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शुभेंदु व मिहिर गोस्वामी ने बढ़ायी ममता की चिंता

-भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा आगे आगे देखिए होता है क्या -शुभेंदु अधिकारी व गोस्वा

By JagranEdited By: Published: Fri, 27 Nov 2020 02:32 PM (IST)Updated: Fri, 27 Nov 2020 02:32 PM (IST)
शुभेंदु व मिहिर गोस्वामी ने बढ़ायी ममता की चिंता

-भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा आगे आगे देखिए होता है क्या

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-शुभेंदु अधिकारी व गोस्वामी समर्थकों में व्याप्त खुशी की लहर

अशोक झा, सिलीगुड़ी :

दस वर्षो से बंगाल संभालने वाली मां माटी मानुष की सुप्रीमो ममता बनर्जी के दुर्ग में भाजपा सेंध लगाने में सफल होते दिख रही है। सरकार में परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी ने दक्षिण बंगाल के हुगली नदी आयुक्त पद के बाद कैबिनेट से इस्तीफ़ा दिया। वे जल्द ही विधायक पद से भी त्यागपत्र देंगे। वहीं उत्तर बंगाल के कूचबिहार के टीएमसी विधायक मिहिर गोस्वामी ने इस्तीफ़ा दे दिया है। वे भी ममता बनर्जी से नाराज़ बताए जा रहे हैं। इससे ममता बनर्जी सरकार में राजनीतिक खलबली मची हुई है। भाजपा शुभेंदु अधिकारी में राष्ट्रवाद व हिंदूत्व की प्रखड़ छवि दिखाई दे रहा है। जिस भाजपा पर बाहरी का आरोप ममता बनर्जी लगाती है उसी तृणमूल कांग्रेस के अंदर से भूमिपुत्रों को भाजपा पार्टी में शामिल कराकर 2021 को विजयी बनाने का मार्ग प्रशस्त करने में लगी है। इस संबंध में दार्जिलिंग के सांसद सह भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजू बिष्ट ने अपनी प्रतिक्रिया में सिर्फ इतना ही कहा आगे आगे देखिए होता है क्या? तृणमूल कांग्रेस की ओर से मंत्री रविंद्र नाथ घोष हो या मंत्री गौतम देव कोई भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे है।

बढ़े कद के नेता है शुभेंदु

ममता से नाराज चल रहे शुभेंदु अधिकारी बगावती तेवर में कोई कमी नहीं आयी है। अब वह खुलकर आरपार की लड़ाई में सामने आए है। शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी, भाई दिब्येंदु अधिकारी भी लोकसभा सासद हैं। नंदीग्राम आदोलन के सूत्रधार शुभेंदु 65 सीटों पर असर रखते है। शुभेंदु अधिकारी कौन हैं। शुभेंदु अधिकारी पूर्वी मिदनापुर जिले के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं।

शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी की छवि एक जन नेता की है। शुभेंदु ने अपने पिता से राजनीति के गुण सीखे और जंगल महल और पूर्वी मिदनापुर में तृणमूल काग्रेस के चुनावी सफलता से साफ है कि शुभेंदु अधिकारी जमीनी पकड़ रखने वाले नेता है। 2016 के विधानसभा चुनाव में अधिकारी परिवार के प्रभाव वाले 65 सीटों में से तृणमूल ने 36 सीटें जीत ली थी विधानसभा सीटों की संख्या 2011 के मुकाबले 8 विधानसभा सीटें ज्यादा थी। तृणमूल काग्रेस ने इस पूरे इलाके में 2011 के मुकाबले अपना वोट शेयर भी 8 फ़ीसदी बढ़ाया था। शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी पश्चिम बंगाल की काथी लोकसभा सीट से सासद हैं। शुभेंदु अधिकारी के पिता 1982 से काथी दक्षिण विधानसभा सीट से काग्रेस से विधायक बने थे, लेकिन बाद में वे तृणमूल काग्रेस में शामिल हो गए और तृणमूल काग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक शुभेंदु अधिकारी हैं। 2009 से इसी काथी दक्षिण सीट से तीन बार विधायक चुने जा चुके हैं, शुभेंदु अधिकारी के भाई जब बिंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल के तमलुक लोक सभा क्षेत्र से सासद तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे भाई सुमेंदु अधिकारी, काथी नगर पालिका अध्यक्ष हैं। शुभेंदु अधिकारी 2007 में पूर्वी मिदनापुर से लेकर नंदीग्राम में एक इंडोनेशियाई रासायनिक कंपनी के खिलाफ भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आदोलन के अगुआ थे। शुभेंदु अधिकारी ने भूमि उछेड़ प्रतिरोध कमेटी के बैनर तले आदोलन खड़ा किया था, जिसका सीपीएम के कैडर के साथ खूनी संघर्ष भी हुआ। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने फायरिंग की जिसमें एक दर्जन से ज्यादा किसान मारे गए। इसके बाद आदोलन और तेज हो गया, जिससे तत्कालीन वामपंथी सरकार को झुकना पड़ा।

हुगली जिले के सिंगुर में भी इसी तरह भूमि अधिग्रहण के विरोध में प्रदर्शन हुए इन दो घटनाओं ने सत्ता पर काबिज वाम दलों को सत्ता से बाहर करने में अहम भूमिका निभाई। नंदीग्राम के आदोलन की सफलता से खुश ममता बनर्जी ने तब शुभेंदु को जंगलमहल इलाके का इंचार्ज बनाया था। जिसमें पश्चिमी मिदनापुर, बाकुरा और पुरुलिया जिले शामिल थे. यह जिले वामपंथ का गढ़ थे जो कि अति पिछड़े थे और माओवादी विद्रोह से जूझ रहे थे। यहा से शुभेंदु अधिकारी ने अपने प्रभाव और आभामंडल को बढ़ाना शुरू किया। शुभेंदु अधिकारी एक बड़े नेता के रूप में स्थापित होते चले गए, अब राज्य में शुभेंदु अधिकारी को ममता बनर्जी का सबसे खास और दाहिना हाथ माना जाने लगा था। साल 2006 में विधानसभा चुनाव में तृणमूल काग्रेस का वोट शेयर 27 फ़ीसदी था। जो कि पांच साल बाद बढ़कर 39 फ़ीसदी हो गया। पूर्वी मिदनापुर और पश्चिम बर्दवान समेत पूरे जंगल महल में फैली 65 सीटें जिन पर अधिकारी परिवार का प्रभाव माना जाता है वहा तृणमूल का वोट शेयर 28 फ़ीसदी से बढ़कर 42 फीसदी हो गया है। 2016 में तृणमूल काग्रेस को इन सीटों पर करीब 48 फ़ीसदी वोट मिले उसके बाद वाममोर्चा को 27 फीसदी और बीजेपी को 10 फीसदी वोट मिले। हालाकि, पिछले साल राज्य में18 संसदीय सीटें और 40 फीसदी वोट हासिल करने के बाद बीजेपी बंगाल में मुख्य विपक्ष के रूप में उभरी है और वामपंथियों का सफाया हो चुका है अब मुख्य मुकाबला तृणमूल काग्रेस और बीजेपी के बीच है।


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