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कíसयाग के गिद्धा पहाड़ पर नजरबंद किए गए थे नेता जी सुभाष चंद्र बोस

नेताजी जयंती विशेष -कुल सात महीने रहे थे नजरबंद भैया शरत चंद्र बोस को भी नजरबंद

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 09:26 PM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 09:26 PM (IST)
कíसयाग के गिद्धा पहाड़ पर नजरबंद किए गए थे नेता जी सुभाष चंद्र बोस
कíसयाग के गिद्धा पहाड़ पर नजरबंद किए गए थे नेता जी सुभाष चंद्र बोस

नेताजी जयंती विशेष -कुल सात महीने रहे थे नजरबंद, भैया शरत चंद्र बोस को भी नजरबंदी में गुजारना पड़ा दो साल

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-बंगाल प्रांतीय कांग्रेस के जलपाईगुड़ी अधिवेशन के मुख्य अतिथि हुए थे नेता जी, सिलीगुड़ी जंक्शन हो कर ही था आना-जाना इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी नेता जी सुभाष चंद्र बोस की यादें देश-दुनिया में जगह-जगह भरी पड़ी हैं। उन्हीं में कुछ बहुत ही खास यादें सिलीगुड़ी, जलपाईगुड़ी, दाíजलिंग व कíसयांग से भी जुड़ी हुई हैं। ब्रिटिश सरकार ने अक्टूबर 1936 में उन्हें यहां कíसयांग के गिद्धा पहाड़ स्थित उनके घर पर ही सात महीने के लिए नजरबंद कर दिया था। उसी दौरान देश में वंदे मातरम् गान को लेकर उत्पन्न विवाद के सिलसिले में गिद्धा पहाड़ से ही नेता जी ने रवींद्रनाथ टैगोर व पंडित जवाहरलाल नेहरू संग पत्राचार किया था। एक दिलचस्प बात यह भी है कि नेता जी ने उस दौरान 26 पत्र लिखा जिनमें 11 पत्र एमिली शेंक्ल के नाम थे। वहीं, उन्हें भी यहा एमिली के 10 पत्र प्राप्त हुए। ये सारे पत्र सुभाष चंद्र बोस व एमिली शेंक्ल के बीच के खास निजी संबंधों की गवाही देते हैं। इसी घर में नेता जी से पहले उनके भैया स्वतंत्रता सेनानी अधिवक्ता शरत चंद्र बोस को भी अंग्रेज सरकार ने 1933 से 1935 के बीच दो साल के लिए नजरबंद किया था।

सिलीगुड़ी से 30 किलोमीटर दूर कíसयांग के गिद्धा पहाड़ पर लगभग पौने दो एकड़ जमीन पर नेता जी सुभाष चंद्र बोस का वह ऐतिहासिक घर आज भी मौजूद है, जो अब नेता जी म्यूजियम बन गया है। इस बाबत उपलब्ध रिकॉर्ड से पता चलता है कि यह घर नेता जी के भैया शरत चंद्र बोस ने 1922 में एक अंग्रेज राउली लैस्सेल्स वार्ड से खरीदा था। अपने 14 भाई-बहनों में शरत चंद्र बोस चौथे व सुभाष चंद्र बोस नौवें थे। यह घर नेता जी सुभाष चंद्र बोस के परिवार का एक 'होली-डे होम' था। उनका परिवार अक्सर गर्मी व पूजा आदि की छुट्टियां बिताने यहीं आता था। कहते हैं कि नेता जी के परिवार का ड्राइवर उनकी कार लेकर सड़क मार्ग से दो-चार रोज पहले ही यहां आ जाता था। फिर, नेता जी व परिवार के लोग सियालदह से दाíजलिंग मेल के जरिए सिलीगुड़ी जंक्शन (अब सिलीगुड़ी टाउन स्टेशन) पहुंचते थे और फिर वहा से उनका ड्राइवर कार से उन्हें कíसयाग के गिद्धा पहाड़ स्थित उनके घर ले जाता था। वह घर अब म्यूजियम बन गया है। इस म्यूजियम के कार्यालय प्रभारी गणेश कुमार प्रधान बताते हैं कि इस म्यूजियम में नेता जी के बेड, फर्नीचर, पारिवारिक फोटो एल्बम व कई सामान और विशेष रूप से उनके बहुत सारे ऐतिहासिक पत्र उपलब्ध हैं। इस घर पर नेता जी अंतिम बार 1939 में आए थे। कहा जाता है कि यहीं से उन्होंने अपने 'द ग्रेट एस्केप' की योजना बनाई थी। उसके बाद 18 जनवरी 1941 को कलकत्ता के एल्गिन रोड स्थित अपने घर में ही नजरबंद नेता जी तमाम अंग्रेजी अफसरान व प्रहरियों को चकमा दे कर निकल गए। फिर, 18 अगस्त 1945 को यह खबर आई कि ताइवान के ताइपे में जहाज के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने के चलते उसमें सवार 48 वर्षीय नेता जी बुरी तरह जल गए थे और उनकी मृत्यु हो गई। हालांकि, अभी तक उनके जीवित होने या उनकी मृत्यु हो जाने को लेकर तरह-तरह के रहस्य बरकरार ही हैं।

