऐसा ही नजारा शहर के कमल पट्टी हनुमान मंदिर में देखने को मिला। मंदिर में लोग प्रवेश न कर पाए इसके लिए मंदिर में ग्रिल गेट को बंद कर दिया गया है। चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन गुरुवार को मां दुर्गा के दूसरे रूप ब्रह्मचारिणी की आराधना की जा रही  है।

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कहते है कि नवरात्रि शक्ति उपासना का त्योहार है। लेकिन मां ब्रह्मचारिणी त्याग और तपस्या की देवी हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का आशय तपस्या और आचरण करने वाली से है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ ही तप का आचरण करने वाली माता है। आइए इस अवसर पर मां ब्रह्मचारिणी से जुड़ी बातों को जानते हैं। आचार्य पंडित यशोधर झा में बताया कि जैसे कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी और मां से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है। भविष्य पुराण में मां ब्रह्मचारिणी का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी की कथा इस प्रकार है- ऐसा कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पर्वतराज हिमालय के घर पर जन्मी थीं।

दुर्गा के नौ स्वरूपों में देवी ब्रह्राचारिणी का दूसरा स्वरूप है 

मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में देवी ब्रह्राचारिणी का दूसरा स्वरूप है। मां ब्रह्राचारिणी हमेशा कठोर तपस्या में लीन रहती है। मां के हाथों में माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। मां ने भगवान शिव को पति रुप में पाने के लिए हजार सालो तक कठिन तप और उपवास किया था।

दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हज़ार वर्ष उन्होंने केवल फल, मूल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था।कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। कई हज़ार वर्षों की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का शरीर एकदम क्षीण हो उठा,उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मेना अत्यंत दुखी हुई और उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरक्त करने के लिए आवाज़ दी 'उ मा'। तब से देवी ब्रह्मचारिणी का एक नाम उमा भी पड़ गया। उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। 

देवता,ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी देवी ब्रह्मचारिणी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे।अंत में पितामह ब्रह्मा जी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वर में कहा-'हे देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की जैसी तुमने की हैं। तुम्हारे इस आलोकक कृत्य की चारों ओर सराहना हो रही हैं। तुम्हारी मनोकामना सर्वतोभावेन परिपूर्ण होगी।  


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