नक्सलवाद नहीं, अब ड्रैगन फ्रूट उपजाकर कैंसर व शुगर को डरा रही नक्सलबाड़ी की धरती
नक्सलवाद की जननी नक्सलबाड़ी की धरती से अब बारूद की गंध नहीं आती। यह अब ड्रैगन फ्रूट को उपजा कर कैंसर व शुगर को डरा रही है। किसानों की आर्थिक स्थिति सुधर रही है।
By Rajesh PatelEdited By: Published: Tue, 27 Nov 2018 12:26 PM (IST)Updated: Tue, 27 Nov 2018 12:26 PM (IST)
सिलीगुड़ी [शिवानंद पांडेय]। नक्सलवाद की जननी नक्सलबाड़ी का इलाका तेजी से बदल रहा है। अब यहां बारूद की गंध नहीं आती। यहां की धरती अब ड्रैगन फ्रूट्स को उपजाकर कैंसर व शुगर को डरा रही है। किसानों के लिए भी यह काफी मुनाफेवाली खेती साबित हो रही है।
हाथीघिसा गावं जहां से नक्सल आंदोलन का सूत्रपात होकर देश के विभिन्न हिस्सों में आग की तरह फैला, वह गांव नक्सल आंदोलन के काली छाया से बाहर निकलकर विकास की राह पर अग्रसर हो रहा है। वहां के किसानों ने पारंपरिक खेती से दूर हटकर तकनीक के सहारे विदेशी फलों की खेती कर दी है।
यहां की एक आदिवासी दंपती भूषण टोप्पो व आभा टोप्पो ने तीन साल पहले उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय अंतर्गत आने वाले सेंटर फॉर एग्री बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) में आयोजित कार्यशाला में जानकारी प्राप्त कर एक सीमेंटेड पिलर पर ड्रैगन फ्रूट्स के चार पौधों को लगाया। वर्तमान में 40 पिलर पर 160 पौधे हैं। इनमें से 20 से फल भी निकलने लगे हैं। इसमें मिली सफलता से खुश आभा व भूषण टोप्पो बतते हैं कि घर के ही एक कोने में एक पिलर पर ड्रैगन फ्रूट्स के लिए एक पिलर तैयार किया गया। कोफाम से एक सौ 25 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से चार पौधे लाए गए। इन चार पौधों से ही अन्य पौधे तैयार किए गए। घर की चारदिवारी के अंदर ही डेढ़ कट्ठा जमीन में 20 और पिलर तैयार कर इसकी खेती शुरू कर दी।
अप्रैल-मई से फल लगने हो जाते हैं शुरू
टोप्पो ने बताया कि इसमें अप्रैल-मई से फल लगने शुरू हो जाते हैं तथा 15 नवंबर तक फल लगते रहते हैं। इस वर्ष पांच सौ रुपये किलो की दर से 20 हजार रुपये का फल बेचा जा चुका है। व्यवसायी खुद घर आकर फल को खरीदकर ले जाते हैं।
ड्रैगन फ्रूट्स के पौधों की भी करते हैं बिक्री
इतना ही नहीं, टोप्पो दंपती द्वारा इसके पौधे भी यहीं पर तैयार कर इच्छुक किसानों को सौ रुपये प्रति पौधे के हिसाब से बेचे भी जा रहे हैं। टोप्पो ने बताया कि 20 पिलर के बाद अब 40 पिलर पर इसे लगाया है। नए 20 पिलर में भी अगले वर्ष से फल निकलने लगेंगे।
अन्य किसानों को भी किया जा रहा है जागरूक
आभा टोप्पो ने बताया कि एनबीयू में मेरे साथ यहां से कई लोगों ने कार्यशाला में भाग लिया था, लेकिन इसकी खेती हाथीघिसा में सिर्फ उन्होंने शुरू की। कोफाम की संयोजक प्रोफेसर शिल्पी घोष के निर्देशन में प्रोजेक्ट अधिकारी अमरेंद्र पांडेय के नेतृत्व में तकनीकी जानकारी ली जाती है। टोप्पो द्वारा बताया गया कि वह एक सेल्फ-हेल्प ग्रुप से जुड़ी हुई हैं तथा अन्य महिलाओं को भी ड्रैगन फ्रूट्स की खेती करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसके लिए कई लोग आगे भी आए हैं।
खाद व पानी की बहुत कम पड़ती है जरूरत
कोफाम के तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट्स में सफेद व लाल किस्म के फल होते हैं। लाल किस्म के फल ज्यादा स्वादिष्ट तथा फायदेमंद होते हैं। इसकी कीमत भी सात सौ से एक हजार रुपये प्रति किलोग्राम होती है। इसकी खासियत है कि इसमें खाद व पानी की बहुत कम जरूरत पड़ती है तथा बंजर व पथरीली जमीन में भी इसे लगाया जा सकता है। यही वजह है कि इसे वंडर फ्रूट्स भी कहा जाता है तथा विश्व में 'एबो-केबो' के बाद दूसरा सबसे ज्यादा लोकप्रिय फल है।
चार साल पहले कोफाम में हुआ था सफल कल्टिवेशन
पांडेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट्स मुख्य रुप से मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, ताइवान व श्रीलंका में होता है। इसकी खेती भारत में पांच साल पहले महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश में शुरू हुई थी।पश्चिम बंगाल में सिर्फ उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के कोफाम में चार साल पहले इसकी सफल खेती शुरू की गई थी।
डायबिटीज व कैंसर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होता है ड्रैगन फ्रूट्स
