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'प्रेमचंद की समाज-दृष्टि' पर संगोष्ठी में मंथन

प्रेमचंद की समाज दृष्टि पर हुआ मंथन।

By JagranEdited By: Published: Sun, 07 Aug 2022 09:57 PM (IST)Updated: Sun, 07 Aug 2022 09:57 PM (IST)
'प्रेमचंद की समाज-दृष्टि' पर संगोष्ठी में मंथन
'प्रेमचंद की समाज-दृष्टि' पर संगोष्ठी में मंथन

-समग्र भारत के रचनाकार माने जा सकते हैं प्रेमचंद : डॉ. अजय कुमार साव

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-कुछ कुत्सित मानसिकता के लोग प्रेमचंद को बदनाम कर रहे : डॉ. आर.पी. सिंह जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद की 142वीं जयंती की कड़ी में उत्तर बंग हिंदी ग्रंथागार की ओर से शनिवार को एच.बी. विद्यापीठ (खालपाड़ा) में 'प्रेमचंद की समाज-दृष्टि' विषयक संगोष्ठी आयोजित की गई। इसकी अध्यक्षता ग्रंथागार के उपाध्यक्ष डॉ. अजय कुमार साव ने की। इस अवसर पर स्वागत वक्तव्य रख ग्रंथागार के सचिव डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह ने सभी का स्वागत किया। वहीं, विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि, प्रेमचंद फिरंगी हुकूमत के विरुद्ध समाज दृष्टि के सर्जक रहे। सत्ता संस्कृति के विरुद्ध मानव समाज को समग्रता में विषय बनाने की दृष्टि प्रेमचंद की रचना-दृष्टि का मूल स्वर है। कुछ कुत्सित मानसिकता के लोग प्रेमचंद के विरुद्ध कुप्रचार कर उनका चरित्रहरण करने का प्रयास कर रहे हैं। उनसे सभी को सचेत रहने की आवश्यकता है।

मुख्य वक्ता डॉ. रहीम मियां ने कहा कि, प्रेमचंद विमर्श के मूल आयामों के स्त्रोत हैं। उनकी रचनाओं में राजा रानी की जगह दलित, मजदूर, किसान को नायक बनाना स्वयं में एक क्रांतिकारी दृष्टि रही। उनका अनुसरण कर आज साहित्य को राजनीतिक दृष्टि से संपन्न बनाए जाने की जरूरत है। संगोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार देवेंद्र नाथ शुक्ल ने प्रेमचंद की समाज-दृष्टि को समय और समाज से आगे की दृष्टि बताया। वहीं, वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. ओमप्रकाश पांडेय ने प्रेमचंद की समाज दृष्टि को समग्रता से संपन्न करार दिया।

अध्यक्षीय वक्तव्य में संगोष्ठी के अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार साव ने कहा कि, जब प्रेमचंद व्यक्ति के हृदय परिवर्तन द्वारा समाज को बदलने की बात करते हैं, तब वे आदर्शवादी रचना रचते हैं। मगर, जैसे ही समकालीन समाज की वास्तविकताओं के बीच विवश दलित, मजदूर, किसान, देशभक्त और आम नागरिक के साथ-साथ साहित्यकारों को देखते हैं, तब वे यथार्थ रचना रचते हैं। वह दलितों, पिछड़ों, शोषितों के साथ-साथ मध्यवर्गीय परिवार एवं समाज की विडंबनाओं की भी गहन पड़ताल करते थे। इसलिए वे आज भी समग्र भारत के रचनाकार माने जा सकते हैं। उनकी समाज दृष्टि को समग्रता में देखा जा सकता है। इस अवसर पर पत्रकार मनोरंजन पांडेय, इरफान-ए-आजम, दीपेंद्र सिंह, शिक्षक विकास कुमार, विमल कुमार, रजनी भगत, काजल दास, युवा कलमकार रश्मि भट्ट, कुमुद कुमारी, निशा झा, दीपनारायण शाह व व अन्य कइयों ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए।

इस संगोष्ठी का सफल संचालन ज्योति भट्ट ने किया। वहीं, ग्रंथागार की अध्यक्ष एवं एच.बी. विद्यापीठ की प्राचार्य अर्चना शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने प्रेमचंद के भाव बोध को बदलते सौंदर्य बोध की दिशा में प्रस्तुत किया। इस अवसर पर अतिथि के रूप में एच. बी. विद्यापीठ के ट्रस्टी संजय टिबड़ेवाल, लेखिका पुतुल मिश्रा, शिक्षिका ब्यूटी सहगल, मनीषा गुप्ता अपूर्वा, सुषमा कुमारी, गुड़िया बाल्मीकि, गंगा दास, पूजा शर्मा, मोनिका शर्मा व अन्य कई मौजूद रहे।


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