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स्वयंसेवकों में घर-घर में की ध्वज की पूजा

-हिंदू त्योहारों में एक है गुरु पूर्णिमा कोरोना के कारण गुरुओं से वर्चुअल लिया आशीर्वा

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Jul 2020 07:09 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 06:13 AM (IST)
स्वयंसेवकों में घर-घर में की ध्वज की पूजा
स्वयंसेवकों में घर-घर में की ध्वज की पूजा

-हिंदू त्योहारों में एक है गुरु पूर्णिमा, कोरोना के कारण गुरुओं से वर्चुअल लिया आशीर्वाद

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-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भगवा ध्वज को मानते है अपना गुरु

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी:

आषाढ़ माह में पूíणमा के दिन गुरु पूíणमा का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार सबसे शुभ हिंदू त्योहारों में से एक है। इस दिन शिष्य अपने गुरु का आभार व्यक्त करते हैं। इस त्योहार से जुड़ी कई मान्यताएं इसे विशेष बनाती हैं। मान्यता है कि पहली बार इसी दिन आदियोगी भगवान शिव ने सप्तऋषियों को योग का ज्ञान देकर स्वयं को आदि गुरु के रूप में स्थापित किया। यह भी माना जाता है कि महíष वेद व्यास का जन्म भी इसी दिन हुआ था। महíष व्यास ने चारों वेदों एवं महाभारत की रचना की। इस कारण उनका नाम वेद व्यास भी है। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है और उनके सम्मान में गुरु पूíणमा को व्यास पूíणमा नाम से जाना जाता है। कोरोना काल के कारण इस वर्ष ज्यादातर लोग अपने गुरु से मिलकर उनका आशीर्वाद नहीं ले पाए। वर्चुअल प्रणाम कर उनसे अपना सानिध्य मांगा। सिलीगुड़ी महकमा में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 20 हजार घरों में स्वयंसेवकों द्वारा भगवा ध्वज व भारत माता की पूजन कर उन्हें नमन किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की उसी क्रम में आगे बढ़ते हुए भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिठति किया। इसके पीछे मूल भाव यह था कि व्यक्ति पतित हो सकता है पर विचार और प्रतीक नहीं। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन गुरु रूप में इसी भगवा ध्वज को नमन करता है। भारतभूमि के कण-कण में चैतन्य स्पंदन विद्यमान है। पर्वो, त्योहारों और संस्कारों की जीवंत परम्पराएं इसको प्राणवान बनाती हैं। तत्वदर्शी ऋषियों की इस जागृत धरा का ऐसा ही एक पावन पर्व है गुरु पूíणमा। हमारे यहा च्अखंड मंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं..तस्मै श्री गुरुवे नम:ज् कह कर गुरु की अभ्यर्थना एक चिरंतन सत्ता के रूप में की गई है। भारत की सनातन संस्कृति में गुरु को परम भाव माना गया है जो कभी नष्ट नहीं हो सकता, इसीलिए गुरु को व्यक्ति नहीं अपितु विचार की संज्ञा दी गई है। इसी दिव्य भाव ने हमारे राष्ट्र को जगद्गुरु की पदवी से विभूषित किया। गुरु को नमन का ही पावन पर्व है गुरु पूíणमा। भगवाध्वज त्याग, समर्पण का प्रतीक है। स्वयं जलते हुए सारे विश्व को प्रकाश देने वाले सूर्य के रंग का प्रतीक है। संपूर्ण जीवों के शाश्वत सुख के लिए समर्पण करने वाले साधु, संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं, इसलिए भगवा, केसरिया त्याग का प्रतीक है। अपने राष्ट्र जीवन के, मानव जीवन के इतिहास का साक्षी यह ध्वज है। यह शाश्वत है, अनंत है, चिरंतन है।


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