कोफाम के पूर्व संयोजक प्रोफेसर रणधीर चक्रवर्ती ने बताया कि ड्रैगन फूट्स स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। बैंगलुरू व हैदराबाद के डॉक्टर अपनी दवा के पर्चे में इस फल को खाने की सलाह देते हैं। यह फल कैंसर व डायबिटीज के मरीजों के लिए भी काफी फायेदमंद होता है।
हाथीघिसा गावं जहां से नक्सल आंदोलन का सूत्रपात होकर देश के विभिन्न हिस्सों में आग की तरह फैला, वह गांव नक्सल आंदोलन के काली छाया से बाहर निकलकर विकास की राह पर अग्रसर हो रहा है। वहां के किसानों ने पारंपरिक खेती से दूर हटकर तकनीक के सहारे विदेशी फलों की खेती कर दी है।
यहां की एक आदिवासी दंपती भूषण टोप्पो व आभा टोप्पो ने तीन साल पहले उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय अंतर्गत आने वाले सेंटर फॉर एग्री बिजनेस मैनेजमेंट (कोफाम) में आयोजित कार्यशाला में जानकारी प्राप्त कर एक सीमेंटेड पिलर पर ड्रैगन फ्रूट्स के चार पौधों को लगाया। वर्तमान में 40 पिलर पर 160 पौधे हैं। इनमें से 20 से फल भी निकलने लगे हैं। इसमें मिली सफलता से खुश आभा व भूषण टोप्पो बतते हैं कि घर के ही एक कोने में एक पिलर पर ड्रैगन फ्रूट्स के लिए एक पिलर तैयार किया गया। कोफाम से एक सौ 25 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से चार पौधे लाए गए। इन चार पौधों से ही अन्य पौधे तैयार किए गए। घर की चारदिवारी के अंदर ही डेढ़ कट्ठा जमीन में 20 और पिलर तैयार कर इसकी खेती शुरू कर दी।
अप्रैल-मई से फल लगने हो जाते हैं शुरू
टोप्पो ने बताया कि इसमें अप्रैल-मई से फल लगने शुरू हो जाते हैं तथा 15 नवंबर तक फल लगते रहते हैं। इस वर्ष पांच सौ रुपये किलो की दर से 20 हजार रुपये का फल बेचा जा चुका है। व्यवसायी खुद घर आकर फल को खरीदकर ले जाते हैं।
ड्रैगन फ्रूट्स के पौधों की भी करते हैं बिक्री
इतना ही नहीं, टोप्पो दंपती द्वारा इसके पौधे भी यहीं पर तैयार कर इच्छुक किसानों को सौ रुपये प्रति पौधे के हिसाब से बेचे भी जा रहे हैं। टोप्पो ने बताया कि 20 पिलर के बाद अब 40 पिलर पर इसे लगाया है। नए 20 पिलर में भी अगले वर्ष से फल निकलने लगेंगे।
अन्य किसानों को भी किया जा रहा है जागरूक
आभा टोप्पो ने बताया कि एनबीयू में मेरे साथ यहां से कई लोगों ने कार्यशाला में भाग लिया था, लेकिन इसकी खेती हाथीघिसा में सिर्फ उन्होंने शुरू की। कोफाम की संयोजक प्रोफेसर शिल्पी घोष के निर्देशन में प्रोजेक्ट अधिकारी अमरेंद्र पांडेय के नेतृत्व में तकनीकी जानकारी ली जाती है। टोप्पो द्वारा बताया गया कि वह एक सेल्फ-हेल्प ग्रुप से जुड़ी हुई हैं तथा अन्य महिलाओं को भी ड्रैगन फ्रूट्स की खेती करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसके लिए कई लोग आगे भी आए हैं।
खाद व पानी की बहुत कम पड़ती है जरूरत
कोफाम के तकनीकी अधिकारी अमरेंद्र पांडेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट्स में सफेद व लाल किस्म के फल होते हैं। लाल किस्म के फल ज्यादा स्वादिष्ट तथा फायदेमंद होते हैं। इसकी कीमत भी सात सौ से एक हजार रुपये प्रति किलोग्राम होती है। इसकी खासियत है कि इसमें खाद व पानी की बहुत कम जरूरत पड़ती है तथा बंजर व पथरीली जमीन में भी इसे लगाया जा सकता है। यही वजह है कि इसे वंडर फ्रूट्स भी कहा जाता है तथा विश्व में 'एबो-केबो' के बाद दूसरा सबसे ज्यादा लोकप्रिय फल है।
चार साल पहले कोफाम में हुआ था सफल कल्टिवेशन
पांडेय ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट्स मुख्य रुप से मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, ताइवान व श्रीलंका में होता है। इसकी खेती भारत में पांच साल पहले महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश में शुरू हुई थी।पश्चिम बंगाल में सिर्फ उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के कोफाम में चार साल पहले इसकी सफल खेती शुरू की गई थी।
डायबिटीज व कैंसर के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद होता है ड्रैगन फ्रूट्स
कोफाम के पूर्व संयोजक प्रोफेसर रणधीर चक्रवर्ती ने बताया कि ड्रैगन फूट्स स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक है। बैंगलुरू व हैदराबाद के डॉक्टर अपनी दवा के पर्चे में इस फल को खाने की सलाह देते हैं। यह फल कैंसर व डायबिटीज के मरीजों के लिए भी काफी फायेदमंद होता है।
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