खैर, यहां कर्सियांग के गिद्धा पहाड़ स्थित उनके घर से जुड़ी यादों को लेकर यह भी कहा जाता है कि 1938-39 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने जो गुजरात के हरिपुरा अधिवेशन में ऐतिहासिक भाषण दिया था वह भाषण भी उन्होंने यहीं तैयार किया था। 1945 में जेल से छूटने के बाद शरत चंद्र बोस सपरिवार अक्सर इसी घर में रहा करते थे। नेता जी को भी यहा दाíजलिंग पार्वत्य क्षेत्र की हसीन वादियों में रहना बहुत पसंद था। एक दफा लड़कपन में उन्होंने कहा था कि 'मेरी जिंदगी का सबसे खुशी भरा दिन तब होगा जब मैं आजाद हो जाऊंगा और जब मैं दाíजलिंग जाऊंगा'। दार्जिलिंग व यहां के गोरखाओं ने भी नेता जी को बहुत सम्मान दिया। ब्रिटिश फौज की गुलामी छोड़ कर भारत की आजादी के लिए अनेक गोरखा नेता जी के आजाद हिद फौज से जुड़ गए।

इधर, 1950 के दशक में भी शरत चंद्र बोस की पत्नी विभावती देवी अपने परिवार के सदस्यों के साथ यहीं कर्सियांग के गिद्धा पहाड़ स्थित अपने घर पर छुट्टियां बिताती थीं। 1954 तक उनके परिवार के यहा रहने के साक्ष्य मिलते हैं। उसके बाद, तीन दशकों से अधिक समय तक यह घर अप्रयुक्त ही रहा। 1996 में पश्चिम बंगाल सरकार के उच्च शिक्षा विभाग ने इस घर के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की। उसके बाद इसका जीर्णोद्धार और नवीनीकरण किया गया। फिर, इसे नेताजी इंस्टीट्यूट फॉर एशियन स्टडीज (कोलकाता) को सौंप दिया गया जिसने इस ऐतिहासिक घर को 'नेताजी म्यूजियम एंड सेंटर फॉर स्टडीज इन हिमालयन लैंग्वेजेज, सोसाइटी एंड कल्चर' में तब्दील कर दिया।

यहां जलपाईगुड़ी से भी नेता जी की यादें जुड़ी हुई हैं। शहर के जाने-माने साहित्यकार 84 वर्षीय महावीर चाचान ने अपनी लोक-इतिहास की पुस्तक 'जलपाईगुड़ी और मारवाड़ी समाज' में लिखा है कि 'चार फरवरी 1939 को नेता जी जलपाईगुड़ी आए थे'। वहां पांडा पाड़ा में बंगाल प्रांतीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था। उसमें मुख्य अतिथि नेता जी सुभाष चंद्र बोस ही थे। उनके भैया शरत चंद्र बोस ने अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। उस समय नेता जी को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। नेता जी तब बैकुंठपुर स्थित राज-बाड़ी (राजमहल) भी गए थे। जलपाईगुड़ी के तब के राजा प्रसन्नदेव रायकत व जाने-माने व्यवसायी जेठमल सिंघानिया आदि की नेता जी के साथ की उस समय की तस्वीर आज भी उनकी यादों को ताजा किए हुए है। उसी समय नेता जी जलपाईगुड़ी में लायक राम गुप्ता के नवजीवन इंश्योरेंस कंपनी के कार्यालय भी गए थे। जहां लायक राम गुप्ता के परिवार के बच्चों बजरंग लाल गुप्ता व इंदर कुमार अग्रवाल को उन्होंने खूब दुलारा-पुचकारा था। उन बच्चों को अपनी अंगुली थमाए हुए उन्होंने कार्यालय देखा था। उन्हीं लायक राम गुप्ता का लायक भवन व कर्सियांग मेडिकल स्टोर आज भी सिलीगुड़ी के सेवक मोड़ पर स्थित है जहां बहुत सी ऐतिहासिक यादें संजोई हुई हैं।


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