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आज से शुरू हो रहा पितृपक्ष, जाने क्यों किया जाता है श्राद्घ

-कौन कहलाते है पितर, कब बनता है पितृपक्ष का योग -क्या करें जब श्राद्ध की तिथि न हो याद

By JagranEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 04:08 PM (IST)Updated: Sun, 23 Sep 2018 04:08 PM (IST)
आज से शुरू हो रहा पितृपक्ष, जाने क्यों किया जाता है श्राद्घ
आज से शुरू हो रहा पितृपक्ष, जाने क्यों किया जाता है श्राद्घ

-कौन कहलाते है पितर, कब बनता है पितृपक्ष का योग

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-क्या करें जब श्राद्ध की तिथि न हो याद

जागरण संवाददाता, सिलीगुड़ी : भाद्रपद पूर्णिमा से आश्रि्वन अमावस्या तक 15 दिनों की विशेष अवधि में श्राद्ध कर्म किए जाते है। श्राद्ध को पितृपक्ष और महालय के नाम भी जाना जाता है। इस वर्ष यह 24 सितंबर से 8 अक्टूबर तक श्राद्ध पक्ष रहेगा। इस संबंध में आचार्य पंडित यशोधर झा ने बताया कि साल के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को परिजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म उसी तिथि को करना चाहिए। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दिनो मे हमारे पूर्वज जिनका देहांत हो चुका है वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते है। पृथ्वी लोक पर जीवित रहने वाले अपने परिजनों के तर्पण को स्वीकार करते है। उन्होंने बताया कि श्राद्ध का अर्थ क्या है। जिस कर्म के माध्यम से अपने पितरों को प्रसन्न किया जाए या जिसके परिजन देह त्याग कर चले गये है उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे ही श्राद्ध कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के देवना यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते है ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सके। यह भी जानना जरूरी है कि कौन कहलाते है पितर। जिस किसी के परिजन चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित। बच्चा हो या बुजुर्ग, स्त्री हो पुरूष उनकी मृत्यु हो चुकी है उन्हें ही पितर कहा जाता है। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति से वे प्रसन्न होकर घर पर सुख शांति की बरसात करते है। कई बार ऐसा प्रश्न लोग पूछते है कि जिन्हें श्राद्ध की तिथि याद नहीं हो वे क्या करें? पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण उनकी पूजा करने भी उनकी आत्मा को शांति मिलती है। किसी को जब तिथि याद नहीं हो उसका भी निवारण शास्त्रों मे है। ऐसे लोगों को आश्रि्वन अमावस्या यानि महालया के दिन तर्पण करना चाहिए। इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। जिसकी अकाल मृत्यु हुई है उसे चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। ऐसे ही पिता का श्राद्ध अष्टमी और माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है। यह भी जानना जरूरी है कि श्राद्ध करने का अधिकार किसी है। इसका अधिकार पुत्र को है। लेकिन अगर पुत्र जीवित नहीं हो तो पौत्र, पपौत्र या विधवा पत्‍‌नी भी श्राद्ध कर सकती है। पुत्र के नहीं रहने पर पत्‍‌नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है।


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